पर्यावरण के बड़े खतरों से निपटने के लिये कोशिशें भी बड़ी हों

By ललित गर्ग | Jun 05, 2024

विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इंसानों को प्रकृति, पृथ्वी एवं पर्यावरण के प्रति सचेत करने के लिए यह खास दिवस मनाया जाता है और देश एवं दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की याद दिलाई जाती है। यह सर्वविदित है कि इंसान व प्रकृति के बीच गहरा संबंध है। इंसान के लोभ, सुविधावाद एवं तथाकथित विकास की अवधारणा ने पर्यावरण का भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण न केवल नदियां, वन, रेगिस्तान, जलस्रोत सिकुड़ रहे हैं बल्कि ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं, तापमान का 50 डिग्री पार करना जो विनाश का संकेत तो है ही, जिनसे मानव जीवन भी असुरक्षित होता जा रहा है। इस वर्ष बढ़ी हुई गर्मी एवं तापमान ने न केवल जीवन को जटिल बनाया बल्कि अनेक लोगों की जान भी गयी। वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियां गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। 

 

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों एवं महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। इस बार पर्यावरण दिवस ऐसे समय में आया है, जबकि अनेक देश युद्ध की विभीषिका के कहर से जूझ रही है और दुनिया ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ता तापमान, असंतुलित पर्यावरण जैसी चिंताओं से रू-ब-रू है। पर्यावरण को समर्पित यह खास दिन हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने एवं उसके प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रेरित करता है। विश्व पर्यावरण दिवस 1974 से ही मनाया जाता है, जब संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार इसकी घोषणा की थी। सऊदी अरब 2024 में विश्व पर्यावरण दिवस समारोह की मेज़बानी करेगा, जिसका थीम होगी ‘हमारी भूमि, हमारा भविष्य।’ यह थीम भूमि और इकोसिस्टम को बहाल करने, जैव विविधता की रक्षा करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक सामूहिक प्रयास पर जोर देती है। इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय है ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता।’ मानवता भूमि पर निर्भर है। फिर भी, पूरी दुनिया में प्रदूषण, जलवायु अराजकता और जैव विविधता विनाश का एक जहरीला मिश्रण स्वस्थ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहा है और संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र मृत क्षेत्रों में बदल रहा है। इस वर्ष का विषय का फोकस ‘हमारी भूमि’ नारे के तहत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे पर केंद्रित है।

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ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव अब साफतौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि गर्मियां आग उगलने लगी हैं और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। असंतुलित पर्यावरण विनाश का कारण बन रहा है। आजकल जब उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्से रेकार्ड गर्मी से तप रहे हैं तब  पश्चिम बंगाल और केरल में भयानक बारिश हो रही है। इस तरह एक साथ इतनी तेज बारिश से नुकसान होता है। बढ़ते शहरीकरण विकास योजनाओं और जिंदगी से जुड़े हर क्षेत्र में पानी की जरूरतें बढ़ रही है। दूसरी तरफ पानी के कुदरती स्रोत कम होते जा रहे हैं। हमें पानी के इस्तेमाल के तौर-तरीकों में तुरंत बदलाव करते हुए संयम बरतने की जरूरत है। खेती में पानी के इस्तेमाल, पानी को इकट्ठा करने और उन्हें भूगर्भीय स्रोतांे तक पहुंचाने के तौर-तरीकों और पानी के आम इस्तेमाल को बदलना होगा। नई सरकार को इस पर ज्यादा ध्यान देना होगा क्योंकि पानी की उपलब्धता के सारे समीकरण बदल गए हैं।


तापमान का 50 डिग्री पार करना जटिल एवं गंभीर पर्यावरणीय घटना है। फ्रिज, एसी, कूलर और कारों की बिक्री बढ़ने से बिजली की खपत बढेगी। यह स्थिति कोयले, पेट्रोल, डीजल के इस्तेमाल को बढ़ायेगी। ऐसे में लगातार ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही धरती और गर्म हो जाएगी। देश-दुनिया में गर्मी के नए रेकार्ड बनेंगे। इन दिनों कई शहरों का तापमान रेकार्ड तोड़ चुका है। इससे दिहाड़ी मजदूर, किसान और मेहनतकश लोगों को जूझना पड़ रहा है। वहीं ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में पानी की कमी हो रही है तो सूखी जगहों पर बेतहाशा बारिश। इन घटनाओं की वजह को समझना होगा, उसे गंभीरता से लेना होगा। नई बनने वाली सरकार को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर विशेष ध्यान देना होगा। जलवायु परिवर्तन के अलावा कई समस्याएं मानव निर्मित भी है। माना कि बादल फटने, जंगलों में आग जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन अपेक्षाकृत नए माने जाने वाले हिमालय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में नए बांध और सड़क बनाए जाने से होने वाले नुकसान ज्यादा सामने आ रहे हैं। 


जलवायु परिवर्तन ऐसा मसला है जिसमें पर्यावरण से होने वाला खतरा किसी देश की सीमा या उसकी हैसियत नहीं देखता। सबको बराबर नुकसान होता है। इसलिए विश्व के सभी देशों एवं विशेषतः विकसित एवं शक्तिसम्पन्न देशों को उदार एवं दूरगामी नजरिया अपनाना होगा। अपने-अपने स्वार्थों को नजरअंदाज करते हुए विश्व मानवता को केन्द्र में रखना जरूरी है। कई बिंदुओं पर दुनिया पीछे जा रही हैं। दुनियाभर में जो युद्ध चल रहे हैं, उनकी वजह से भी सारे समीकरण बदल गये हैं। पहले कोविड ने नुकसान पहुंचाया, उसके बाद रूस-युक्रेन युद्ध और इस्राइल-गाजा का मामला चल रहा है। युद्धों का पर्यावरण पर सबसे घातक असर पड़ता है और यही जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण भी बनते हैं। पर्यावरण का अर्थ संपूर्ण प्राकृतिक परिवेश से है जिसमें हम रहते हैं। इसमें हमारे चारों ओर के सभी जीवित और निर्जीव तत्व शामिल होते हैं, जैसे कि हवा, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, जानवर और अन्य जीव-जंतु। पर्यावरण के घटक परस्पर एक-दूसरे के साथ जुड़कर एक समग्र पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। हालांकि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और मानव जीवनशैली के लिए इनके गलत उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। दूषित पर्यावरण उन घटकों को प्रभावित करता है, जो जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। ऐसे में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने, प्रकृति और पर्यावरण का महत्व समझाने की आज बड़ी आवश्यकता है, इस दृष्टि से विश्व पर्यावरण दिवस मनाना केवल आयोजनात्मक न होकर प्रयोजनात्मक बने, यह अपेक्षित है। 


बदलते मौसम का ग्लेशियर पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में पर्यावरण के बढ़ रहे दुष्परिणामों के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। ऐसे में मुंबई समेत दुनिया के कई हिस्सों एवं महानगरों-नगरों के डूबने की आशंका तेजी से बढ़ चुकी है। इसका खुलासा अमरीकन नेशनल अकादमी ऑफ साइंस ने किया है। औद्योगिक गैसों के लगातार बढ़ते उत्सर्जन और वन आवरण में तेजी से हो रही कमी के कारण ओजोन गैस की परत का क्षरण हो रहा है। इस अस्वाभाविक बदलाव का प्रभाव वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तनों के रूप में दिखलाई पड़ता है। सार्वभौमिक तापमान में लगातार होती इस वृद्धि के कारण विश्व के ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं। ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण महासागर में जलस्तर में ऐसी ही बढ़ोतरी होती रही तो महासागरों का बढ़ता हुआ क्षेत्रफल और जलस्तर एक दिन तटवर्ती स्थल, भागों और द्वीपों को जलमग्न कर देगा। ये स्थितियां भारत में हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने से एक बड़े संकट का कारण बन रही है। हाल के दिनों में हिमालयी राज्यों में जंगलों में आग की जो घटनाएं घटीं, वे ग्लेशियरों के लिए नया खतरा हैं। वनों में आग तो पहले भी लगती रही हैं, पर ऐसी भयानक आग काफी खतरनाक है। ग्रीन हाउस गैसों के असर से पूरी दुनिया के साथ ही हिमालय भी गरम हुआ है। हाल में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर पश्चिमी हिमलाय के औसत तापमान में पिछले दो दशक में 2.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा उसके पहले के सौ साल में हुई बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा है। भारत समेत पूरे विश्व में प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति खतरे में हैं। प्रकृति जीवन जीने के लिए किसी भी जीव को हर जरूरी चीज उपलब्ध कराती है। ऐसे में अगर प्रकृति प्रभावित होगी तो जीवन प्रभावित होगा। प्रकृति को प्रदूषण से बचाने एवं संतुलित मौसम चक्र को कायम करने के उद्देश्य से पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत हुई। 


- ललित गर्ग

लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

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