कंक्रीट के साथ मिलकर निर्माण कार्यों को हमारी सोच के अनुरूप संरचना प्रदान करने में जो अति आवश्यक चीज काम में लाई जाती है वह है ‘सीमेंट’। सड़कों का निर्माण हो, तालाबों, पुलों, सुरंगो, भवनों या इमारतों का निर्माण, बिना सीमेंट के संभव नहीं। सीमेंट का इस्तेमाल हजारों सालों से किया जाता रहा है, जैसे जैसे हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं सीमेंट के उत्पादन और उपयोग में लगातार बृद्धि हो रही है किन्तु पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो सीमेंट पर्यावरण के बिलकुल भी अनुकूल नहीं है।
वैज्ञानिको के मृताबिक सीमेंट कार्बन उत्सर्जन का एक अहम् स्त्रोत है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। लंदन के थिंक टैंक चाथम हाउस के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कार्बन डाईऑक्साइड का आठ फीसदी उत्सर्जन सीमेंट से होता है। सीमेंट से पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन के नियंत्रण के लिए विश्वभर में सीमेंट के नए विकल्पों की तलाश की जा रही है।
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हाल ही में वैज्ञानिक सीमेंट बनाने का एक ऐसा तरीका खोजने कामयाब हुए हैं जिससे निर्मित सीमेंट पर्यावरण के लिए काफी सुरक्षित होगा और ऊर्जा की भी बचत होगी। माइक्रोबायोलॉजी शोधकर्ताओं के अनुसार तरह तरह के बैक्टीरिया के मिश्रण को कई तरह के कचरे के साथ मिलाकर ऐसा उत्पाद बनाया जा सकता है, जो गारे की जगह ले सके। यदि इसमें कुछ और सही बदलाव लाए जा सकें तो यह उत्पाद मजबूत कंक्रीट की जगह ले सकता है। परीक्षण की शुरुआत वैज्ञानिको ने मिट्टी में मिलने वाले एक साधारण बैक्टीरिया से की जिसे यूरिया और पोषक तत्वों के एक मिश्रण में मिलाया गया। इस दौरान तापमान को तीस डिग्री के आसपास रखा गया।
इटली के जीवविज्ञानी पिएरो तिआनो के मुताबिक इस रासायनिक प्रक्रिया में मिश्रण के अंदर बैक्टीरिया बढ़ने लगता है। सीमेंट बनाने के लिए बैक्टीरिया को एक विशेष संख्या तक पहुंचना होता है। करीब तीन घंटे के फर्मेंटेशन के बाद मिश्रण इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है। इस बैक्टीरिया वाले मिश्रण को बालू, सीमेंट के कचरे और चावल के भूसे की राख में मिलाया जाता है। क्योंकि इनमें से ज्यादातर कच्चा माल किसी ना किसी तरह का कचरा है, इसे बनाने में खर्च बहुत कम आता है। साधारण सीमेंट के इस्तेमाल में जहां 1400 से 1500 डिग्री सेल्सियस तक के ऊंचे तापमान की जरूरत पड़ती है, जिस पर लाइमस्टोन सीमेंट में बदलता है वहीं बैक्टीरिया केवल 30 डिग्री तापमान पर अपना काम कर देता है जिससे ऊर्जा की बहुत बचत होती है। इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया कैल्शियम कार्बोनेट का निर्माण करता है, जो सीमेंट के कणों को आपस में जोड़ता है।
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रसायनविज्ञानी, लिंडा विटिग के मुताबिक मिश्रण में बैक्टीरिया के आदर्श घनत्व का पता होना बहुत जरूरी है। हम ये जानते हैं कि ज्यादा बैक्टीरिया के होने का मतलब ये नहीं होता कि सीमेंट की गुणवत्ता बेहतर होगी। इसके उलट, कई बार बैक्टीरिया की संख्या अधिक होने के कारण प्रोडक्ट की मजबूती कम हो जाती है।
ग्रीस की नियापोलिस यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियर निकोस बकास का कहना है कि हमने इस मैटीरियल को गारे के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया। यह परंपरागत कंक्रीट जितना मजबूत तो नहीं लेकिन इसे आकार देना और लगाना काफी आसान है। इस शोध के शुरुआती नतीजे सकारात्मक रहे हैं, आगे बैक्टीरिया को और लाभकारी बनाये जाने के लिए काम किया जा रहा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगले दस सालों से भी कम समय में इस नई किस्म के सीमेंट का इस्तेमाल यूरोपीय निर्माण क्षेत्र में दिखाई देने लगेगा।
अमृता गोस्वामी