By अनुराग गुप्ता | Dec 27, 2021
कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश भाजपा प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति नहीं भाती थी और वो अपने पिता स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भांति फोटोग्राफर बनना चाहती थीं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और उन्होंने उत्तर प्रदेश में जारी कांग्रेस के वनवास को समाप्त करने का जिम्मा उठा लिया। सामान्य से कपड़े पहनने वाली प्रियंका गांधी को घर का बना हुआ खाना बेहद भाता है, वो अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच में घर के बने खाने के लिए समय निकाल लेती हैं। राजनीतिक माहौल के बीच में पली-बढ़ी प्रियंका ने मनोविज्ञान में डिग्री हासिल की है। इसके अलावा उन्होंने बौद्धिज्म में मास्टर डिग्री भी हासिल किया है।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को लॉन्च किया था। उस वक्त नारा दिया गया था- 'प्रियंका नहीं आंधी है, यह दूसरी इंदिरा गांधी है'। हालांकि पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई। लेकिन प्रियंका ने पहले ही साफ कर दिया था कि उसका लक्ष्य 2019 नहीं बल्कि 2022 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाना है। जिसके लिए उन्होंने कई मेहनत भी की है। इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' कैंपेन की शुरुआत की। जिसका काफी असर दिखाई दे रहा है और बाकी की पार्टियां भी महिलाओं को महत्व देने लगी हैं।
पीड़ितों के प्रति दिखाया अपनत्व
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रियंका गांधी ने महीनों पहले से उम्मीदवारों का चयन करना शुरू कर दिया था। उन्होंने खुद एक-एक व्यक्ति से बातचीत की और संभावित उम्मीदवार को अपने इलाके पर पुरजोर काम करने की नसीहत भी दी। इतना ही नहीं प्रियंका गांधी ने बूथ लेवल पर संगठन को मजबूत करने के लिए कई प्रभारी भी नियुक्त किए और उसकी रणनीति भी बनाई। भले ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय कुमार लल्लू हों लेकिन प्रदेश में चारों तरफ सिर्फ प्रियंका गांधी ही दिखाई देती हैं। चाहे सोनभद्र हो, हाथरस हो, लखीमपुर खीरी हो इस तरह के तमाम मामलों में प्रियंका गांधी ने पीड़ित परिवार के प्रति अपनत्व दिखाया और योगी सरकार को निशाना बनाया।2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी कभी-कभी चुनावी प्रचार-प्रसार में दिखाई दे जाती थीं लेकिन वो सक्रिय राजनेता नहीं थीं। उन्होंने साल 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक भावुक अपील भी की थी, जिसका काफी असर पड़ा था। यह वो साल था जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की लहर थी। उन्होंने कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी की जनता से कहा कि 'क्या आप उस आदमी को अपना वोट देंगे, जिसने मेरे पिता की पीठ पर छूरा भोंका था।' प्रियंका की इस अपील से चुनाव पलट गया और साल 1998 में रायबरेली से अरुण नेहरू और अमेठी से संजय सिंह ने जो जीत दर्ज की थी उसे 1999 के लोकसभा चुनाव में संभाल नहीं पाए। इन दोनों नेताओं को भाजपा ने टिकट दिया था। अरुण नेहरू की बात करें तो वो रिश्ते में राजीव गांधी के भाई लगते थे।