By अंकित सिंह | Jul 14, 2020
कांग्रेस ने राज्य की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले सचिन पायलट को मंगलवार को उपमुख्यमंत्री एवं पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पदों से हटा दिया। इसके साथ ही पार्टी ने कड़ा रुख अपनाते हुए पायलट खेमे में गए सरकार के दो मंत्रियों विश्वेंद्र सिंह एवं रमेश मीणा को भी उनके पदों से तत्काल हटा दिया है। पार्टी ने मौजूदा राजनीतिक संकट के बीच कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं आने वाले तथा पायलट के साथ गए मंत्रियों के अलावा दो अन्य विधायकों को भी उनके पदों से हटा दिया है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस का कोई प्रदेश अध्यक्ष बगावत किया है। इससे पहले भी हमने देखा है कि पार्टी के कई प्रदेश अध्यक्ष पार्टी के खिलाफ बगावत कर चुके हैं।
यह बगावत पार्टी के आंतरिक कलह और गुटबाजी के कारण होती है। वर्तमान में देखें तो राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद सचिन पायलट हाशिए पर थे। उनके साथ उपमुख्यमंत्री का पद तो सिर्फ नाम के लिए जुड़ा था सिक्का सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत का ही चलता था। विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट ने राजस्थान में पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी। लेकिन उनकी मेहनत का इनाम उनको नहीं मिल पा रहा। कहीं ना कहीं पार्टी आलाकमान उनकी जगह अशोक गहलोत को ज्यादा महत्व दे रही थी। एक कारण यह भी है कि फिलहाल पार्टी दो गुटों में बटी हुई है। यह गुट युवा और ओल्ड बिग्रेड की है। 10 जनपद में ओल्ड बिग्रेड की अच्छी पकड़ है। अशोक गहलोत भी ओल्ड बिग्रेड से आते है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि उनकी सुनवाई आलाकमान में ज्यादा हो रही थी। पायलट का यह भी आरोप है कि उपमुख्यमंत्री होने के बावजूद भी गहलोत किसी निर्णय में उन्हें साझीदार नहीं बनाते थे। हालांकि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चुनाव पूर्व से ही तनातनी है।
ऐसा ही कुछ हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले देखने को मिला था। हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। अशोक तंवर के हाथों में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की कमान थी। परंतु दूसरे नेताओं से टकराव के कारण उन्हें पार्टी में अलग-थलग होना पड़ा। जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। जिसके साथ ही उन्होंने पार्टी से ही नाता तोड़ लिया। अशोक तंवर राज्य के कुछ पार्टी नेताओं के खिलाफ बिगुल फूंके हुए थे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। यही हाल हमने महाराष्ट्र में भी देखा था। मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से संजय निरुपम की छुट्टी करके मिलिंद देवड़ा को अध्यक्ष बनाया गया था। संजय निरुपम और मिलिंद देवड़ा के बीच की गुटबाजी सभी को पता है।
पार्टी के रवैए से परेशान तत्कालीन बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने भी इस्तीफा दे दिया था। अपना इस्तीफा देने के बाद ही उन्होंने सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड का दामन थाम लिया था। अशोक चौधरी का भी यह आरोप था कि पार्टी गुटबाजी को लेकर कुछ करने में नाकाम है। बिहार के कुछ नेता दिल्ली में उनके खिलाफ लॉबिंग कर रहे थे। उधर ठीक चुनाव से पहले झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अजय कुमार ने भी इस्तीफा दे दिया था। अजय कुमार इस्तीफा देने के बाद आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। ऐसी गुटबाजी पार्टी के ब्लॉक और जिला स्तर पर भी देखने को मिलती है। जाहिर सी बात है आलाकमान की सुस्ती की वजह से पार्टी में फिलहाल गुटबाजी हावी होती जा रही है।