बाबा साहेब आंबेडकर के नाम से मशहूर डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत ही नहीं अपितु विश्व के प्रमुख नेता, विचारक, शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। गाँधी की आलोचना के बावजूद वे गाँधी को प्रिय थे। अंबेडकर महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी थे। उन्होंने जीवनभर समाज के कमजोर, पिछड़े और दलित समुदाय को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने का सतत और जीवंत प्रयास किया। दलित समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊँचा उठाने के लिए किये गए उनके प्रयासों के कारण ही आज यह वर्ग लोकतंत्र की खुली हवा में साँस ले रहा है।
डॉ. अंबेडकर ने समाज से छुआछूत को मिटाने के लिया सतत संघर्ष किया जिसका परिणाम है की समाज में समरसता का सन्देश गया। भीमराव अंबेडकर जयंती के मनाने के पीछे मूल कारण लोगों में समानता के अधिकारों का विकास हो और सबका साथ सबका विकास हो। अंबेडकर के कार्यों से प्रभावित होकर अब संयुक्त राष्ट्र में भी इनकी जयंती मनायी जाने लगी है। संयुक्त राष्ट्र ने भीमराव अंबेडकर को "विश्व का प्रणेता" कहकर उनके सम्मान में संबोधित किया है जोकि हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। मगर सबसे बड़ा दुख तो इस बात का है कि हम अंबेडकर से शिक्षा कम ग्रहण कर रहे हैं और उनकी जयंती मनाने के बाद साल भर के लिए उनको भुला देते हैं। जब हमारे देश भारत में छुआछूत, भेदभाव, ऊंच-नीच जैसी अनेक सामाजिक कुरीतियाँ अपनी चरम अवस्था पर थीं ऐसे में इन बुराइयों को दूर करने में भीमराव अंबेडकर का अतुल्य योगदान माना जाता है। मगर आज उनकी यह प्रेरणा कुछ खास वर्ग तक सीमित हो कर रह गई है। अब तो देश के महापुरुष जातियों के बंधन में बंध कर रह गए हैं इससे हमारे समाज की मानसिकता का पता चलता है। यह देश के स्वाभिमान के लिए बेहद दुर्भागय की बात है।
अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। जिसके कारण जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व मे आई तो उसने अंबेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। इसीलिए उन्हें, संविधान का निर्माता भी कहा जाता है।
भारत को संविधान देने वाले महान नेता डॉ. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। डॉ. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता−पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अंबेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे। जिसके कारण भीमराव अंबेडकर को दलितों का मसीहा भी कहा जाता है। भारत के संविधान में प्रमुख योगदान देने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर को बाबासाहेब के नाम भी जाना जाता है। पूरे जीवन संघर्ष का साथ देने वाले भीमराव अंबेडकर का जीवन हम सभी के लिए अनुकरणीय है। भीमराव अंबेडकर का मानना था की हमारा जीवन वो नदी है जिसके लिए कोई भी बने बनाये रास्ते की जरूरत नहीं है हम जिधर निकल जाएं हमारी जीवन रूपी नदी अपना रास्ता बना लेगी अर्थात जीवन में हम सब ठान लें तो निश्चित ही हम सभी अपने जीवन का लक्ष्य पा सकते हैं। भीमराव अंबेडकर के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला पर्व अंबेडकर जयंती के नाम से जाना जाता है जिसके कारण लोगों द्वारा इसे समानता दिवस या ज्ञान दिवस के रूप में भी जाना जाता है। अपने पूरे जीवन भर समानता का पाठ पढ़ाने वाले भीमराव अम्बेडकर को ज्ञान और समानता का प्रतीक भी माना जाता है जिसके कारण भीमराव अंबेडकर को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा प्रवर्तक भी कहा जाता है।
बाद के दिनों में अंबेडकर ने कांग्रेस से अलग हो कर अपनी राजनैतिक पार्टी बनाई मगर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बावजूद देश का एक बड़ा वर्ग अंबेडकर से बेहद प्रभावित है और उन्हें देश को जोड़ने वाले प्रखर सेनानी के रूप में मानता है। अंबेडकर जयंती पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके बताये मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर देश में सच्चे अर्थों में समता और समानता का संदेह घर घर घर पहुंचाकर देश को सामाजिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनायें।
- बाल मुकुन्द ओझा