मोदी सरकार के मंत्री आजकल अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं। पहले निर्मला सीतारमण, फिर पीयूष गोयल और अब श्रम मंत्री संतोष गंगवार के बयान पर हंगामा मचा हुआ है। संतोष गंगवार ने कहा है कि देश में रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं है लेकिन उत्तर भारत में आने वाले नियोक्ताओं की शिकायत है कि “योग्य लोगों” की कमी है। गंगवार के गत शनिवार को दिए इस बयान पर विपक्षी नेताओं ने पलटवार तो किया ही है साथ ही उन पर उत्तर भारत के लोगों के अपमान का आरोप भी लगा दिया है। गंगवार के बयान को जरा गहराई से देखें तो प्रतीत होता है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा है बस उनका कहने का तरीका गलत था और विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा उन्होंने सरकार के खिलाफ थमा दिया।
अगर हम कह रहे हैं कि गंगवार ने कुछ गलत नहीं कहा तो इसके पीछे कुछ ठोस तथ्य भी हैं। आइए आपको उन पर लिये चलते हैं। इसी साल मार्च में IBM chief Ginni Rometty ने कहा था कि भारतीयों में कौशल की कमी है और उन्हें मात्र डिग्री हासिल कर लेने से आगे की बात सोचनी चाहिए। उन्होंने अपने बयान में उत्तर भारतीयों नहीं भारतीयों शब्द का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि वैसे यह ट्रेंड पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। आईटी क्षेत्र में भारत में भी नौकरियां हैं लेकिन उस कार्य को करने की क्षमता वाले योग्य उम्मीदवार ही नहीं मिलते।
वर्षों से सरकारों पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह पर्याप्त संख्या में रोजगार नहीं दे पा रही है और बेरोजगार युवाओं की बढ़ती संख्या हर सरकार की सबसे बड़ी चिंता रही है। लेकिन 2017 में इससे भी बड़ी चिंता की बात तब सामने आई थी जब यह तथ्य उभर कर आया कि lack of opportunities की जगह lack of skills ज्यादा बड़ी समस्या है। जी हाँ, नेशनल सैम्पल सर्वे की एक रिपोर्ट में उस वर्ष यह बताया गया कि भारत में काम करने की आयु वाले लोगों में मात्र 10 प्रतिशत लोगों को ही कौशल प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। एकदम साफ तथ्य है कि यदि आप प्रशिक्षित और कुशल कार्यबल की बात करेंगे तो डिमांड और सप्लाई में बहुत बड़ा अंतर है। इस बात को समझते हुए ही नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही कौशल प्रशिक्षण के लिए अलग मंत्रालय बनाया और युवाओं को विभिन्न तरह के रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने हेतु देश भर में कई संस्थान खोल गये लेकिन अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।
एक तथ्य और आपको बताते हैं। वर्ष 2011 में फिक्की की एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें वर्ष 2010 में कराये गये एक सर्वे के परिणाम शामिल थे। इसमें दर्शाया गया था कि युवा भारतीयों में कौशल की कमी है। इसमें बताया गया था कि कैसे हर साल लाखों युवा ग्रैजुएट हो रहे हैं लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है। कारणों की जब खोज की गयी तो अधिकांश ग्रैजुएट युवा संबंधित क्षेत्र में नौकरी के लिए योग्य नहीं पाये गये।
इस साल मई में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसद थी जो 45 सालों में सबसे ज्यादा है और मंत्री महोदय संतोष गंगवार की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब इन आंकड़ों को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है। विपक्ष ने संतोष गंगवार के बयान को लेकर उन पर और प्रधानमंत्री पर निशाना साध दिया है। निशाना साधने में प्रियंका गांधी आगे रहीं तो मायावती, राजीव शुक्ला से लेकर विभिन्न दलों के नेता और सोशल मीडिया के महारथियों में सरकार को घेर लेने की होड़ मची है। जबकि देखा जाये तो कौशल प्रशिक्षण की कमी सिर्फ एक सरकार की खामी नहीं अब तक की सभी सरकारों की खामी रही है।
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नागरिकों को शिक्षा का अधिकार तो दे दिया गया लेकिन शिक्षा का स्तर नहीं सुधारा गया और ना ही कभी इस बात की चिंता की गयी कि युवाओं को कैसे रोजगारपरक कौशल प्रशिक्षण दिलाया जाये। जो अमीर हैं, जो खर्च कर सकते हैं वह तो महँगे संस्थानों से कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर बड़ी-बड़ी नौकरियां हासिल करने में सफल रहे लेकिन गरीबों की किसने सुनी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जरूर कौशल प्रशिक्षण केंद्र खुलवाये और इसमें बड़ी संख्या में हर साल युवा अब प्रशिक्षित हो रहे हैं और रोजगार हासिल कर रहे हैं लेकिन ऐसे संस्थानों की संख्या और इसके बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है क्योंकि युवाओं की बड़ी आबादी अभी भी इन सुविधाओं से अनभिज्ञ है।
बहरहाल, कहा जा सकता है कि संतोष गंगवार ने जो कहा गलती उसमें नहीं उस बात को कहने के तरीके में है। फिलहाल तो वह अपने बयान पर विवाद होने के बाद बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं और कह रहे हैं कि देश में रोजगार की उतनी कमी नहीं है और ना ही उत्तर या दक्षिण जैसी कोई बात है। उन्होंने कहा है कि सरकार युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लक्ष्य को आगे रखकर काम कर रही है। खैर... बेरोजगार युवाओं की बढ़ती संख्या पर विपक्ष भले सरकार पर निशाना साधे लेकिन उसे अपने गिरेबां में भी झाँक कर देखना चाहिए कि उसने युवाओं को कौशल प्रशिक्षण के लिए पुराने ढर्रे पर चलने वाले चुनिंदा संस्थानों के अलावा दिया क्या है?
-नीरज कुमार दुबे