By अनुराग गुप्ता | Aug 25, 2021
महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा आमने-सामने नजर आ रही है। बीते दिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी के आरोप में गिरफ्तार किए गए केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को जमानत मिल गई। राणे के खिलाफ चार एफआईआर दर्ज हुई थी। उन्हें रत्नागिरि पुलिस ने गिरफ्तार किया था और फिर पुलिस अधिकारी नारायण राणे को महाड ले गए। नारायण राणे पर पुलिसिया कार्रवाई का भाजपाईयों ने जमकर विरोध किया।
नयी नहीं है उद्धव-राणे की लड़ाई
इससे पहले महाराष्ट्र की राजनीति गर्मा गई है। जगह-जगह नारायण राणे द्वारा की गई टिप्पणी का शिवसैनिक विरोध कर रहे थे। लेकिन हम आपको बता दें कि नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले भी कई मौकों पर दोनों नेता आमने-सामने आ चुके हैं।नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच का विवाद कहीं-न-कहीं शिवसेना से ही शुरू हुआ है। नारायण राणे पहले शिवसेना में थे, जो बाद में कांग्रेस में और फिर साल 2019 में भाजपा में शामिल हो गए।शिवसेना में रहते हुए मनोहर जोशी के हटने के बाद नारायण राणे मुख्यमंत्री बने थे। कभी बालासाहेब ठाकरे के विश्वासपात्र रहे नारायण राणे काफी ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं।कौन हैं नारायण राणे ?
एक क्लर्क के रूप में जीवन की शुरुआत करने वाले नारायण राणे ने शिवसेना शाखा प्रमुख बनने से लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का तक का सफर तय किया। मनोहर जोशी के हटने के बाद नारायण राणे मुख्यमंत्री बने थे। इसके अलावा वो विधानसभा में विपक्ष के नेता भी बने। हालांकि बालासाहेब ठाकरे के विश्वासपात्र लोगों में शामिल थे और उन्हीं की मौजूदगी में शिवसेना से राजनीतिक पारी की शुरुआत की लेकिन उद्धव ठाकरे के चलते नारायण राणे को पार्टी से निकाल दिया गया।जब बढ़ने लगी थी दूरियांआपको बता दें कि उद्धव ठाकरे जब कार्यकारी अध्यक्ष बने थे तभी से उनके और नारायण राणे के बीच में दूरियां बढ़ने लगी थी। इसके बावजूद नारायण राणे पार्टी में अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिशों में जुटे रहते थे। कई मौकों पर तो उन्होंने शक्ति प्रदर्शन भी किया लेकिन अंतत: उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नारायण राणे को लगता है कि उद्धव ठाकरे की वजह से ही उन्हें पार्टी से निकाला गया था और इसी वजह से वह शिवसेना पर हमलावर रहते थे। शिवसेना में दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले नारायण राणे उद्धव के भाई राज ठाकरे के बेहद करीबी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे को हमेशा लगता था कि बालासाहेब के बाद नारायण राणे पार्टी को तोड़कर काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसीलिए उन्हें धीरे-धीरे किनारे करना शुरू कर दिया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि नारायण राणे कोंकण का चेहरा हैं। ऐसे में शिवसेना के साथ उनकी तकरार लाजिमी भी है। वहीं भाजपा का उनका आगे बढ़ाना कहीं-न-कहीं शिवसेना को सीधी चुनौती देना है और भविष्य में शिवसेना के साथ आने की गुंजाइशों को समाप्त भी करना है। लेकिन राजनीतिक अनिश्चितताओं का खेल है।