मेरठ। कम समय, कम लागत में नगीना वल्लभ बासमती-1 चावल की नई प्रजाति बंपर पैदावार देगी। जी हां वर्तमान में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली पूसा बासमती-1 से 39 फीसदी और तरावडी बासमती से 123 फीसदी तक अधिक पैदावार देगी। दरअसल मेरठ के सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मोदीपुरम के कृषि वैज्ञानिकों ने मिलकर बासमती धान की नई प्रजाति विकसित की है।
कृषि विवि के नगीना रिसर्च सेंटर द्वारा बासमती धान की इस नई प्रजाति को तैयार किया गया है। नगीना रिसर्च सेंटर में विकसित होने के कारण इस प्रजाति को विवि ने नगीना वल्लभ बासमती-1 नाम दिया है। विवि प्रशासन जल्द ही इस नई प्रजाति का नोटिफिकेशन कराएगा। इसे बनाने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रजाति की उपज क्षमता 63 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिल चुकी है। खास बात यह कि धान की यह नई प्रजाति, पूसा बासमती- 1 से लगभग 15-20 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है। अन्य बासमती की अपेक्षा इसे उगाने में 2 से 3 कम सिंचाई की जरूरत होगी। जिससे पानी की बचत होगी और खेती की लागत घटेगी। फसल जल्दी तैयार होने के कारण किसानों को उनके खेत अगली फसल बुआई के लिए समय पर मिल जाएंगे। यह प्रजाति मजबूत तने के साथ 100 से 105 सेमी की मध्यम ऊंचाई के पौध वाली है। इसके कारण फसल गिरने की संभावना भी कम है। उपज की गुणवत्ता, उत्पादकता अच्छी रहेगी। वैज्ञानिकों ने इसे पूसा सुगंध और पूसा बासमती से मिलकर तैयार किया है।
विवि के कुलपति डॉ. आरके मित्तल ने बताया कि बासमती धान की नई प्रजाति को हमने पूसा सुगंध-5 व उन्नत पूसा बासमती- 1 से विकसित किया है। पूसा बासमती, बासमती की बेस्ट क्वालिटी है। इसलिए इस नई प्रजाति में पूसा के सभी गुण हैं। अन्य बासमती की तरह इसके चावल पतले, लंबे, मुलायम व खुशबूदार हैं। इनको पकाने में बहुत कम समय लगता है। इनकी कुकिंग क्वालिटी भी पूसा बासमती-1 से अच्छी है। पूसा बासमती से बनी होने के कारण इस नई प्रजाति में रोग और कीटों का प्रभाव कम रहता है। इसमें गर्दन तोड़ (ब्लास्ट) रोग का खतरा भी नहीं है, जिसकी वजह से अक्सर धान खराब हो जाती है और किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।बदलते मौसम में कम पानी में भी इसकि अच्छी फसल मिल रही है।कृषि विवि में कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनिल सिरोही निदेशक शोध, मुख्य अन्वेषक डॉ. राजेंद्र मलिक, डॉ. विवेक यादव व टीम ने मिलकर इस प्रजाति को विकसित किया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस नए किस्म की बासमती की उत्पादन क्षमता दूसरी प्रजातियों से ज्यादा है। इसकी फसल की देखभाल और रखरखाव दूसरी किस्मों के बासमती से आसान है। इसकी लागत भी कम है। आज के समय में लगातार मौसम बदलता है। खेतों में मिटटी की उर्वर क्षमता कम हो रही है, किसान के पास सिंचाई के संसाधन कम है, पानी कम मिल रहा है, यह नई बासमती प्रजाति इन सभी मुश्किलों को झेलकर अच्छी फसल दे सकती है।