Shaurya Path: EAM Jaishankar ने India-China संबंधों को लेकर कई बड़े और नये खुलासे कर दिये हैं

By नीरज कुमार दुबे | Sep 28, 2023

भारत-चीन के तनावपूर्ण संबंधों के बीच विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने कहा है कि हिंद महासागर में पहले से कहीं अधिक चीन की उपस्थिति के मद्देनजर भारत की ‘‘तैयारी बहुत तार्किक’’ है। उन्होंने कहा कि सामरिक रूप से अहम क्षेत्र को लेकर उत्पन्न चिंताओं से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है अगर क्वाड (भारत,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान) देश मिलकर काम करें। ‘कांउसिल ऑफ फॉरेन रिलेशन’ में जयशंकर ने कहा, ''जब तक आप सीप को नहीं देखेंगे मोती हमेशा कमजोर ही लगेगा। उनका नजरिया थोड़ा अलग हो सकता है।’’ हम आपको बता दें कि जयशंकर से हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधि के बारे में सवाल किया गया था जिसे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ कहा जाता है। साथ ही पूछा गया था कि क्वाड समूह शक्ति संतुलन भारत या अमेरिका के विपरीत न हो जाए यह सुनिश्चित करने के लिए क्वाड क्या कर सकता है। जयशंकर ने कहा, ''अगर आप पिछले 20-25 साल के कालखंड को देखें तो हिंद महासागर में चीन की नौसेना की तेजी से बढ़ती गतिविधि पाएंगे। चीनी नौसेना के आकार में तेजी से वृद्धि हुई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब आप के पास बहुत बड़ी सेना होगी तो वह नौसेना निश्चित तौर पर कहीं तैनाती के संदर्भ में दिखेगी।’’ विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका के हम्बनटोटा में चीन द्वारा बंदरगाह निर्माण का हवाला दिया।


जयशंकर ने कहा, ''मैं कहूंगा कि पीछे अगर देखें तो तब की सरकारों ने, नीति निर्माताओं ने इसके महत्व और भविष्य में इनके संभावित उपयोग एवं महत्व को कमतर कर आंका।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक कुछ खास है और संभव है कि हम उनमें से कई को बहुत ही सावधानी से देखेंगे कि कहीं वे कोई सुरक्षा खतरा न पैदा करे। इसलिए भारतीय नजरिये से मैं कहना चाहता हूं कि यह हमारे लिए बहुत तार्किक है...केवल कोशिश या तैयारी न करे बल्कि वास्तव में चीन की बृहद उपस्थिति जो पहले नहीं देखी गई थी को लेकर तैयारी करें।’’ जयशंकर ने रेखांकित किया कि जरूरी नहीं कि समुद्र को लेकर चिंता दो देशो की हो बल्कि देशों की है जिनसे देशों को निपटना है। उन्होंने कहा कि समुद्री लुटेरो, तस्करी और आतंकवाद के खतरे हैं और ‘‘अगर कोई प्राधिकार न हो, कोई निगरानी नहीं हो, नियम आधारित व्यवस्था को लागू करने वाला कोई नहीं हो तो यह समस्या है।’’

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विदेश मंत्री ने कहा कि अगर कोई अमेरिका की ऐतिहासिक रूप से हिंद महासागर में उपस्थिति को देखेगा तो पाएगा कि आज उसकी उपस्थिति बहुत कम है। उन्होंने कहा, ''इससे अंतर पैदा हुआ है, इससे अंतर आ गया है और यह तब हुआ है जब खतरे वास्तव में बढ़ गए हैं क्योंकि समस्या खड़ी करने वाली ताकतें और लोग पहले के मुकाबले तकनीकी रूप से अधिक उन्नत हैं।’’


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह भी कहा कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से भारत और चीन के बीच संबंध ‘‘सामान्य’’ नहीं हैं और ‘‘संभवत: ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है।’’ विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोर देते हुए कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने सैनिकों को इकट्ठा करने के लिए चीन द्वारा दिया गया कोई भी स्पष्टीकरण वास्तव में तर्कसंगत नहीं है। हम आपको बता दें कि भारत लगातार कह रहा है कि पूर्वी लद्दाख से लगती सीमा पर हालात सामान्य नहीं है एवं एलएसी पर शांति एवं सौहार्द दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए अहम है। भारत और चीन के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के कुछ स्थानों पर गत तीन साल से गतिरोध बना हुआ है जबकि कई दौर की राजनयिक और सैन्य स्तर की वार्ता के बाद कई स्थानों से सैनिक पीछे हटे हैं।


विदेश संबंध परिषद में भारत-चीन संबंधों के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच इस हद तक तनाव है, तो इसका असर हर किसी पर पड़ेगा। 2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रहे जयशंकर ने कहा, ‘‘आपको पता है, चीन के साथ रिश्ते की खासियत ये है कि वे आपको कभी नहीं बताते कि वे ऐसा क्यों करते हैं। इसलिए आप अक्सर इसका पता लगाने की कोशिश करते रहते हैं और हमेशा कुछ अस्पष्टता रहती है।’’ जयशंकर ने कहा कि ‘‘चीनी पक्ष ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए लेकिन उनमें से कोई भी वास्तव में मान्य नहीं है।’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ऐसे देश के साथ सामान्य होने की कोशिश करना बहुत कठिन है जिसने समझौते तोड़े हैं। इसलिए अगर आप पिछले तीन वर्षों को देखें, तो यह सामान्य स्थिति नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संपर्क बाधित हो गए हैं, यात्राएं नहीं हो रही हैं। हमारे बीच निश्चित रूप से उच्च स्तर का सैन्य तनाव है। इससे भारत में चीन के प्रति धारणा पर भी असर पड़ा है।’’ जयशंकर ने कहा कि 1962 के युद्ध के कारण 1960 और 70 के दशक में धारणा सकारात्मक नहीं रही ‘‘लेकिन जब हमने इसे पीछे छोड़ना शुरू कर दिया था तब यह हुआ।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘इसलिए मुझे लगता है कि वहां एक तात्कालिक मुद्दा है और प्रतीत होता है कि ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है।’’


विदेश मंत्री ने दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित किया और कहा कि यह कभी आसान नहीं रहा। उन्होंने कहा, ‘‘1962 में युद्ध हुआ था। उसके बाद सैन्य घटनाएं हुईं। लेकिन 1975 के बाद सीमा पर कभी भी लड़ाई में कोई हताहत नहीं हुआ था, 1975 आखिरी बार था।’’ उन्होंने कहा कि 1988 में भारत ने संबंधों को अधिक सामान्य किया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गये। जयशंकर ने बताया कि 1993 और 1996 में भारत ने सीमा पर स्थिरता के लिए चीन के साथ दो समझौते किए, जो विवादित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उन मुद्दों पर बातचीत चल रही है।’’ उन्होंने कहा कि इस बात पर सहमति बनी कि न तो भारत और न ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना एकत्र करेगा और अगर कोई भी पक्ष एक निश्चित संख्या से अधिक सैनिक लाता है, तो वह दूसरे पक्ष को सूचित करेगा। मंत्री ने कहा, ‘‘तो जिस तरह से इसे प्रस्तुत किया गया था, यह बिल्कुल स्पष्ट था।’’ जयशंकर ने कहा कि उसके बाद कई समझौते हुए और यह एक ‘‘बहुत अनोखी स्थिति’’ थी जिसमें सीमा क्षेत्रों में दोनों तरफ के सैनिक अपने निर्धारित सैन्य अड्डों से बाहर निकलते, अपनी गश्त करते और अपने ठिकानों पर लौट आते थे। उन्होंने कहा, ‘‘अगर उनके बीच कहीं टकराव हुआ, तो उनके आचरण के बारे में बहुत स्पष्ट नियम थे और आग्नेयास्त्रों का उपयोग निषिद्ध था। तो 2020 तक वास्तव में ऐसा ही था।’’ उन्होंने कहा कि 2020 में जब भारत अपने सख्त कोविड-19 लॉकडाउन के दौर से गुजर रहा था तब ‘‘हमने देखा कि बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर बढ़ रहे थे’’। उन्होंने कहा, ‘‘इन सबके बीच हमें वहां अपनी उपस्थिति बढ़ानी थी और जवाबी तैनाती करनी थी, जो हमने की और फिर हमारे सामने एक ऐसी स्थिति थी जहां हम स्वाभाविक रूप से चिंतित थे क्योंकि (दोनों देशों के) सैनिक अब बहुत करीब आ गए थे। हमने चीनियों को आगाह किया कि ऐसी स्थिति समस्याएं पैदा कर सकती है और फिर जून 2020 के मध्य में ऐसा ही हुआ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘फिर झड़प हुई और हमारे 20 सैनिक मारे गए। उन्होंने (चीन ने) दावा किया कि उनके चार सैनिक मारे गए। फिर से एक बार उस बारे में हम कभी नहीं जान पाएंगे।’’


जयशंकर ने कहा कि चीन की ओर से विभिन्न मौकों पर अलग-अलग सफाई दी गई लेकिन कोई भी सफाई स्पष्ट नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘तब से हम सैनिकों को पीछे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम सैनिकों को पीछे भेजने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि दोनों पक्षों ने अपने नियमित सैन्य आधारों से आगे उनकी तैनाती की है। हम आशिंक रूप से सफल हुए हैं। अगर हम कहें कि ऐसे 10 स्थान हैं तो हमने सैनिकों की तैनाती के मामले में सात से आठ स्थानों पर पैदा गतिरोध का समाधान कर लिया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अब भी हमारी चर्चा चल रही है लेकिन मूल समस्या यह है कि समझौतों के उल्लंघन के बाद सीामा पर बड़ी बहुत बड़ी संख्या में सैनिक तैनात हैं।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘अब उन्होंने जो किया है, उसने एक तरह से रिश्ते को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है क्योंकि ऐसे देश के साथ सामान्य होने की कोशिश करना बहुत कठिन है जिसने समझौते तोड़े हैं।’’ चीन की नौसेना की हिंद महासागर की गतिविधि को लेकर पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, ''हां, अगर आप पिछले 20-25 साल के कालखंड को देखें तो हिंद महासागर में चीन की नौसेना की तेजी से बढ़ती गतिविधि पाएंगे। चीनी नौसेना के आकार में तेजी से वृद्धि हुई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब आप के पास बहुत बड़ी सेना होगी तो वह नौसेना निश्चित तौर पर कहीं तैनाती के संदर्भ में दिखेगी।’’ उन्होंने कहा कि भारत ने श्रीलंका, पाकिस्तान और अन्य स्थानों पर चीनी बंदरगाह गतिविधि या बंदरगाह निर्माण को देखा है। जयशंकर ने कहा, ''मैं कहूंगा कि पीछे अगर देखें तो तब की सरकारों ने, नीति निर्माताओं ने इसके महत्व और भविष्य में इनके संभावित उपयोग को कमतर कर आंका।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए भारत के नजरिये से मैं कहना चाहूंगा कि यह बहुत तार्किक है कि हम चीन की बृहद मौजूदगी के लिए तैयार हों जो पहले नहीं देखी गई थी।’’

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