सोवियत संघ के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजे गए थे बीजू पटनायक, पंडित जी के कहने पर की थी पड़ोसी मुल्क की मदद

By अनुराग गुप्ता | Mar 04, 2022

रूस और यूक्रेन के बीच में जंग छिड़ी हुई है और हम सब जानते हैं कि रूस पहले सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था लेकिन फिर सोवियत संघ का विघटन हो गया था। ऐसे में हम आपको बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध की एक घटना के बारे में जानकारी देने वाले हैं, जिसका सीधा ताल्लुक ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक से है। जिन्हें राजनीति में क्रांति लाने के साथ-साथ अंग्रेजों के भी छक्के छुड़ाए थे। 

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भारत अपने मित्र देशों की हमेशा मदद करता रहा है और यह कोई नई बात नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब सोवियत संघ पर संकट के बादल मंडरा रहे थे उस वक्त भारत के एक जाबाज पायलट ने मोर्चा संभाला और उनकी बहादुरी को देख हिटलर तक को अपने कदम पीछे करने पड़े थे। दरअसल,द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ पर हिटलर ने धावा बोला था तब बीजू पटनायक ने मोर्चा संभाला था। जिन्होंने डकोटा विमान उड़ाकर हिटलर की सेनाओं पर जमकर बमबारी की। जिसकी वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा था।

उस वक्त बीजू पटनायक की बहादुरी पर उन्हें सोवियत संघ का सर्वोच्च पुरस्कार भी दिया गया था और सोवियत ने उन्हें अपनी नागरिकता भी प्रदान की थी।

कौन हैं बीजू पटनायक ?

5 मार्च 1916 को ओडिशा के गंजम जिले में जन्में बीजू पटनायक ने न सिर्फ राजनीति में क्रांति लाई बल्कि अंग्रेजों के भी छक्के छुड़ा दिए थे। बीजू पटनायक का पूरा नाम बीजयानंद पटनायक था। जब इनका निधन हुआ था तो इनके पार्थिव शरीर पर एक नहीं बल्कि तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटे गए थे।

बीजू पटनायक पायलट बनना चाहते थे और उन्होंने इसी सपने के साथ शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी और ट्रेनिंग लेने के बाद प्राइवेट एयरलाइंस के लिए उड़ान भरनी शुरू की थी। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स ज्वाइन कर ली थी। इसी दौरान उन्होंने क्लिंग एयरलाइन की भी शुरुआत की।

भूमि पुत्र पुरस्कार से किया जा चुका है सम्मानित

बीजू पटनायक के हौसले के दम पर कई बार भारत समेत कई मुल्क विगत परिस्थितियों से सफलतापूर्वक निकले थे। इनमें साल 1988 में इंडोनेशिया पर हुआ हमला भी शामिल है। दरअसल, डचों ने इंडोनेशिया पर हमला कर दिया था। उस वक्त इंडोनेशिया के सर्वोच्च नेता सुकर्णो ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से मदद की गुहार लगाई थी। तब उन्होंने अपने सबसे काबिल पायलट को जकार्ता भेजा था। उस वक्त बीजू पटनायक ने कई विद्रोही इलाकों में दस्तक दी और अपने साथ प्रमुख विद्रोही सुल्तान शहरयार और सुकर्णो को लेकर दिल्ली आ गए थे। इसके बाद सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने। बाद में इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई और वहां के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से भी नवाजा गया था। 

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इसके अतिरिक्त भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान के हमले के दौरान भी बीजू पटनायक ने भारतीय सेना की पहली खेप को लेकर श्रीनगर हवाई अड्डे पर विमान उतारा था। जिसकी मदद से कश्मीर को बचाया गया था।

चीन तक मारने वाली मिसाइल चाहते थे बीजू पटनायक

स्वर्गीय पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने एक साक्षात्कार में बताया था कि बीजू पटनायक मुझसे एक वादा चाहते थे। उन्होंने बताया था कि मुझे चीन जाने का न्यौता मिला है, लेकिन तभी जाऊंगा जब वादा करो कि ऐसी मिसाइल बनाओगे जो चीन तक हमला करे। दरअसल, अब्दुल कलाम एक मिसाइल परीक्षण के लिए व्हीलर द्वीप चाहते थे तब उन्होंने बीजू पटनायक से मुलाकात की थी और उनसे मिलकर वह बेहद रोमांचित हुए थे। उन्होंने यह तमाम बात एक साक्षात्कार के दौरान बताई थी।

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