By नेहा मेहता | Dec 30, 2024
प्रभासाक्षी के शो ब्रेव बाइट्स में हम बात करते हैं उन जांबाज़ लोगों से जिन्होंने ना सिर्फ अपनी ज़िन्दगी की जंग को बखूबी लड़ा बल्कि बहुत सारे और लोगों को भी इंस्पायर किया है। इस बार के एपिसोड में हम मिले डॉक्टर अपर्णा पाण्डेय से और बात करी कि किस तरह से शादी के बाद मुश्किलें झेलने के बावजूद वह हारी नहीं और अपनी ज़िन्दगी की एक नयी शुरुआत की।
आपकी शादी के बाद ऐसा क्या हुआ कि आपकी ज़िन्दगी एक दम अलग हो गयी?
जब एक लड़की शादी करती है तो वह काफी उम्मीद लगाती है। इससे पहले मैं थोड़ा मेरा बैकग्राउंड बताना चाहूंगी कि मैं एक वेल टू डू फैमिली से बिलोंग करती हूँ मेरे पेरेंट्स और ग्रैंड पैरेंट्स भी वर्किंग थे। घर में बहुत सिंपल एटमॉस्फेयर था, लड़ाई झगडे, मार पीट सिर्फ टीवी में देखी थी। पर ऐसा नहीं सोचा था कि ऐसा मेरे साथ होगा। मेरी शादी के पहले ही दिन जब ये चीज़ें मेरे साथ होना शुरू हो गई, और ये ऐसा भी नहीं है कि जो ज्यादा लड़कियां पढ़ी लिखी नहीं होती है उनके साथ ये होता है। मेरी शादी के पहले दिन ही मुझे एक थप्पड़ पड़ा मुझे समझ नहीं आया के हुआ क्या तो उसने कहा कि अरे मैं तो छु रहा था और बात टाल दी। मैं उसको भूल गई क्यूंकि वो पहला दिन था, मैंने सोचा ठीक है कोई बात नहीं। लेकिन दूसरे दिन भी वही हुआ जब हम बाहर गए मॉल में तो लिफ्ट में भी सेम चीज हुई और वो बहुत शॉकिंग था क्योंकि मैं उस समय उससे उसके भतीजा के बारे में कुछ बात कर रही थी कि बच्चा कितना क्यूट है और अचानक से फिर एक थप्पड़। इस समय मुझे लगा कि कुछ तो सही नहीं है और मैंने बोला कि मुझे ऐसे क्यों मार रहे हो। फिर उसने ये वो गलती से हो गया कह के उसने बात पलट दी और इतना प्यार दिखाया कि मैं कंफ्यूज हो गई कि ये सच में ऐसा हुआ या आप बस मुझे लगा जैसे एक हेललुसीनेशन था।
आपकी शादी कैसे तय हुई?
मैंने जीवनसाथी वेबसाइट से ढूंढ कर बातचीत की थी पहले तो शादी अरेंज्ड मैरिज थी। शादी के पहले मैंने इनको बोला था कि हम मैं दहेज में बिलीव नहीं करती तो इसने भी कहा कि हां ठीक है जैसा आप बोलोगे वैसा ही होगा। हम कौन सा दहेज मांग रहे हैं लेकिन हर बाप अपनी बेटी को देता है। मैंने बोला वो मुझे भी पता है मेरे पेरेंट्स खुद से जो करेंगे वो ठीक है लेकिन मैं कुछ अपनी तरफ से बोलूंगी नहीं। मैं अपने जनरेशन के सबसे बड़ी बेटी हूँ तो मेरे ग्रैंडपेरेंट्स, मेरे चाचा चाची, मौसा मौसी मतलब सब इतने बहुत थे कि घर में पहली शादी हो रही है।
आपसे कब उन्होंने दहेज़ की मांग शुरू की?
उन्हें पता था कि मैं अपने घर की बड़ी बेटी हूँ इसके फादर के पास बहुत प्रॉपर्टी है, यह पापा के लाडली है एक प्रॉपर्टी तो वो मुझे दे ही देंगे। दादा दादी भी रिटायर्ड है गवर्नमेंट जॉब से तो ऐसे ही बहुत देंगे और जब एक बार शादी करके आ जाएगी तब तो हम निकल ही लेंगे उस तरह की मेंटालिटी थी। इसकी तो यह मुझे उसे टाइम समझ नहीं आया पर शादी के बाद उसका या उसकी माँ का पूछना कि घरवाले अब क्या भेजेंगे अब क्या दे रहे है तो मुझे समझ आगया कि ये जैसा शुरू में कह रहे थे वैसा नहीं है कुछ भी। जब भी मैं अपने पति को बोलती थी कि घर में किसी भी चीज की ज़रुरत है तो कहना कि तुम्हारे बाप ने क्या दिया है, फिर मैं जब इस पे बोलती थी यार ऐसा मत बोलो, उन्होंने इतना किया तो है इतनी ज्वेलरी इतने कपड़े दिए तो कहना अरे सीरियस हो गई तुम तो मैं तो मजाक कर रहा था।
शादी के बाद आपने किसी को बताया नहीं कभी कि किस तरह का बर्ताव आपके साथ हो रहा है?
नहीं मैं किसी को अपने घर में नहीं बता पाई क्योंकि सबसे ये बड़ी हसी ख़ुशी बात करता था। मुझे सबसे डिसकनेक्ट कर दिया और खुद उन सबसे फ़ोन करके हाल चाल पूछता रहता था तो उन्हें लगता था कि हमारा दामाद बहुत अच्छा है। कभी बाहर लेके जाना तो फ़ोटोज़ सोशल मीडिया पर डालना, सब फ्रेंड्स और फैमिली को देखकर लगता था कि सब सही है लेकिन घर में वही मार-पीट। उसके पापा बेड पर थे और माँ भी काफी उम्रदराज़ थी तो उन्हें बताना सही नहीं लगा कि परेशान होंगे। और उसके घर के किसी रिश्तेदार से मेरी बात नहीं होती थी, सिवाय मेरे जेठ-जेठानी जो बेंगलुरु में रही रहते थे। एक बार जब उन्हें बताया कि मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है तो उन्होंने कहा ये ही किस्मत है और उसके बाद मेरे पति ने मुझे और ज्यादा बेल्ट से मारा पीटा कि उन्हें क्यों ये सब बताया।
आप ये सब छोड़कर वापस कैसे आईं?
जब मैं बहुत परेशान हो गयी और कोई भी मुझे समझ नहीं रहा था तब मैंने अपने जेठ जेठानी ने कहा कि मुझे मेरे भाई के पास लखनऊ जाने दो 1-2 दिन के लिए तो वो मान गये। उन्हें लगा ज्यादा कपड़े गहने नहीं लेकर जा रही तो शायद आ जायेगी जल्दी ही लेकिन उसके बाद मैं वापस नहीं गयी कभी। भाई ने जब मुझे देखा तो वो मुझे वहां से मेरे घर गोरखपुर ले गया और फिर थोड़े दिनों में मैंने घरवालों को कहा कि अब मुझे वहां नही जाना। आप मुझे यहाँ रहने दोगे तो ठीक है वरना मैं वहां वापस नहीं जाउंगी। उस समय मेरी हालत देखकर घरवाले काफी कुछ समझ गये थे।
चीज़ें लाइफ में वापस ट्रैक पर कैसे आईं?
अचानक से मेरे इंस्टाग्राम पर एक दिन एक एडवर्टाइजमेंट आया, उसमें जो कुछ लिखा था वो मुझे अच्छा लगा फिर मैंने वर्कशॉप अटेंड किया और उस दिन चार पांच महीने बाद मुझे पहली बार बहुत हल्का महसूस हुआ। उसके बाद मैं ऐसे सेशंस अटेंड करती रही और फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज मैं खुद बतौर माइंडसेट कोच काम कर रही हूँ और ऐसे कईं लोगों की हेल्प कर रही हूँ जो लाइफ में फंसे हुए हैं।
आपके जैसी बाकी महिलाओं को आप क्या कहना चाहेंगी?
हम लड़कियां हैं ना तो हम बनाने के चक्कर में सोचते हैं कि हम थोडा एडजस्ट कर लें, एक्सेप्ट कर लें ताकि सब सही रहें लेकिन चाय में चीनी कम है एडजस्ट कर लो, आज खाने में कुछ कमी है एडजस्ट कर लो, कपडे अच्छे नहीं है तो उसमें थोड़ा सस्ता पहनकर एडजस्ट कर लो लेकिन मारपीट में आप कभी एडजस्ट नहीं करो। आप ऐसी सिचुएशन में ना हमेशा न्यूट्रल हो जाओ, एक थर्ड पर्सन बनकर चीज़ों को देखने समझने की कोशिश करो। किसी से बात कीजिये, अन्दर अन्दर घुटिये मत। आपके साथ गलत हो रहा है तो बोलिए। आप ही अपने आपको बचाएंगे कोई दूसरा नहीं आएगा। कभी ये मत सोचना कि कोई और आकर आपको बचा लेगा।
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