औसत बौद्धिक समझ भी नहीं रखते किसान नेता, तभी कृषि कानूनों के फायदे नहीं समझ पा रहे

By प्रो0 सुधांशु त्रिपाठी | Feb 04, 2021

किसानों के नाम पर छद्म भेषधारी उपद्रवियों और विघटनकारी तत्वों द्वारा गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2021 को किये गये अमानवीय तथा भयावह कृत्यों से पूरा देश शर्मसार हुआ है। लोकतंत्र के अंतर्गत अभिव्यक्ति एवं प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता के अधिकार को जानबूझ कर दुरुपयोग करने का संभवतः इससे बेहतर उदाहरण शाहीन बाग धरने के बाद शायद ही कोई अन्य होगा। किसान आंदोलन का कोई हल क्यों नहीं निकल रहा है यह एक विचारणीय प्रश्न है। निश्चय ही किसान आंदोलन का सही ढंग से नेतृत्व करने वाला न तो कोई वास्तविक नेता है और न ही इसमें शामिल बहुसंख्य लोगों में किसी प्रकार की बौद्धिक समझ है। अतः इन्हें गुमराह करना बहुत आसान है जैसा कि पिछले दो महीने से हो रहा है। जो भी तथाकथित नेता बनते हैं उनमें ज्यादातर गैर पढ़े लिखे, जिद्दी और राजनीतिक समझ और देश हित की रक्षा के प्रश्न पर तो बिलकुल शून्य हैं परंतु अपने निहित स्वार्थों को साधने के मामले में वे बेहद चालाक और शातिर हैं। अतः कृषि सुधार बिल को सही रूप में समझने और अपने समर्थकों को समझाने के स्थान पर वे केवल अपने संकीर्ण हितों को पूरा करने के लिये सक्रिय हैं और अपनी सनक के चलते वे राष्ट्र विरोधी, विघटनकारी या आतंकवादी तत्वों के शिकार आसानी से बने हुये हैं जैसा कि खालिस्तान आतंकियों का इंग्लैण्ड और अमेरिका से इस आंदोलन को समर्थन तथा देश के भीतर विघटनकारियों एवं आतंकियों द्वारा आंदोलनवादियों को उकसाने की कार्यवाही से साफ दिखाई दे रहा है। इसलिये इन्हें देश की सुरक्षा या समाज की सुख-शांति और स्थिरता की उन्हें कोई चिन्ता ही नहीं है।

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इसी क्रम में यदि हम थोड़ा पीछे चलें तो कुछ माह पूर्व राजस्थान के करौली जिले में एक मंदिर के पुजारी की जघन्य हत्या तथा हाथरस जिले में इस घटना के तत्काल पहले की घटना में हुई एक लड़की की हत्या से उत्पन्न दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों ने संपूर्ण उत्तर प्रदेश तथा देश में सभ्य समाज को हैरान तथा परेशान किया था। जैसा कि साफ देखा गया है कि करौली तथा हाथरस दोनों ही जगहों पर विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दल न केवल अपनी राजनीति की रोटी सेंकने में लगे थे बल्कि इनमें संलिप्त दोषी अपराधियों को कानून की पकड़ से बचाने में भी सहयोग कर रहे थे। ऐसा क्यों है कि इन दलों को मानवीय संवेदनाओं से कोई सरोकार नहीं है, विशेषतया जबकि किसी पीड़ित परिवार ने अपने एक प्रिय स्वजन खो दिया है। क्या इसी को राजनीति कहतें हैं? यद्यपि हाथरस कांड की सच्चाई तो अभी पूरी प्रकट नहीं हुई है लेकिन एक विध्वंसक देश विरोधी षड्यंत्र का खुलासा जरूर हुआ है जिसका उद्देश्य, जैसा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में बताया गया, संपूर्ण भारत में एक बार फिर वर्ष 2019 के अंत तथा वर्ष 2020 के प्रारंभ में हुये सी0ए0ए0 एवं एन0आर0सी0 विरोधी दंगों की भांति हिंसा एवं रक्तपात को भड़काना तथा देश में अस्थिरता पैदा करना था। निःसंदेह हाथरस कांड ने एक बहुत सोची समझी योजना के अंर्तगत देश में सक्रिय राष्ट्रविरोधी शक्तियों को एक उपयुक्त अवसर दिया, जिन्हें मीडिया द्वारा टुकड़े-टुकड़े गैंग का नाम दिया गया है तथा जिनको देश के अधिकांश राजनीतिक दलों के वरदहस्त के साथ विदेश में बैठे आतंकवादियों का गुप्त सहयोग प्राप्त है, ने दिवंगत हाथरस पीड़िता के परिजनों को न्याय दिलाने के नाम पर एक दीर्घकालीन आंदोलन चलाने का कुचक्र तैयार किया था। यदि गंभीरतापूर्वक देखा जाये तो इस आंदोलन या ऐसे अन्य आंदोलनों के मूल में इन सभी राजनीतिक दलों का एकमात्र लक्ष्य भारतीय जनता पार्टी (बी0 जे0 पी0) का विरोध करना ही रहता है। जिस तरीके से संकीर्ण मानसिकता वाले ऐसे राजनीतिक दल तथा उनका समर्थन प्राप्त अनेक षड्यंत्रकारी संगठन एकजुट होकर केवल बी0जे0पी0 शासित केंद्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश शासन को घेरने तथा अस्थिर करने के लिए रात-दिन एक किये हुये थे, उसका उददेश्य दिवंगत पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाना या शीलहरण जैसी जघन्य अपराधों को रोकना नहीं बल्कि अपने अधर में लटके राजनीतिक भविष्य की रक्षा करना ही रहा है। ऐसे षड्यंत्र को सफल तरीके से क्रियान्वित करने के लिए इसे गैंग ने अपने तथा विदेश में बैठे आकाओं के सहयोग से कई तैयारियां की थीं जिसमें रातों रात वेबसाइट तैयार कर अनेक लिंकों के माध्यम से सभी संभावित दंगाईयों को एकजुट करना तथा देश के सभी प्रमुख स्थानों पर व्यापक दंगा, हिंसा तथा रक्तपात करवाना एवं इस कांड का अंर्तराष्ट्रीयकरण करके देश को विश्व के मंच पर बदनाम करना भी था। ठीक उसी प्रकार इस किसान आंदोलन में भी इन सभी देश विरोधी ताकतों ने सोशल मीडिया पर सैंकड़ों फर्जी नाम के अकाउंट्स बना कर इस आंदोलन को भड़काने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।


इन देश विरोधी कार्यों के लिए धन एवं अन्यान्य सहायता विदेशी ताकतों द्वारा उपलब्ध भी कराई गई थी जो भारत की उभरती ताकत और साफ सुथरी छवि से बेहत आहत हैं। विशेषतया विगत कई दशकों से लंबित देश की कुछ जटिल समस्याऐं यथा तीन तलाक का मुददा, जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा, तथा राम जन्म भूमि विवाद को जिस दृढ़ इच्छाशक्ति एवं साहस का परिचय देते हुए देश में शासन कर रहे राजनीतिक दल तथा सर्वोच्च न्यायपालिका ने सुलझाया, उससे इन सभी देश विरोधी शक्तियों को भरपूर जवाब मिल चुका है। विगत कई वर्षों से यह साफ दिखाई दे रहा है कि देश या विभिन्न प्रदेशों में बी0जे0पी0 विरोधी राजनीतिक दलों का एकमात्र लक्ष्य केवल सरकार का विरोध करना ही रहता है भले ही सरकार चाहे कितना ही अच्छा काम क्यों न कर रही हो। निःसंदेह यह शासन की जिम्मेदारी है कि वह अपराध पर कठोरतापूर्वक नकेल कसे तथा प्रत्येक व्यक्ति के जानमाल तथा संपत्ति की सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित करे। परंतु भारत जैसे विशाल जनसंख्या एवं क्षेत्रफल वाले देश तथा उत्तर प्रदेश या राजस्थान जैसे बड़े प्रदेशों में केवल सरकार, चाहे वह जिस राजनीतिक दल की हो, इस कार्य को अकेले नहीं कर सकती। तथापि ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के क्रियान्वयन में सरकारों का ईमानदारी भरा प्रयास अवश्य दिखना भी चाहिए जो आजकल विभिन्न राज्यों में समान रूप से नहीं दिखता है। इस अत्यंत महत्वपूर्ण एवं अतिआवश्यक कार्य में सभी राजनीतिक दलों के साथ देश के प्रत्येक नागरिक का पूर्ण सहयोग एवं निष्ठा अपेक्षित है जिसका यहां आज भी अभाव है, अन्यथा इस प्रकार से अपराधों की बाढ़ न आ जाती।

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आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि लगभग सभी राजनीतिक दल या दबाव समूह प्रत्येक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या धार्मिक मुद्दे का केवल संकीर्ण दलीय नजरिये से देखते हैं। उनके सामने राष्ट्रहित की रक्षा या जनहित की वास्तविक साधना का उद्देश्य हमेशा गौण रहता है और अपने-अपने निहित स्वार्थों के चलते देश में समग्र राजनीतिक परिदृश्य मूल समस्या या मुद्दे का वास्तविक हल निकालने के लक्ष्य से भटककर शासक बी0जे0पी0 बनाम विपक्षी राजनीतिक दलों के गठजोड़ पर केंद्रित हो जाता है। इसमें किसी चुनौती का निदान मिल कर खोजने के बजाय विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा अड़लिय रवैया अपनाते हुए केवल भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र या राज्य सरकारों को नीचा दिखाना ही रहता है। इस उद्देश्य हेतु ये सभी बी0जे0पी0 विरोधी नेतागण केवल भड़काऊ बयान देना और आंदोलनकारियों को गुमराह करके समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाने में ही अपनी राजनीतिक विजय सुनिश्चित करते हैं। आज संपूर्ण भारत यह जानता है कि लगभग सभी राजनीतिक दल अपराधियों को न केवल संरक्षण देते हैं बल्कि उनका निर्वाचन में अपनी विजय सुनिश्चित करने हेतु खुलेआम प्रयोग भी करते हैं। अतः राजनीति का अपराधीकरण, अपराधियों का राजनीतिकरण तथा संगठित अपराध आज देश तथा प्रदेश की राजनीति में एक दुखद सच्चाई बन चुका है। नतीजा स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है कि देश की संसद तथा राज्य की विधानसभाओं में अनेक माननीय सांसद तथा विधानसभा सदस्य साफ सुथरी छवि से कोसों दूर हैं क्योंकि उनके ऊपर संगीन आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। ऐसी दशा में इस प्रकार की जघन्य आपराधिक घटनाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और समाज में समस्यायें सुलझने की बजाय उलझती जा रहीं हैं और अशांति एवं असुरक्षा बढ़ती जा रही है।


इस चिंताजनक परिस्थिति में देश की जनता-जनार्दन को किसान नेताओं तथा सभी किसानों को जाति, धर्म, भाषा, समुदाय, क्षेत्र आदि जैसे संकीर्ण विचारों से ऊपर उठाने का प्रयत्न करना चाहिए तथा किसान आंदोलन के नाम पर अपने तुच्छ हितों की रक्षा करने वाले इन स्वार्थी और देश विरोधी किसान नेताओं, अशिक्षित किसानों एवं असामाजिक तत्वों तथा कट्टर राष्ट्रविरोधी-विघटनकारी एवं खालिस्तान समर्थक उग्रवादी संगठनों को अलग-थलग कर देना चाहिए क्योंकि तभी सरकार तथा किसानों के बीच सार्थक वार्तालाप हो सकेगा और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हल निकल सकेगा। इसी के साथ गैर बी0जे0पी0 राजनीतिक दलों को राजनीति के नाम पर केवल बीजेपी विरोधी रवैया नहीं अपनाना चाहिये बल्कि देश एवं समाज के हित की भी चिंता करना चाहिये जिससे राष्ट्रहित और मानव संस्कृति की रक्षा हो सके तथा समाज में सुख-शांति एवं सुरक्षा की स्थापना भी की जा सके क्योंकि तभी देश की अखंडता तथा सामाजिक समरसता स्थापित की जा सकेगी। ऐसा हो सकता है क्योंकि मानव उद्यम से परे कुछ नहीं होता है।


-प्रो0 सुधांशु त्रिपाठी

आचार्य- राजनीति विज्ञान

उ0प्र0 राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय

प्रयागराज, उ0प्र0।

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