मंदी का यह माहौल क्षणिक है, सरकार तो उपाय कर रही है आप भी खरीदारी करते रहिये

By प्रह्लाद सबनानी | Sep 04, 2019

वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तिमाही में देश में आर्थिक विकास की दर नीचे गिरकर 5 प्रतिशत पर आ गई। यह पिछले 25 तिमाहियों के दौरान दर्ज की गई विकास दर में सबसे कम है। इस कमी के लिए कई कारण गिनाए जा रहे हैं। यथा, उत्पादों की खपत की वृद्धि दर में आई कमी, इस तिमाही में संसदीय चुनावों के चलते केंद्र सरकार के पूँजीगत व्यय में आई कमी, अमेरिका एवं चीन के बीच व्यापार युद्ध का आग़ाज़ जिसके चलते विश्व व्यापार में अस्थिरता आना, चीन द्वारा अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया जाना ताकि अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध से निपटा जा सके, देश में ब्याज दरों का समय पर कम नहीं किया जाना, मज़दूरी की वृद्धि दर में मामूली बढ़ोतरी होना, वाहनों की बिक्री में कमी आना, आदि। 

 

उक्त कारणों के चलते वित्तीय सेवाएँ, रियल एस्टेट एवं व्यावसायिक सेवाओं की वृद्धि दर में तो भारी कमी देखने में आई है, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही के 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर से वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तिमाही में नीचे गिरकर 5.9 प्रतिशत हो गई। इसी प्रकार विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत से गिरकर 0.6 प्रतिशत हो गई। 

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विकास दर सभी क्षेत्रों में घटी हो, ऐसा नहीं है। जिन-जिन क्षेत्रों में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलायी जा रही हैं, उन क्षेत्रों में विकास दर में अच्छी वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। यथा, बिजली, गैस, जल आपूर्ति एवं अन्य उपयोगी सेवाओं में वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। साथ ही, व्यवसाय, होटल, यातायात, संचार एवं ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं में वृद्धि दर 6 प्रतिशत से बढ़कर 7.1 प्रतिशत हो गई। 

 

आर्थिक विकास की दर में कमी केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य देशों में भी देखने में आई है। यह अमेरिका एवं चीन के मध्य व्यापारिक युद्ध से शुरू होकर यूरोपीय देशों एवं दक्षिण पूर्वीय देशों में फैली है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहनों की बिक्री एवं विनिर्माण क्षेत्र में आई कमी के चलते वर्ष 2019 में विश्व में आर्थिक विकास दर मात्र 3.2 प्रतिशत होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, जो वर्ष 2017 में 3.8 प्रतिशत थी। 

 

विकास दर में आ रही कमी को सरकार ने गम्भीरता से लिया है एवं इसे सुधारने कि दृष्टि से विभिन्न औद्योगिक संस्थानों, बैंकरों, अर्थशास्त्रियों आदि से वित्त मंत्री महोदय द्वारा चर्चा करने के उपरांत कई उपायों की घोषणा लगातार की जा रही है। 

 

किसानों की क्रय शक्ति में सुधार करने के उद्देश्य से प्रधान मंत्री किसान योजना के अंतर्गत 14.7 करोड़ किसानों को रुपए 6000 प्रतिवर्ष उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल रुपए 87,600 करोड़ की राशि किसानों को उपलब्ध करायी जाएगी। दिनांक 26.08.2019 तक लगभग 7 करोड़ किसानों को दो किश्तों का भुगतान किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी ऐक्ट के अंतर्गत भी ग्रामीण इलाक़ों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इस वर्ष मानसून की वर्षा सामान्य से अधिक रही है, जिसके कारण ख़रीफ़ एवं रबी, दोनों ही फ़सलों में अच्छी वृद्धि देखने को मिल सकती है। अतः किसानों के हाथों में पैसा आएगा, जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। 

 

केंद्र सरकार द्वारा, संसदीय चुनावों के चलते, वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तिमाही में पूँजीगत ख़र्चे की मद में तुलनात्मक रूप से बहुत कम ख़र्च किया गया है। जबकि पूरे वर्ष में रुपए 338,569 करोड़ की राशि इस मद में ख़र्च की जानी है। जोकि वर्ष 2014-15 में ख़र्च की गई राशि रुपए 196,681 करोड़ से काफ़ी अधिक है। अब इस मद पर ख़र्चे को केंद्र सरकार को प्राथमिकता देनी होगी।  

 

हमारे देश के उत्पाद को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए, उसके समस्त घटकों की लागत को कम किए जाने कि आवश्यकता होगी। सरकार द्वारा इस ओर भी कई प्रयास किए जा रहे हैं। यथा, पूँजी की लागत कम करने के लिए बैंकों द्वारा ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की जा रही है, टैक्स की दरों में कमी करने हेतु उत्पाद शुल्क एवं जीएसटी की दरों को समय समय पर कम किया जा रहा है, देश में मज़दूर बिल कोड 2019 लागू कर, श्रम सम्बंधी क़ानूनों में सुधार किया जा रहा है ताकि विदेशी कम्पनियों को हमारे देश में विनिर्माण इकाइयों को स्थापित करने में आसानी हो, विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करायी जा रही हैं एवं इस हेतु रुपए 100 लाख करोड़ का निवेश करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, रुपए एवं डॉलर की विनिमय दर को बाज़ार से जोड़ दिया गया है, ताकि देश से निर्यात में वृद्धि हो सके। हाल ही में चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करके अमेरिका द्वारा चीन से आयात पर बढ़ायी गई आयात-कर की दरों को लगभग निष्प्रभावी बना दिया है। बिजली, गैस, पेट्रोल एवं डीज़ल की दरों को भी कम करना चाहिए जिससे उत्पादों की उत्पादन लागत में कमी हो। हाल ही में केंद्र सरकार ने कई क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा को भी बढ़ाया है ताकि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को और अधिक आकर्षित किया जा सके। 

 

सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग देश की अर्थव्यवस्था के विकास में अहम ज़िम्मेदारी निभाता है। इसकी देश के सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन में 45 प्रतिशत, निर्यात में 48.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। अतः वर्ष 2019-20 के लिए, केंद्र सरकार ने अपने उपक्रमों के लिए, रुपए 50,000 करोड़ के उत्पादों की ख़रीदी इस क्षेत्र से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। सरकार के उपक्रम अपनी कुल ख़रीदी का न्यूनतम 25 प्रतिशत हिस्सा इस क्षेत्र से ख़रीदेंगे। साथ ही, इस क्षेत्र में तरलता में सुधार के उद्देश्य से वस्तु एवं सेवा कर के वापसी की स्थिति में कर की अदायगी 60 दिनों के अंदर कर दी जाएगी एवं अभी तक बक़ाया समस्त मामलों का निपटान भी अगले 30 दिनों के अंदर कर दिया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा सरकारी क्षेत्र के बैंकों को रुपए 70,000 करोड़ की राशि तुरंत जारी की जा रही है। इससे इन बैंकों की तरलता में सुधार होगा और ये बैंक रुपए 5 लाख करोड़ तक की राशि का नया ऋण प्रदान कर सकेंगे। इससे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों, छोटे व्यापारियों, खुदरा उधारकर्ता एवं कम्पनियों को लाभ होगा।

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ऑटोमोबाइल क्षेत्र की वृधि दर में आई कमी को दूर करने के उद्देश्य से भी कुछ उपायों की घोषणा की गई है। यथा, बीएस-4 आधारित वाहनों को 31.03.2020 तक ख़रीदा जा सकेगा जिसकी वैद्यता उनके पंजीकरण की अवधि तक लागू रहेगी। 31.03.2020 तक ख़रीदे गए समस्त वाहनों के लिए लागू मूल्यह्रास की दर को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जा रहा है। विद्युत वाहनों के लिए आधारभूत संरचना का विकास किए जाने पर सरकार का ध्यान रहेगा एवं इसके लिए बैटरी एवं सहायक उत्पादों का भारत में ही उत्पादन कर निर्यात किए जाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। पुराने वाहनों के स्थान पर नए वाहनों के ख़रीदने सम्बंधी प्रतिबंधों को हटाया जा रहा है। अब केंद्र सरकार द्वारा निर्यात एवं रियल एस्टेट क्षेत्रों को भी रियायतों की घोषणा शीघ्र ही की जा सकती है। साथ ही, जीएसटी दरों में भी कुछ कमी देखने को मिल सकती है। 

 

अंत में, यही कहा जा सकता है कि इस समय जब मुद्रा स्फीति की दर लगातार कम बनी हुई है, विभिन्न कम्पनियों द्वारा विभिन्न उत्पादों की ख़रीद पर भारी छूट दी जा रही है, विकास की दर सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है, ऐसा वक़्त सबसे अधिक ख़रीदारी करने का समय है। क्योंकि, जैसे ही विकास दर में वृद्धि दृष्टिगोचर होने लगेगी, कम्पनियों द्वारा भारी छूट वापिस ले ली जाएगी तथा मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि सम्भावित होगी जिससे इन उत्पादों के दाम बढ़ना शुरू होंगे। एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 200 अमेरिकी कम्पनियाँ अपने उद्योगों को चीन से भारत में स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं। देश में विदेशी निवेश लगातार बढ़ रहा है, वर्ष 2018-19 में प्रत्यक्ष विदेशी एक्वटी निवेश 45 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा। सऊदी अरब की आरामको नामक कम्पनी 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नया निवेश देश में करने जा रही है। इसी प्रकार, अन्य कई विदेशी कम्पनियाँ भारत में अपना निवेश करने जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका चीन के बीच व्यापार युद्ध का लाभ भी भारत को ही होना चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक के वार्षिक प्रतिवेदन के अनुसार, भारत में हाल ही में विकास दर में आई गिरावट मुख्य रूप से चक्रिय कारणों से है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद बहुत ही मज़बूत है। केंद्र सरकार ने भी अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से कई उपायों की घोषणा की है। इन सभी उपायों से देश की अर्थव्यवस्था में गति आते ही उत्पादों की क़ीमतों में वृद्धि हो सकती है। अतः अपनी ख़रीदारी में तेज़ी लाये जाने का यही उचित समय है।

 

-प्रह्लाद सबनानी

 

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