प्रभासाक्षी की चुनाव यात्रा का पड़ाव इस समय राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में है। दिल्ली में इस समय चुनाव आयोग लोकसभा के आम चुनाव की तिथियों को अंतिम रूप दे रहा है और दूसरी ओर राजनीतिक दल अपने घोषणापत्रों में तमाम लोक लुभावन वादे शुमार कर उसे अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। इस सब माहौल के बीच जब हमने देखा की संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया है तो हम किसानों के मन की बात जानने के लिए पहुँच गए।
यहाँ पर हमने पुरुष और महिला, दोनों किसानों से बातचीत की। बातचीत के दौरान एक चीज साफ़ तौर पर उभर कर आयी कि सबके मन में सरकार के प्रति गुस्सा था। यह भी उभर कर आया कि सरकार की ओर से किसानों के समक्ष जो प्रस्ताव रखे गए उनके बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्हें नहीं पता था कि किसान यूनियनों और सरकार के बीच होने वाली वार्ताओं में सरकार की ओर से क्या प्रस्ताव दिए गए। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि उनकी यूनियनें जो मांग कर रही हैं वो सरकार ने नहीं मानी हैं और जब तक वह मांगें नहीं मानी जातीं तब तक वह आंदोलन के लिए दिल्ली आते रहने और यहीं जमे रहने के लिए भी तैयार हैं।
हमने जब सीधा सीधा चुनाव पर बात की तो अधिकतर लोगों का कहना था कि सारे दल एक जैसे ही हैं। पंजाब के किसानों का कहना था कि आम आदमी पार्टी ने बड़ी बड़ी बातें की थीं लेकिन वह तो ख़ास आदमी पार्टी बनी हुई है और किसानों से किये गए वादे पूरे नहीं किये गए हैं। पंजाब के किसानों के कहना था कि कांग्रेस में कोई बड़ा और बढ़िया नेता बचा नहीं है और बीजेपी की बातों पर हमें विश्वास नहीं है इसलिए हम चुनावों के समय सबकी बात सुनने के बाद ही तय करेंगे कि वोट कहाँ देना है।
किसानों से बातचीत के दौरान एक चीज और उभर कर आयी कि उनका समर्थन उन किसानों के साथ नहीं था जो हरियाणा बॉर्डर पर डेरा डाल कर बैठे हैं। किसानों का कहना था कि जिस तरह उन्होंने ट्रैक्टरों को टैंकों का स्वरुप देकर लड़ाकों की तरह दिल्ली की तरफ कुछ किया उससे किसानों की छवि प्रभावित हुई और सरकार को लाभ हुआ।