देखिये क्या हश्र हुआ एक्जिट पोलों का, नोटा ने क्यों बढ़ा दी हैं सभी पार्टियों की चिंता

By नीरज कुमार दुबे | Dec 13, 2018

विधानसभा चुनाव परिणामों से पहले विभिन्न टीवी चैनलों ने अपने एक्जिट पोलों के माध्यम से जो अनुमानित परिणाम जाहिर किये थे उनमें से कौन सही साबित हुए और कौन गलत, इस पर चिंतन करने की बजाय यदि सरसरी तौर पर देखें तो सभी एक्जिट पोल किसी भी पार्टी की जीत के अंतर का सही अनुमान लगाने में विफल रहे। इसके अलावा यदि इन चुनावों में नोटा को मिले भारी मतों को देखा जाये तो यकीनन राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ी चेतावनी है कि वह अपनी पसंद के उम्मीदवार की बजाय जनता की पसंद का उम्मीदवार उतारें। इन चुनावों से एक बात और साबित हुई कि मत प्रतिशत मामले में अभी भाजपा उतनी कमजोर नहीं पड़ी है जितना कांग्रेस समझ रही है। बात शुरू करते हैं एक्जिट पोलों से-


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ज्यादातर एक्जिट पोल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को मिले भारी जनादेश का अनुमान लगाने में विफल रहे लेकिन मध्य प्रदेश में कड़ी टक्कर की उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई। राजस्थान और तेलंगाना में एक्जिट पोलों में जिस दल के जीतने का अनुमान लगाया गया था, वह सच निकला। लेकिन मंगलवार को मतगणना के नतीजे सामने आने पर साबित हुआ कि विधानसभा चुनावों में वे जीत के अंतर का सही अनुमान नहीं लगा पाये।

 

 

राजस्थान

 

एक्जिट पोलों में राजस्थान में कांग्रेस की स्पष्ट जीत का अनुमान लगाया गया था लेकिन नतीजा सामने आने पर पार्टी अपने बलबूते जादुई आंकड़ा हासिल नहीं कर पायी और उसे 199 सीटों में से 99 सीटें मिली। वह बहुमत से बस थोड़ा पीछे रह गयी।

 

तेलंगाना

 

तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति को जबर्दस्त जीत मिली। उसे 119 सीटों में से 88 सीटें मिलीं और कांग्रेस महज 19 सीटों के साथ उससे काफी पीछे रह गयी।

 

मिजोरम

 

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में कांग्रेस का सत्ता से सफाया गया और क्षेत्रीय दल मिजो नेशनल फ्रंट ने एक्जिट पोलों के अनुमान से भी बेहतर प्रदर्शन किया। उसने 40 में से 26 सीटें जीतीं।

 

मध्य प्रदेश

 

इस प्रदेश में नतीजा सामने आने के बाद कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं जो 230 सदस्यीय विधानसभा में सामान्य बहुमत से दो कम है। भाजपा ने 109 सीटें हासिल कीं। एबीपी न्यूज ने भाजपा के लिए स्पष्ट हार (94) और कांग्रेस के लिए जीत (126) का अनुमान लगाया था। रिपब्लिक टीवी-जन की बात ने एक्जिट पोल में भाजपा को 128 सीटें दी थीं जबकि कांग्रेस को 95-115 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। इंडिया टुडे एक्सिस ने कहा था कि भगवा दल को 102-120 और कांग्रेस को 104-122 सीटें मिलेंगी। टाइम्स नाउ-सीएनएक्स एक्जिट पोल में मध्यप्रदेश में भाजपा को 126 सीटें और कांग्रेस को 89 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। 

 

छत्तीसगढ़

 

छत्तीसगढ़ में भाजपा 15 सीटों पर सिमट गयी और कांग्रेस को 68 सीटें मिलीं। अजीत जोगी की अगुवाई वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़-बसपा गठबंधन सात सीटें हासिल कर पायी। घोषित नतीजों के विपरीत एबीपी और टाइम्स नाउ-सीएनएक्स एक्जिट पोलों में भाजपा की जीत का अनुमान लगाया गया था। वैसे इंडिया टुडे-एक्सिस ने कहा कि कांग्रेस जीतेगी, लेकिन उसके सीटों का अनुमान सही नहीं निकला।

 

भाजपा का वोट प्रतिशत गिरा, लेकिन पूरी तरह से कांग्रेस के पाले में नहीं गया

 

भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दी पट्टी के तीन अहम राज्यों को भले ही कांग्रेस के हाथों गंव दिया हो, लेकिन उसका वोट पूरी तरह से सबसे पुरानी पार्टी के पाले में नहीं गया। कुछ अन्य पार्टियों और निर्दलियों ने अपने मत प्रतिशत में बढ़ोतरी की है। रोचक बात है कि मध्यप्रदेश में भाजपा का मत प्रतिशत कांग्रेस से थोड़ा अधिक ही रहा जबकि राजस्थान में कांग्रेस का वोट प्रतिशत थोड़ा अधिक है। अगर इन विधानसभा चुनावों के मत प्रतिशत की तुलना 2014 में हुए लोकसभा चुनाव से करें तो यह भाजपा के लिए बड़ी हार बताते हैं, क्योंकि इसने इन तीनों राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से 62 पर फतह हासिल की थी।

 

तेलंगाना और मिजोरम में, क्षेत्रीय पार्टियों की जीत हुई है। 2014 के बाद यह कई राज्यों में देखने में आया है कि गैर-भाजपा और गैर कांग्रेसी पार्टियों की अच्छी मौजूदगी है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ये क्षेत्रीय क्षत्रप 2019 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गैर भाजपा पार्टियों को एक साथ लाकर एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कवायद भी चल रही है।

 

छत्तीसगढ़

 

छत्तीसगढ़ में देखें तो, कांग्रेस को इन चुनाव में 43 फीसदी वोट मिला जो 2013 के विधानसभा में प्राप्त हुए 40.3 प्रतिशत और 2014 के आम चुनाव में मिले 38.37 फीसदी से ज्यादा है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से महज एक पर जीत नसीब हुई थी। इसकी तुलना में, भाजपा की बड़ी हार हुई है, क्योंकि पार्टी को 2013 में 41 फीसदी वोट मिले थे जो इस बार गिरकर 33 प्रतिशत रह गए। वहीं, 2014 के आम चुनाव में भाजपा को लगभग 49 प्रतिशत वोट मिले थे और इसने राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से 10 पर जीत हासिल की थी।

 

मत प्रतिशत का विश्लेषण बताता है कि कुछ छोटी पार्टियों और निर्दलियों ने ज्यादा मत हासिल किए हैं। 2013 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 4.3 प्रतिशत मत मिले थे, मगर इस बार मायावती की पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से गठबंधन किया और इन्हें 11.5 फीसदी वोट हासिल हुए। यह राज्य में तीसरी बड़ी ताकत है। निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। जहां 2013 में उन्हें 5.3 प्रतिशत मत मिले थे, वहीं उन्हें इस बार 5.9 फीसदत वोट मिले हैं।

 

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राजस्थान

 

इसी तरह का चलन राजस्थान में भी देखने को मिला। इस राज्य में भाजपा को 2013 के विधानसभा चुनाव में 45.25 फीसद वोट मिले थे जबकि इस बार उसे 38.8 प्रतिशत मत मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 55 फीसदी वोट मिले थे और इसने राज्य की सभी 25 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल कर ली थी। दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपने मत प्रतशित में सुधार किया। पार्टी को 2013 में जहां 33.1 प्रतिशत वोट मिले थे वहीं इस बार यह बढ़कर 39.3 फीसदी हो गए। कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनावों में सभी सीटों पर विफलता पाने के बावजूद तकबरीन 30 फीसदी वोट हासिल किया था। इस राज्य में भी, निर्दलियों ने अपने वोट प्रतिशत में इजाफा किया है। निर्दलियों को पिछले विधानसभा चुनाव में 8.2 फीसदी मत मिले थे जबकि इस बार 9.5 प्रतिशत वोट मिला है। इसी के साथ उन्होंने अधिक सीटें भी हासिल की हैं।

 

मध्य प्रदेश

 

मत प्रतिशत की तस्वीर मध्य प्रदेश में बहुत दिलचस्प है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, कांग्रेस का मत प्रतिशत 2013 में 36.4 था जो 2018 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 40.9 फीसदी हो गया। वहीं, भाजपा का मत प्रतिशत 44.9 से गिरकर 41 फीसदी हो गया है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत भाजपा से मामूली ही कम है लेकिन इसने सीटों के मामले में कांटे की टक्कर में भगवा दल को पछाड़ दिया है। कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं तो 15 साल राज्य की सत्ता पर काबिज रही भाजपा 109 सीटें ही जीत पाईं। बसपा का वोट प्रतिशत इस बार गिरकर पांच फीसदी रह गया जबकि निर्दलियों का मत प्रतिशत मामूली रूप से बढ़कर 5.8 हो गया। वहीं कुछ अन्य पार्टियों ने भी बढ़त हासिल की है।

 

तेलंगाना

 

तेलंगाना में टीआरएस सत्ता में बड़े जनादेश के साथ लौटी है। इसके वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को करीब 34 फीसदी वोट मिले थे, वहीं इस बार इसे 46.9 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं। कांग्रेस ने भी अपने मत प्रतिशत को 25.2 से बढ़ाकर 28.4 फीसदी किया है। वहीं कांग्रेस की नई साथी तेदेपा की बुरी तरह से पराजय हुई है। भाजपा का मत करीब सात प्रतिशत पर बरकरार है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में इसे 10.4 फीसदी मत मिले थे।

 

मिजोरम

 

मिजोरम एक मात्र ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस को सत्ता और वोट प्रतिशत, दोनों का नुकसान हुआ है और भाजपा को बढ़त मिली है। बहरहाल, यहां विजेता तीसरी ताकत, मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) है जो स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाएगी। कांग्रेस को 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब 45 फीसदी मत मिले थे जो 2018 में गिरकर 30.2 प्रतिशत रह गए, जबकि भाजपा का मत प्रतिशत 0.4 से बढ़कर आठ फीसदी हो गया। एमएनएफ का मत प्रतिशत 28.8 से बढ़कर 37.6 हो गया है। साथ में, इसकी सीटों की संख्या पांच से बढ़कर 26 हो गई है। वहीं कांग्रेस की सीटें 34 से घटकर पांच रह गईं जबकि भाजपा ने राज्य में एक सीट जीती।

 

 

मत प्रतिशत के मामले में नोटा ने तमाम दलों को मात दी

 

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सभी उम्मीदवारों को खारिज करने (नोटा) के विकल्प को भी मतदाताओं ने तमाम क्षेत्रीय दलों से ज्यादा तरजीह दी है। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक 2.1 प्रतिशत वोट नोटा के खाते में गये। जबकि मिजोरम में नोटा का प्रतिशत सबसे कम (0.5 प्रतिशत) दर्ज किया गया। चुनाव वाले राज्यों में नोटा का मत प्रतिशत आप और सपा सहित अन्य क्षेत्रीय दलों से अधिक दर्ज किया गया। छत्तीसगढ़ की 90 में से 85 सीटों पर चुनाव लड़ रही आप को 0.9 प्रतिशत, सपा और राकांपा को 0.2 तथा भाकपा को 0.3 प्रतिशत वोट मिले। वहीं राज्य के 2.1 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनी पसंद बनाया। 

 

 

मध्य प्रदेश में 1.5 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनाया जबकि सपा को राज्य में एक और आप को 0.7 प्रतिशत वोट मिल सके। इसी तरह राजस्थान में माकपा को 1.3 प्रतिशत और सपा को 0.2 प्रतिशत मिले मतों की तुलना में राज्य के 1.3 प्रतिशत मतदाताओं ने सभी उम्मीदवारों को नकारते हुये नोटा को अपनाया। कमोबेश यही स्थिति तेलंगाना में भी देखने को मिली। राज्य में माकपा और भाकपा को 0.4 प्रतिशत और राकांपा को महज 0.2 प्रतिशत मत से संतोष करना पड़ा जबकि नोटा के खाते में 1.1 प्रतिशत मत पड़े। नोटा को इतनी अधिक संख्या में मतदताओं द्वारा अपनाये जाने से राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है।

 

-नीरज कुमार दुबे

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