By अंकित सिंह | Feb 22, 2024
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर नए सिरे से किसानों के विरोध प्रदर्शन ने राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है। खासकर ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव नजदीक है। 100 से अधिक किसान यूनियनों के प्रदर्शन ने पंजाब के राजनीतिक समीकरण को भी बदल दिया है। राज्य की अब तक चार मुख्य राजनीतिक पार्टियां - सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस, भाजपा और अकाली दल (एसएडी) - सभी अलग-अलग रणनीति के तहत चुनाव की तैयारी में थे, लेकिन अब उसमें बदलाव देखने को मिलेगा। साल 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन 1.0 ने भी राज्य की राजनीति को हिलाकर रख दिया है। अब 2.0 भी नई राजनीतिक स्थिति को पैदा कर रहा है।
पंजाब में AAP खुद को "किसानों की मित्र" पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है, जिसके मुख्यमंत्री भगवंत मान केंद्र-किसान वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस, जिसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और कम से कम पंजाब में AAP के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से अलग होने के बाद, उसने भी किसानों की मांगों को समर्थन दिया है, और उसके नेता विरोध प्रदर्शन में घायल हुए किसानों से मिलने गए। भाजपा, जो केंद्र और हरियाणा दोनों में सत्ता में है, यह सुनिश्चित करने के लिए अपना काम कर रही है कि किसान पूरी तरह से पार्टी से अलग न हो जाएं। यह अकाली ही हैं, जो पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो सबसे अधिक प्रभावित दिख रहे हैं, क्योंकि विरोध के कारण उनकी "पंजाब बचाओ यात्रा" ठंडे बस्ते में चली गई है और पुराने साथी भाजपा के साथ गठबंधन की संभावनाएं अब धूमिल हो गई हैं।
आंदोलन 1.0 की ही तरह इस बार भी आम आदमी पार्टी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है। आम आदमी पार्टी ने 2021-22 में किसानों का समर्थन करके ही पंजाब में सत्ता हासिल की थी। उस समय आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली में सत्ता में थी और दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने प्रदर्शन के दौरान किसानों का जमकर समर्थन किया था। इसी कारण पार्टी को पंजाब में सरकार बनाने में सफलता मिल गई। वहीं, कांग्रेस सहित तमाम अन्य दलों को बड़ा नुकसान हुआ था। अपने मुफ्त बिजली और किसानों को एसपी सहित कई वादे की और 42.00 में एक फ़ीसदी वोट हासिल कर सत्ता में आई। इस बार भी आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव के मध्यनजर इस आंदोलन को भुनाने की कोशिश कर रही है। आंदोलन का सबसे ज्यादा असर पंजाब और हरियाणा में है। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं जबकि हरियाणा में 10 सीटें हैं। इन दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी प्राथमिकता से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। ऐसे में उसे इस बार भी किसानों के सहारे सफलता की उम्मीद है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा 370 सीटें अपने बलबूते जीतने की योजना पर काम कर रही है। लेकिन पंजाब और हरियाणा में किसान आंदोलन की वजह से नुकसान हो सकता है। किसान आंदोलन ने पंजाब के साथ-साथ हरियाणा में भी भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है। हरियाणा की सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। वहीं, पंजाब में भाजपा अभी भी संघर्ष कर रही है। ऐसे में अगर यह किसान आंदोलन जारी रहता है तो कहीं ना कहीं उसे चुनाव में इससे नुकसान हो सकता है। हालांकि भाजपा 2020-21 की तरह किसान आंदोलन को लेकर इस बार एग्रेसिव नजर नहीं आ रही है। भाजपा इस बात को बताने की कोशिश कर रही है कि केंद्र की मोदी सरकार ने अब तक किसानों के लिए क्या कुछ किया है। किसान आंदोलन जैसे ही दोबारा शुरू हुआ केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और नित्यानंद राय किसानों के साथ बैठक करने के लिए चंडीगढ़ पहुंच गए। चार बैठक भले ही बेनतीजा रही हैं। लेकिन कहीं ना कहीं भाजपा यह बताने की कोशिश कर रही है कि मोदी सरकार किसानों की समस्याओं को समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
कांग्रेस की पूरी तरीके से किसानों के साथ खड़ी नजर आ रही है। कांग्रेस की ओर से तो साफ तौर पर कह दिया गया है कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है तो किसानों को एमएसपी की गारंटी दी जाएगी। पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में है। ऐसे में कांग्रेस किसानों के साथ खड़े रहकर अपने प्रदर्शन को सुधारने की कोशिश में है। पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ने का पहले ही ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में दोनों दल किसानों को अपने-अपने पक्ष में अपने-अपने तरीके से साधने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे पार्टी के बड़े नेता भी लगातार किसान आंदोलन को लेकर केंद्र की मोदी सरकार निशान साथ रहे हैं।
शिरोमणि अकाली दल राज्य में एक बार फिर से अपने अस्तित्व को उभारने की कोशिश में लगी हुई है। ऐसे में इस किसान आंदोलन की वजह से उसे सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। शिरोमणि अकाली दल न तो नौ में दिखाई दे रही है ना तेरह में। किसान आंदोलन की वजह से ही अकाली दल ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ा था। एक बार फिर से दोनों के साथ आने की अटकलें चल रही थी लेकिन किसान आंदोलन ने उस पर पानी फेर दिया है। अकाली दल किसानों के साथ खड़ी तो नजर आ रही है लेकिन वोटर को भी पता है कि अकाली दल की भूमिका न तो आप केंद्र में मुख्य रूप से है ना ही राज्य में। ऐसे में कहीं ना कहीं भाजपा विरोधी वोटर के लिए पहली प्राथमिकता कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ही रह सकती है।