By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 14, 2019
नयी दिल्ली। पिछले दिनों विश्व कप के सेमीफाइनल में 22 गज की पिच पर बरसे हार के बादलों ने देश के सवा सौ करोड़ लोगों के अरमानों पर भले ही पानी फेर दिया हो, लेकिन सात समंदर पार भारत की एक सुनहरी बिजली दुती चंद साढ़े 11 सेकंड में ऐसी कौंधी कि तिरंगे को पूरी शान से लहराने की एक वजह दे दी। सोशल मीडिया पर भारतीय क्रिकेट टीम को कोसने वाले और हार का विश्लेषण करके आंसू बहाने वाले ढेरों संदेशों के बीच दुती चंद का यह ट्वीट मैंने गोल्ड मेडल जीत लिया है। सब पर भारी पड़ा। इटली के नेपोली में वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में दुती चंद ने अपने से कहीं कद्दावर और लंबे कद की प्रतिद्वंद्वियों को हराकर 100 मीटर की दौड़ को 11.32 सेकंड में पूरा किया और स्वर्ण पदक जीता। स्विटजरलैंड की डेल पेंट दूसरे और जर्मनी की क्वायाई इस दौड़ में तीसरे स्थान पर रहीं। दुती की इस जीत ने उन तमाम अटकलों और विवादों पर विराम लगा दिया जो उसके रास्ते की दीवार बनते रहे हैं। पिछले साल भारत की हिमा दास ने वर्ल्ड जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर जो शुरूआत की थी, दुती ने यह स्वर्ण पदक जीतकर उसमें एक और कड़ी जोड़ दी।
यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि हिमा और दुती दोनों ही देश के पिछड़े हुए ग्रामीण इलाकों से आती हैं, जहां एशियाई खेल, ओलंपिक खेल, स्वर्ण पदक और 100 मीटर 400 मीटर जैसे शब्द नहीं होते। दो वक्त की रोटी की फिक्र में लगे इन लड़कियों के ‘बाबा’ तो जानते तक न थे कि उन्होंने गुदड़ियों में ऐसी अनमोल ‘लालियां’ छिपा रखी हैं। ओडिशा के जाजपुर जिले के चाका गोपालपुर गांव में चक्रधर चंद और अखूजी चंद के यहां 3 फरवरी 1996 को दुती चंद का जन्म हुआ। गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले एक बुनकर परिवार से ताल्लुक रख्नने वाली दुती गांव के कच्चे रास्तों पर नंगे पैर दौड़ने का अभ्यास किया करती थी। सीमित साधनों और नाममात्र की ट्रेनिंग के साथ वैश्विक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लेना दुती की कभी हार न मानने की जिद का नतीजा है।
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100 मीटर दौड़ की मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन दुती चंद कई विवादों और आलोचनाओं का शिकार भी बनी। मई में अपने समलैंगिक संबंधों का खुलासा करके आलोचनाओं के घेरे में आई दुती को 2014 में भी एक लंबी और मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी। जब हाइपरएंड्रोजेनिज़्म के चलते उसमें पुरुष हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन) का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया और वह हार्मोन टेस्ट में फेल हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि आख़िरी पलों में उसे राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने से रोक दिया गया। अगले कुछ समय तक उसके बारे में तरह तरह की बातें की गईं और उसके रास्ते के कांटे बढ़ते रहे। इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद वह देश के लिए लगातार खेलती रही। अंतत: नियमों में बदलाव के बाद वह पूरे दम खम के साथ वापस लौटी और पिछले वर्ष एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया। अगले ओलंपिक खेलों की तैयारियों में जुटी दुती चंद जैसी खिलाड़ियों की उपलब्धियां क्रिकेट विश्व कप न जीत पाने की निराशा के बीच धीरे से कान में कह जाती हैं कि ‘‘अभी सब खत्म नहीं हुआ।’’