सामाजिक समरसता के सूत्रधार थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर

By डॉ. शंकर सुवन सिंह | Apr 13, 2022

सत्य का ज्ञान होना ही बुद्धत्व है। बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। बुद्धत्व प्राप्त करने वालों को बोधिसत्व माना जाता है। बोधिसत्व संस्कृत भाषा का शब्द है। पाली भाषा में बोधिसत्त कहा जाता है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बोधिसत्व की उपाधि मिली थी। यह उपाधि गौतम बुद्ध (शाक्यवंशी क्षत्रिय) के बाद, डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर को दी गई। नेपाल के काठमांडू में सन् 1954 ई. में “जागतिक बौद्ध धर्म परिषद” में बौद्ध भिक्षुओं नें डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को “बोधीसत्त्व” की उपाधि से नवाजा था। ख़ास बात यह रही कि डॉ.अम्बेडकर को जीवित रहते ही बोधिसत्त की उपाधि से नवाजा गया। बौद्ध धर्म में बोधिसत्त सर्वोत्तम उपाधि है। भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी सारी जिंदगी भारतीय समाज में बनाई गई जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष में गुजार दी। डॉ. अंबेडकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उनके सम्मान में बाबा साहब भी कहा जाता है। डॉ. भीमराव का सरनेम पहले ‘सकपाल’ था। बाद में उनका सरनेम अम्बेडकर हुआ, जिसके बाद उनका पूरा नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर लिखा जाने लगा। डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था। 


6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था। बाबा साहब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमा बाई था। इस वजह से शुरू में उनका सरनेम सकपाल था। बाबा साहब का जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे उस समय लोग अछूत और निचली जाति का मानते थे। अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव भी सहन करना पड़ता था। प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको छुआ-छूत के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इसे देखते हुए उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल’ की बजाय ‘आंबडवेकर’ लिखवाया। इसके पीछे की वजह यह थी कि वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे। उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन था। इस तरह भीमराव सकपाल का नाम आंबडवेकर उपनाम से स्कूल में दर्ज किया गया। अब बाबा साहब का उपनाम आंबडवेकर हो गया। बाबासाहब से कृष्णा महादेव अम्बेडकर नामक एक ब्राह्मण शिक्षक को विशेष स्नेह था। इस स्नेह के चलते ही उन्होंने बाबा साहब के नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर उसमें अपना उपनाम अम्बेडकर जोड़ दिया। इस तरह उनका नाम भीमराव अम्बेडकर हो गया। जिसके बाद उन्हें अंबेडकर बोला जाना लगा। संविधान निर्माता डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने देश को सामाजिक व धार्मिक समानता का रास्ता दिखाया था। बाबा साहब की पत्नी रमाबाई का देहांत हो जाने के बाद उन्होंने शारदा कबीर नामक ब्राह्मण महिला से विवाह कर लिया था। शारदा कबीर ने विवाहोपरांत अपना नाम बदलकर सविता अम्बेडकर रख लिया था। ब्राह्मण महिला से विवाह करना डॉ अम्बेडकर की धार्मिक समरसता को प्रदर्शित करता है। ऐसा लगता है डॉ. अम्बेडकर जातिगत व्यवस्था से ऊपर उठकर राष्ट्र के विकास और सामाजिक समरसता पर ज्यादा बल देते थे। अतएव डॉ. अम्बेडकर सिर्फ और सिर्फ 10 साल के लिए आरक्षण लागू करने के पक्ष में थे। 


25/08/1949 ई. में संविधान सभा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सीमित रखने के प्रस्ताव पर एस. नागप्पा व बी. आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आई। डॉ. अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग, डॉ. अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता। आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है। आरक्षण वादी लोग वोट की राजनीति करने लगे हैं न कि डॉ. अम्बेडकर के सिद्धांत का अनुपालन कर रहे हैं। आरक्षण देने की समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें। जब आरक्षण देने की तय सीमा के अंतर्गत दबे कुचले लोग उभर जाएं तो आरक्षण का लागू होना सफल माना जाए। अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। इस प्रकार की आरक्षित कोटे कि शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है। यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है। किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है। आज यदि हम देश को उन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं और देश की एकता बनाये रखना चाहते हैं,तो जरूरी है कि आरक्षणों को हटाकर हम सबको एक समान रूप से शिक्षा दें और अपनी उन्नति का अवसर पाने का मौका दें। अतः राष्ट्र के विकास को जीवित रखने के लिए, आरक्षण को वोट कि राजनीति से दूर रखना होगा। आरक्षण, विकास का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण समुदाय को अलग करने का काम करता है न कि जोड़ने का। ऐसी डोर जो समुदाय या लोगों को जोड़े वह है लोकतंत्र। लोकतंत्र का आधार सिर्फ और सिर्फ विकास हो सकता है क्योंकि डोर या रस्सी रूपी विकास ही समूह को जोड़ने का आधार है। लोकतंत्र का आधार विकास होना चाहिए न कि आरक्षण। ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है। 


आरक्षण जिसे ख़ुद अंबेडकर ने 10 साल से ज्यादा नही चाहा और जिसे ये लोग मसीहा मानते है उसके बनाए हुए नियम को ख़ुद तोड़ते हैं। सिर्फ़ अपनी आरक्षण नाम की लत को पूरा करने के लिए। वैसे भी जब किसी को बिना किए सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करने से हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है, जिसके सहारे उसे वो सब ऐसे ही मिलता रहे। यही आधार आज के आरक्षण भोगी तलाश रहे है। कोई मनु को गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मणों को। कोई हिंदू धर्म को,तो कोई पुराणों को। कुछ लोग वेदो को, तो कुछ लोग भगवान को भी। परन्तु ख़ुद के अन्दर झाँकने का ना तो सामर्थ्य है और ना ही इच्छाशक्ति। जब तक अयोग्य लोग आरक्षण का सहारा लेकर देश से खेलते रहेंगे तब तक ना तो देश का भला होगा और ना समाज का और ना ही इनकी जाति का। देश के विनाश का कारण है आरक्षण। आज हर जाति में अमीर है हर जाति में गरीब। हर जाति में ज्ञानी लोग हैं और हर जाति में अज्ञानी। हर जाति में मेहनत कश लोग हैं और हर जाति में नकारा। हर जाति में नेता है और हर जाति में उद्योगपति। देश को तोड़ रहा है सिर्फ़ जातिवाद वो भी कुछ लोगो की लालसा,वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से। जिस दिन हर जाति के लोग जात-पात भुलाकर योग्यता के बल पर आगे जायेंगे और योग्यता के आधार पर देश का भविष्य सुनिश्चित करेंगे, देश ख़ुद प्रगति के रास्ते पर बढ़ चलेगा। बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर भी अपनी योग्यता और कर्म से ही संविधान निर्माता बने थे न की आरक्षित कोटे से। 


डॉ. अम्बेडकर ने विज्ञान और तकनीक के जरिये देश के विकास का सपना देखा था। बाबासाहब नई तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे। उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणा पत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए। भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे, तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो पाएगी। मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत की बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए। बाबा साहब निम्न जाति में जन्म लेने के बावजूद कर्म से ब्राह्मण थे। आप किस जाति में पैदा होते हैं यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है तो वो है सिर्फ और सिर्फ आपका अपना कर्म। निम्न कर्म से व्यक्ति निम्न होता है, और उच्च कर्म से ही व्यक्ति उच्च होता है। अतएव हम कह सकते हैं की डॉ. अम्बेडकर सामाजिक समरसता के सूत्रधार थे। 


- डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक

असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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