उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों की आवाज एक बार फिर से कानफोड़ू हो गई है जिससे उन लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो ऐसे धार्मिक स्थलों के आसपास रहते हैं। खासकर पढ़ने-लिखने वाले बच्चों और बीमार बुजुर्गों को इससे काफी परेशानी होती है। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री योगी आदत्यिनाथ ने इसका संज्ञान लेते हुए एक बार फिर लाउडस्पीकर की बढ़ती ध्वनि को नियंत्रित कराने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए हैं।
गौरतलब हो कुछ माह पूर्व योगी सरकार ने धार्मिक स्थलों से अवैध लाउडस्पीकर उतारने और अन्य लाउडस्पीकरों की आवाज नियंत्रित करने का अभियान चलाया था, जिसका अच्छा रिसपांस आया था। मगर धीरे-धीरे धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकर पुराने ढर्रे पर आकर ध्वनि प्रदूषण फैलाने लगे। ऐसा इस लिए हुआ क्योंकि सरकारी अमले ने इस ओर से आखें मूंद ली थी। ऐसे में लाख टके का सवाल यही है कि मुख्यमंत्री को क्यों बार-बार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराना पड़ता है। यह कोई अकेले एक समस्या नहीं है जिसको लेकर अधिकारी लापरवाही करते नजर आ रहे हैं।
सरकार कर्मचारियों के चलते सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं तक कच्छप गति से चलती नजर आती हैं। सरकारी कर्मचारियों की कामचोरी की प्रवृति के चलते ही वर्षो के बाद भी ट्रैफिक जाम, अतिक्रमण, बिजली चोरी, साफ सफाई जैसी मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। इन्हीं वजहों से अमूमन सरकारी कर्मचारियों की इमेज कामचोरों वाली बनती जा रही है। आखिर क्यों सरकार को राज्य के विकास कार्यों में तेजी लाने और जनता से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अपने अधिकारियों को हनुमान जी की तरह उनकी शक्तियों का अहसास कराना पड़ता है। जबकि इन्हीं कामों के लिए सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों को सरकार हर महीने मोटा वेतन देती हैं। बजट का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार के बजट के अनुसार उसे प्राप्त होने वाले कुल राजस्व प्राप्तियों का 55.4 प्रतिशत हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज की अदायगी पर खर्च हो जाता है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन पर 1,53,569.66 करोड़ रुपये, पेंशन पर 77,077.75 करोड़ रुपये का खर्च होने का अनुमान है। इस हिसाब से कुल राजस्व प्राप्तियों में वेतन, पेंशन और ब्याज की अदायगी की हिस्सेदारी 55.4 प्रतिशत है। वहीं कुल राजस्व व्यय के अनुपात में यह 60.7 प्रतिशत है। यदि सरकार को यह भारी भरकम राशि सरकारी कर्मचारियों के वेतन आदि पर नहीं खर्च करनी पड़े तो विकास की गति दुगनी से भी अधिक तेजी से दौड़ सकती है। सरकारी कर्मचारियों की लालफीताशाही और काम नहीं करने की आदत के चलते ही तमाम सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं।
बात लाउस्पीकर के कानफोड़ू आवाज की कि जाए तो कुछ माह पूर्व सहज संवाद के माध्यम से मुख्यमंत्री ने धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर हटाये जाने की अभूतपूर्व कार्रवाई सम्पन्न की थी। तब योगी के आहवान पर लोगों ने व्यापक जनहित को प्राथमिकता देते हुए स्वतःस्फूर्त से लाउडस्पीकर हटाये थे, लेकिन धीरे-धीरे लाउडस्पीकर की आवाज बढ़ने लगी। अवैध लाउडस्पीकर भी दोबारा टांग दिए गए हैं। गत दिनों सीएम योगी ने कहा था कि हाल के दिनों में जनपदीय दौरों के समय मैंने अनुभव किया है कि कुछ जिलों में पुनः यह लाउडस्पीकर लगाए जा रहे हैं। यह स्वीकार्य नहीं है और तत्काल संपर्क-संवाद कर आदर्श स्थिति बनाई जाए।