राम नाईक को गोविंदा से चुनाव हारने का हमेशा रहा मलाल, ऐसा रहा है उनका राजनीतिक जीवन

By अनुराग गुप्ता | Apr 16, 2022

राम नाईक भारतीय राजनीति के बेबाक नेताओं में से एक हैं। उन्होंने सक्रिय राजनीति में चार दशक बिताने के बाद साल 2014 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पद की शपथ ली थी और साल 2019 तक इस पद पर रहे। इसके बाद सक्रिय राजनीति में लौटने का ऐलान करते हुए कहा था कि अभी उनके 25 साल बाकी हैं। 

उन्होंने कहा था कि हमारे यहां कहा जाता है कि व्यक्ति को 100 साल तक कार्यशील रहने का प्रयास करना चाहिए और मेरे 85 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बताया था कि मेरे जीवनकाल में मुझे कैंसर भी हुआ था और उससे ठीक होकर मैं काम कर रहा हूं। 

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कौन हैं राम नाईक ?

कानून की पढ़ाई करने वाले राम नाईक बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) के साथ काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1964 में भारतीय जनसंघ के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। इसके बाद साल 1978 में बोरीवली से विधानसभा चुनाव जीता और लगातार 3 बार महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1980 से लेकर 1986 तक भाजपा की मुंबई इकाई के अध्यक्ष पद पर रहे और फिर पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र का उपाध्यक्ष बना दिया।

साल 1989 में भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद 1991 और 1999 के चुनावों में भी उन्हें सफलता मिली थी। जिसके बाद पार्टी में उनका कद बड़ा हो गया था और फिर अटल बिहारी मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। राम नाईक को तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। हालांकि साल 2004 के लोकसभा चुनाव में मुंबई उत्तर सीट से अभिनेता गोविंदा के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। जिसका मलाल उन्हें जिंदगी भर रहा और उन्होंने अपनी किताब में इसका जिक्र भी किया है।

राम नाईक ने साल 2013 में ऐलान किया था कि वो आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सीटें मिली थीं। जिसके बाद राम नाईक को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया था। 

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गोविंदा पर लगाया था गंभीर आरोप

साल 2004 के चुनाव में अभिनेता गोविंदा के हाथों करारी शिकस्त का सामने करने के बाद उन्होंने एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने गोविंद का अंडरवर्ल्ड के साथ कनेक्शन होने का दावा किया था। उन्होंने अपनी किताब में दावा किया था कि मैं तीन बार सांसद रहा और मुंबई के लिए बहुत कुछ किया। लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में 11,000 वोटों से हुई हार मुझे हमेशा खलती रही है। गोविंदा की दाऊद से दोस्ती है और मतदाताओं को डराने के लिए उन्होंने इसका इस्तेमाल किया है।

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