कश्मीर में तेज हुई हिंसा के पीछे का मकसद लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नेस्तनाबूद करके दुनिया को यह संदेश देना है कि कश्मीर अभी भी अशांत है और कश्मीरी नागरिक भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते हैं। ऐसे में यह आशंका प्रकट की जा रही है कि 25 मई तक कश्मीर उबाल पर ही रहेगा, जब अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र के लिए उप-चुनाव होना है।
पहले यह मतदान 12 अप्रैल को होना था पर कश्मीर के चुनावी इतिहास की सबसे भयानक हिंसा ने 9 अप्रैल को जो रूख अख्तियार किया वह बहुत ही भयानक था। पहली बार ऐसा हुआ था कि आतंकियों ने नहीं बल्कि कश्मीरी जनता और पत्थरबाजों ने मिल कर ईवीएम मशीनें लूट ली थीं और मतदान केंद्रों पर हमले बोले थे।
इन हमलों और हिंसा के दौरान सुरक्षा बलों की गोलीबारी में नौ कश्मीरियों की मौत हो गई थी। बीसियों जख्मी हुए थे। पर कश्मीर का उबाल ठंडा नहीं हुआ। दरअसल सीमा पार बैठे आतंकियों और पत्थरबाजों के आका नहीं चाहते कि कश्मीर शांत हो। इस बार उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नेस्तनाबूद करने की खातिर जो पत्थरबाजों को उकसाया तो उनके द्वारा लगाई गई आग में कश्मीर अभी भी झुलस रहा है।
नौ दिनों के बाद भी कश्मीर में हिंसा का महौल जारी है। शायद ही कोई हिस्सा ऐसा होगा जो हिंसा और पत्थरबाजों से अछूता रहा होगा। हालांकि हिंसा में आती तेजी के बाद राज्य सरकार ने उन 30 हजार से अधिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को वापस भिजवाने से मना कर दिया है जिन्हें चुनाव ड्यूटी सौंपी गई थी और अब केंद्रीय गृह मंत्रालय देश के अन्य भागों में उनकी तैनाती की खातिर उनकी वापसी की मांग कर रहा है।
राज्य सरकार उन खुफिया रिपोर्टों का हवाला दे रही है जिसमें कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के इशारों पर पत्थरबाज इस बार की गर्मियों को भयानक से भयानक स्थिति में पहुंचा देना चाहते हैं। उनके निशाने पर अमरनाथ यात्रा भी है। यही नहीं कश्मीर आने वाले पर्यटक भी अब पत्थरबाजों के निशाने बनने लगे हैं।
एक अधिकारी के बकौल, पत्थरबाजों के इरादों से निपटने की खातिर सेना को तैनात नहीं किया जा सकता। इसके लिए राज्य पुलिस या केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल जैसी फोर्स की ही आवश्यकता है। उनका कहना था कि केंद्र से आग्रह किया गया है फिलहाल जवाब की प्रतीक्षा है।
सुरक्षा बलों की वापसी को लेकर चाहे राज्य सरकार केंद्र के जवाब की प्रतीक्षा कर रही हो पर पत्थरबाज किसी प्रकार का इंतजार किए बिना कश्मीर को दोजख में धकेल रहे हैं। कश्मीर के हर भाग को पत्थरबाजी का स्वाद चखा देने वाले पत्थरबाजों को रोकने की खातिर हालांकि फेसबुक और व्हाट्सएप को नकेल डालने की कवायद तेज हो चुकी है लेकिन लगता नहीं है कि इसमें कामयाबी मिल पाएगी क्योंकि ऐसा करने के लिए इंटरनेट प्रतिबंधित करना पड़ता है और इंटरनेट प्रतिबंधित करने का अर्थ होगा कश्मीर में सभी प्रकार की गतिविधियों को ठप कर देना जिसका विरोध भी हो रहा है।
वादी में आतंकियों और उनके आकाओं द्वारा हालात बिगाड़ने के लिए फेसबुक और वाट्सएप का दुरुपयोग किए जाने का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार इन दोनों सेवाओं को प्रतिबंधित करने की योजना पर विचार कर रही है। वादी में गत सोमवार से एक बार फिर प्रशासन ने ब्रॉडबैंड और लीजलाइन के अलावा अन्य सभी इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। अप्रैल माह के दौरान इंटरनेट सेवाओं को बंद करने यह तीसरा मामला है।
हालांकि राज्य पुलिस के आलाधिकारी और राज्य सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री फेसबुक व वाट्सएप सेवा को बंद किए जाने की संभावना पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं, लेकिन सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ वरिष्ठ नेताओं ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ पार्टीजनों की इस विषय पर चर्चा हुई है। इसके अलावा सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां भी इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही हैं।
राज्य पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि फेसबुक और वाट्सएप इस समय कश्मीर में सक्रिय आतंकियों, राष्ट्रविरोधी तत्वों और उनके हैंडलरों के लिए हालात खराब करने का सबसे कारगर हथियार हैं। इनके जरिये वह अफवाहों को भी सच बनाकर पेश कर सकते हैं। आतंकियों व अलगाववादियों ने कई जगह लोगों को सुरक्षा बलों के खिलाफ इनके माध्यम से सूचित कर जमा किया है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि वादी में एक पखवाड़े के दौरान जब भी हालात बिगड़े, फेसबुक और वाट्सएप का योगदान सबसे ज्यादा रहा। इन्हीं दो माध्यमों के जरिए भड़काऊ और आपत्तिजनक वीडियो वायरल हुए व लोग सड़कों पर उतर आए। उन्होंने बताया कि हाल ही में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा समीक्षा बैठक में भी यह मामला चर्चा में आया था। बैठक में वादी में इंटरनेट सेवाओं को कुछ समय बंद रखने का सुझाव भी आया, लेकिन यह मौजूदा दौर में संभव नहीं है और न ही बार-बार इन्हें बंद किया जाना ठीक है।
''इसलिए फेसबुक व वाट्सएप पर पाबंदी का विकल्प अपनाया जा सकता है। हमने इससे पहले भी कई बार राज्य सरकार को कुछ इंटरनेट साईटस को राज्य में पूरी तरह प्रतिबंधित किए जाने का सुझाव दिया था।'' संबंधित अधिकारियों ने बताया कि सड़कों पर जमा भीड़ हथियारबंद आतंकियों से कहीं ज्यादा घातक होती है।
- सुरेश एस डुग्गर