राज्य चुनाव: भाजपा के लिए बड़ा दांव, कांग्रेस के लिये भी विपक्ष के नेतृत्वकर्ता के तौर पर अहम

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 09, 2022

नयी दिल्ली| पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को जहां केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिये 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व पहली महत्वपूर्ण परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं, इनके नतीजे संयुक्त विपक्ष का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता होने के कांग्रेस के दावे के लिये भी महत्वपूर्ण होंगे।

चुनाव वाले पांच राज्यों में से चार में भाजपा सत्तारूढ है। निर्वाचन आयोग ने शनिवार को पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की है।

चुनाव वाले चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर में भाजपा की सरकार है, जबकि पंजाब में कांग्रेस सत्तारूढ है और ये चुनाव तीन ‘विवादित’ कृषि कानूनों को समाप्त करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद भाजपा की पहली महत्वपूर्ण परीक्षा है। उत्तर भारत के किसानों के बड़े वर्ग के बीच सरकार के प्रति बढ़ रहे असंतोष को समाप्त करने के लिए मोदी ने तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया था।

यदि 10 फरवरी से शुरू होने वाले चुनाव के नतीजे सत्तारूढ दल के लिए महत्व रखते हैं तो इनके परिणाम विपक्षी खेमे के लिए भी उतना ही राजनीतिक महत्व रखते हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने आक्रामक चुनावी अभियान छेड़ दिया है, जिनके निशाने पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने वाले किसी भी संयुक्त विपक्ष का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता होने के कांग्रेस के दावे को भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय क्षत्रपों की परीक्षा से गुजरना होगा।

इन चुनावों के परिणाम विपक्ष की राजनीतिमें नये समीकरणों को जन्म दे सकते हैं। यह थ्योरी इसलिए भी ज्यादा प्रभावी नजर आती है क्योंकि सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी उन चार में से तीन राज्यों में मुख्य रूप से चुनौती देने वाली पार्टी है, जहां भाजपा सत्ता में है।

पंजाब में कांग्रेस खुद सत्ता में है। भाजपा के लिए, 10 और 14 फरवरी को होने वाले मतदान के पहले दो चरण शायद सबसे चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हीं में पंजाब और जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट पड़ेंगे। पंजाब में किसानों का आंदोलन सबसे तीव्र था और पश्चिमी उप्र भी इससे जुड़े विरोध प्रदर्शनों से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। गोवा और उत्तराखंड दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है और वहां भी 14 फरवरी को ही मतदान है। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पहले दो चरणों में दिखने वाले चुनावी रुझान उत्तर प्रदेश के लिए शेष पांच चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

राज्य में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं, जहां 15 करोड़ से अधिक मतदाता हैं। कुछ हलकों में अटकलें लगाई जा रही थीं कि भाजपा चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में चुनाव राज्य के पूर्वी हिस्से से शुरू हों, जहां माना जाता है कि किसानों के विरोध के मद्देनजर पार्टी राज्य के पश्चिमी हिस्से की तुलना में मजबूत स्थिति में है।

हालांकि, चुनाव कार्यक्रम में पहले की पारंपरिक पद्धति का पालन किया गया है और यह राज्य के पश्चिमी हिस्से से पूरब की ओर बढ़ेगा। यदि 2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में मजबूत लहर थी, जिसके कारण पूरे राज्य में भाजपा को फायदा मिला था, तो इस बार भाजपा को जाटों के एक वर्ग के बीच कथित गुस्से की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे सत्तारूढ पार्टी के खिलाफ अपने पक्ष में भुनाने के लिए समाजवादी पार्टी और रालोद ने हाथ मिलाया है।

भाजपा नेताओं ने पिछले चुनाव में मिली जीत के कारनामे को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हुए विकास और हिंदुत्व के दम पर दोहराने का विश्वास व्यक्त किया है, जबकि मोदी पार्टी के अभियान का प्रमुख स्रोत बने हुए हैं।

भाजपा को उत्तराखंड में कांग्रेस के खेमे में मतभेदों से भी फायदा होने की उम्मीद है, भले ही उसे राज्य में दो मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा हो।

गोवा और मणिपुर में भी बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, क्योंकि भाजपा ने दोनों राज्यों में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को ‘दलबदल’ के जरिये कमजोर करने का काम किया है।

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