विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर पर सबसे पहले कदम रखने वाले सर एडमंड हिलेरी के अंदर इस साहसिक कार्य का जज्बा कूट कूट कर भरा था लेकिन इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद भी उनका स्वभाव बहुत सहज और सरल था। सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई 1953 को केवल 33 साल की आयु में नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनजिंग नोर्गे के साथ माउंट एवरेस्ट पर पहली बार कदम रखा था।
न्यूजीलैंड में 20 जुलाई 1919 को जन्मे सर हिलेरी को स्कूल के दिनों से ही पर्वतारोहण का शौक था और उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के बाद हिमालय ट्रस्ट के माध्यम से नेपाल के शेरपा लोगों के लिए कई सहायता कार्य भी किये। उन्होंने 1956, 1960−61 और 1963−65 में भी हिमालय की अन्य चोटियों पर पर्वतारोहण किया था।
11 जनवरी 2008 को न्यूजीलैंड के ओकलैंड में उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। हिलेरी को 1985 में भारत में न्यूजीलैंड का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। नेपाल सहित अन्य कई देशों ने भी उन्हें अपने राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया। वह बांग्लादेश में न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त और नेपाल में राजूदत भी रहे।
सर हिलेरी 1958 में कामनवेल्थ ट्रांसअंटार्किटक एक्सपिडीशन के तहत दक्षिणी ध्रुव गए थे। वह 1985 में नील आर्मस्ट्रांग के साथ एक छोटे विमान में उत्तरी धु्रव गए थे। इस तरह वह दोनों ध्रुवों और माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले शख्स थे।
1975 में काठमांडू में एक विमान दुर्घटना में अपनी पत्नी लुईस और 16 साल की बेटी का निधन हो जाने के बाद उन्होंने उनका अंतिम संस्कार नेपाल की बागमती नदी में नेपाली विधि से ही किया था। इस दुर्घटना के बाद वे पूरी तरह टूट गए लेकिन अपना दुःख भुलाने के लिए वे नेपाल के प्राकृतिक सौंदर्य और वहाँ के सीधे सादे लोगों के बीच पहुँच गए। 1989 में उन्होंने दूसरी शादी की।
सर एडमंड हिलेरी अपने जीवन का बड़ा भाग हिमालयन ट्रस्ट के द्वारा नेपाल के शेरपाओं की सहायता में बिताया। इस ट्रस्ट की स्थापना उन्होंने स्वयं की थी और अपना काफी समय एवं श्रम इसमें लगाया था। हिमालय के इस निर्जन क्षेत्र में कई स्कूलों एवं अस्पतालों को बनवाने एवं चलाने में वे सफल हुए।