Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary: महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का ऐसा रहा राजनैतिक सफर

By अनन्या मिश्रा | Apr 17, 2023

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। भारतीय इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। वह दर्शनशास्त्र का काफी ज्ञान रखते थे। डॉ सर्वपल्ली ने ही भारतीय दर्शनशास्त्र में पश्चिमी सोच की शुरुआत की थी। वह एक शिक्षक भी थे। आज ही के दिन यानि की 17 अप्रैल को डॉ सर्वपल्ली का निधन हो गया था। उनकी याद में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 20वीं शताब्दी के विद्वानों में उनका नाम सबसे ऊपर है। वह पश्चिमी सभ्यता से अलग हिंदुत्व को देश में बढ़ावा देना चाहते थे। उन्होंने भारत और पश्चिम दोनों में हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार किया। वह दोनों सभ्यताओं को मिलाना चाहते थे। उनका मानना था कि देश में सबसे अच्छा दिमाग शिक्षकों का होना चाहिए। क्योंकि देश के निर्माण में शिक्षकों का सबसे अहम योगदान होता है।


जन्म और शिक्षा

तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर 1888 में डॉ राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी गरीब लेकिन विद्वान ब्राह्मण थे। सर्वपल्ली विरास्वामी के ऊपर ही पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राधाकृष्णन को बचपन में ज्यादा सुख-सुविधाएं नहीं मिली थीं। महज 16 साल की उम्र में राधाकृष्णन ने अपनी दूर की चचेरी बहन से शादी कर ली थी। राधाकृष्णन की शुरूआती शिक्षा मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने साल 1900 में वेल्लूर के कॉलेज से आगे की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मद्रास से अपनी शिक्षा पूरी की। साल 1906 में राधाकृष्णनन ने दर्शनशास्त्र में M.A किया।


करियर की शुरुआत

राधाकृष्णन जी को साल 1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्यापक बना दिया गया। इसके बाद वह साल 1916 में मद्रास रजिडेसी कॉलेज में दर्शन शास्त्र के सहायक अध्यापक बने। वहीं साल 1918 में राधाकृष्णन को मैसूर यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर चुना गया। फिर वह इंग्लैंड के oxford university में भारतीय दर्शन शास्त्र के शिक्षक बन गए। राधाकृष्णन शिक्षा को अधिक महत्व देते थे। शाद य़ही कारण था कि वह इतने ज्ञानी विद्वान बनें। वह हमेशा कुछ नया सीखने का प्रयास करते रहते थे। जिस कॉलेज से उन्होंने M.A किया था वहीं पर इन्हें बतौर कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन 1 साल बाद ही वह इसको छोड़कर बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए। राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र पर कई किताबें भी लिखी हैं। विवेकानंद और वीर सावरकर को राधाकृष्णन अपना आदर्श मानते थे और इनके बारे में उन्होंने गहन अध्ययन कर रखा था। 

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राजनीति में आगमन

भारत की स्वतंत्रता के बाद जवाहर लाल नेहरू ने राधाकृष्णन से आग्रह किया कि वह विशिष्ट राजदूत के तौर पर सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करें। जिसके बाद उन्होंने नेहरू जी की बात को मानते हुए साल 1947 से 1949 तक संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य के तौर पर कार्य किया। संसद में सभी लोग राधाकृष्णन के कार्यों और व्यवहार की प्रशंसा करते थे। वहीं राधाकृष्णन साल 1952 से 1962 तक देश के उपराष्ट्रपति रहे और साल 1962 में वह भारत के राष्ट्रपति बने। बता दें कि राजेंद्र प्रसाद की तुलना में राधाकृष्णन का कार्यकाल काफी चुनौतिय़ों और मुश्किलों भरा रहा। 


सम्मान

डॉ. राधाकृष्णन को शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान के लिए साल 1954 में सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।

साल 1962 से राधाकृष्णन के सम्मान में उनके जन्मदिन यानि की 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की घोषणा की गई।

साल 1962 में उन्हें 'ब्रिटिश एकेडमी' का सदस्य बनाया गया।

इंग्लैंड सरकार द्वारा राधाकृष्णन को 'ऑर्डर ऑफ मेरिट' का सम्मान प्राप्त हुआ।


निधन

डॉ राधाकृष्णन का निधन एक लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल 1975 को हो गया। देश के विकास और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

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