By अशोक मधुप | May 22, 2021
कोरोना के इस दौर में पारिवारिक तानाबाना बिखर गया है। आदमी एकाकी होकर रह गया है। बच्चों की दिनचर्या बिल्कुल बदल गई है। आउट डोर गेम बंद हो गए। इन्डोर गेम भी न के बराबर खेले जा रहे हैं। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बच्चों को मोबाइल मिल गए तो वे मोबाइल में ही लग गए। वही उनका जीवन हो गया। गेम भी उसी पर खेले जाने लगे। इस दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए तो परिवार के बुजुर्ग। वे एक कमरे में कैद होकर रह गए। घूमना तथा सामाजिक गतिविधि रुक गई। बेटे−बहुओं द्वारा कमरों में लगाए गए टेलीविजन ही उनके साथी बन गये। इस पर आ रहीं कोरोना की भयावह तस्वीर और समाचार इन्हें निराशा की ओर ले जा रहे हैं।
कोरोना से पहले परिवार के बुजुर्ग की दिनचर्या सवेरे के घूमने से शुरू होती थी। वे जब घूमने जाते थे तो पार्क में या रास्ते में मिलने वालों से बतियाते, हंसते−बोलते हुए आनंद का अनुभव करते थे। आठ बजे के आसपास लौटते थे। स्नान−ध्यान के बाद नाश्ता होता। इसी के साथ इनका अखबार वाचन शुरू हो जाता। समय ही समय होता। सही मायनों में ये ही अखबार पढ़ते हैं। अखबार के पहले पृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ की अंतिम पंक्ति के आखिरी शब्द तक ये बाँचते। इसमें इनके दो ढाई घंटे कट जाते। फिर टीवी देखते। खाने का समय हो जाता। भोजन कर आराम करते। शाम के समय मुहल्ले या कालोनी के बुजुर्ग एकत्र होते। राजनीति के साथ−साथ दुनिया भर की समस्याओं पर वार्ता होती। देखने वाले समझ जाते कि बहुत गंभीर चिंतन हो रहा है। शाम को परिवार के साथ समय बिताना, भोजन करने के बाद टीवी देखकर सो जाना इनकी दिनचर्या में शामिल था।
कोरोना के सवा साल के दौरान अब ये अपने कमरे तक ही सीमित होकर रह गये। घर से बाहर निकलना बंद हो गया। कोरोना का बैक्टीरिया न आ जाए, इसलिए अब घर में अखबार भी नहीं आता। पहले परिवार के बड़े, बच्चों को बाहर जाने से रोकते थे। अब बुजुर्गों को रोका जा रहा है। दरवाजा खोल नहीं पाते कि बेटे-बहू की जोरदार आवाज सुनाई पड़ती है, कहां जा रहे हो? पहले ये अपने बच्चों को टोकते थे, अब बच्चे जरा−जरा-सी बात पर टोकते हैं। इन हालात से इनमें झुंझलाहट और गुस्सा बढ़ रहा है। टेलीविजन के समाचार में कोरोना की दिखाई जाती भयावहता इनमें डिप्रेशन पैदा कर रही है। कोरोना से मरने वालों के फोटो और श्रद्धांजलि के संदेश इन्हें और तनाव दे रहे हैं। मोबाइल से नंबर डायल करते ही कोरोना बचाव की बजती टोन से लेकर यू−ट्यूब पर कोरोना की खबरें और उपचार के बारे में इतनी वीडियो आ रही हैं, कि आदमी की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे।
बुजुर्ग अपनी बात किसी को बता नहीं पाते। हर समय तनाव में रहते हैं। कुछ का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहने लगा है। शुगर बढ़ रही है, नींद नहीं आ रही। ये ही आगे चलकर परेशानी का कारण होंगे। लगातार लेटे रहने से आगे चलकर और बीमारी लगेंगी। रीढ़ की हड्डी धीरे-धीरे कमजोर होगी। परिवार के युवक अपनी दिनचर्या में व्यस्त होने के कारण अपने अभिभावक को सुविधाएँ सब दे रहे हैं, समय नहीं दे पा रहे। माता-पिता को धन दौलत की नहीं अपने बच्चों के सामीप्य की लालसा होती है।
किसी की एक कहानी है। पति−पत्नी दीपावली की खरीदारी करने जा रहे हैं। पहले दिन मां से कह दिया है कि वह अपनी जरूरत के सामान की लिस्ट बना दे। कार चलाते बेटा पत्नी से कहता है कि देखो मां ने क्या मंगाया है। वह मां के दिए कागज पढ़ती है−
"तुम्हारे शहर की किसी दुकान से मिल जाए तो फुरसत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना। ढलती हुई सांझ हूं मैं अब। मुझे गहराते अंधियारे से डर लगता है। मौत को पल−पल अपनी ओर आते देख मैं डरती हूँ, किंतु ये सत्य है। अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है। जब तक जीवित हूँ तब तक कुछ पल मेरे पास बैठकर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बांट लिया करो।"
बंद कमरा, टीवी पर आते हृदय विदारक समाचार, फेसबुक पर सुबह से शुरू हो जाने वाले मौत के संदेश इन्हें डरा रहे हैं। डिप्रेशन में ले जा रहे हैं। आज इन्हें जरूरत है थोड़े स्नेह, प्यार और अपनों के समय की। ये मिलने लगे तो इनको मानो अमृत मिल जाएगा, इनका जीवन सरल हो जाएगा।
-अशोक मधुप