वीआईपी के नकली अर्थ (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | May 24, 2023

हमारे मित्र पृथ्वी सिंह को शब्दों के नए अर्थ गढ़ने की आदत है। उन्होंने दर्जनों शब्दों के नकली अर्थ उगा रखे हैं। नकली भी ऐसे कि स्ट्रौंग काफी पीते हुए चुस्की लो तो खालिस, असली लगें। उनकी इसी आदत के कारण हमने  उन्हें अर्थसिंह कहना शुरू कर दिया है। यह उदबोधन इतना सटीक बैठता है कि वे भी अक्सर खूब मज़ा लेते हैं। कुछ दिन पहले मिले, हमने पूछा अर्थ सिंह, बड़े दिन बाद मिले, कौन सी पृथ्वी पर रहते हो । 


अर्थ सिंह बोले, “आजकल चमकदार कुर्सियों के कुछ और अर्थ खोज रहा हूं।” कुर्सियों के नए अर्थ, क्या सब्जेक्ट है यार। हमें तत्काल दिलचस्पी ने घेर लिया, पूछा अब इसका अर्थ बताओ । अर्थसिंह ने समझाया, “वीआईपी होना एक चमकदार कुर्सी होना ही तो है।” हमने कहा, “ इसका मतलब तो सीधा सरल है, वैरी इम्पोर्टेंट पर्सन। वैसे खुशवंत सिंह के किसी कॉलम में दो गलत से अर्थ ज़रूर पढ़े थे, ‘वैरी इन्क्नवीनियंट पर्सन’ और ‘वैरी इम्पोर्टेंट प्राब्लम’।”


अर्थसिंह खिलखिला कर हंसने लगे, “हां यार बड़े ज़र्बदस्त, खरेखरे लेकिन असली अर्थ थे। मैंने भी उनसे प्रेरित होकर, दिन रात कोशिश कर कुछ नकली अर्थ पकाए हैं, मुलाहिज़ा फरमाएं शायद आपको लजीज़ लगें।”

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सबसे पहले कुछ मीठे अर्थ, ‘वैरी इन्टैलिजेंट पर्सन’ ‘वैरी आईडियल पर्सन’, ‘वैरी आइडल पर्सन’, ‘वर्सेटाइल इंडियन पसर्नेलिटी’, ‘वैरी इम्पार्शियल पर्सन’, ‘वैन्चर इनीशिएटिंग पर्सन’, ‘वैरी इन्टैलिजेंट पायनियर’, ‘वैरी इन्सपायरिंग पर्सन’ और ‘वैरी इल्सट्रियस पर्सन’। 


हमने कहा, “वाह क्या उचित और सही अर्थ निकाले । बेहद शालीन व सभ्य। आपने अपने नाम को चरितार्थ कर दिखाया। वीआईपीज़ को हमेशा अच्छा लगने वाला काम किया। अगर आप क्षेत्र के वीआईपीज़ के पास इस लिस्ट को भिजवा दें तो सामाजिक, शैक्षिक व अध्यात्मिक कार्यों को समर्पित उनकी पत्नियों की संस्था आपको सहर्ष, सगर्व सम्मानित कर देगी । इस बहाने आप सोशल  और प्रिंट मीडिया में छा जाएंगे।”

 

पृथ्वी के चेहरे पर संतुष्टि खिल चुकी थी, बोले, “अब कुछ दूसरे किस्म के अर्थ बड़े अदब के साथ पेश करता हूं। थोड़े कसैले हैं, प्लीज़ आराम से चखना,” ‘ वैरी आईडल पर्सन’, ‘वैरी इग्नोरिंग पर्सन’, ‘वैरी इलिबरल पर्सन’, ‘वैरी इम्मोबाईल पर्सन’, ‘वैरी इम्मोडेस्ट पर्सन’, ‘ वैरी इम्पेशेन्ट पर्सन’, ‘ वैरी इन्आर्टिकुलेट पर्सन’, ‘वैरी इंडिफरैन्ट पर्सन’ ‘वैरी ……।’ 


“बस बस, क्यूं अनर्थ कर रहे हो अर्थसिंह। क्या गज़ब करते हो, पृथ्वी।” हमने उन्हें रोका 


“क्या हुआ, कोई अर्थ गलत हो गया क्या, कौन सा गलत है, बताओ। अभी उचित शब्द खोजने की कोशिश करता हूं। नए पर्यायवाची शब्द उगाऊं क्या। ” अर्थसिंह को शक होने लगा कि उन्होंने सही अर्थ नहीं निकाले। हमने उनसे स्पष्ट कह दिया कि आज ज़माना सही अर्थों का नहीं है, बल्कि सभी को पसंद के लुभावने अर्थ परोसने का है। आप यह कड़वे अर्थ किसी वीआईपी के पास फटकने भी नहीं देना, वरना अनर्थ भी हो सकता है । अर्थसिंह के बताए अनर्थ जैसे अर्थ, जैसे कैसे हज़म किए । इत्तफाक से उसी शाम किसी वीआईपी से मिलने जाना था लेकिन डर लग रहा था कहीं उनके बताए अर्थ याद रह गए तो मुशिकल हो जाएगी। फिर यह निश्चय किया कि कल जाउंगा ताकि नकली अर्थ, सोते हुए सुबह तक भूल जाउं और व्यवहारिक अर्थ याद रहें ।  कल फिर कहीं अर्थ सिंह मिल गए तो दिमाग़ की पृथ्वी हिल जाएगी जिस पर वीआईपी के असली अर्थ भरे पड़े हैं।   


- संतोष उत्सुक

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