पोर्न सामग्री, अश्लील गानों, उत्तेजित विज्ञापनों के विरोध में कब मार्च निकलेगा ?

By देवेन्द्रराज सुथार | Dec 18, 2019

समाज में जब भी कोई दुष्कर्म की लोमहर्षक घटना प्रकाश में आती है तो उसके लिए कठोर सजा के प्रावधान की वकालत होनी शुरू हो जाती है। हालांकि केंद्र सरकार ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने वालों को मौत की सजा देने का अध्यादेश पारित किया है। साथ ही इसमें 12 से 16 साल की उम्र की किशोरियों से बलात्कार की सजा को 10 से बढ़ाकर 20 और 16 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों या महिलाओं से बलात्कार की सजा को 7 से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। लेकिन इसके बाद भी आखिर इन घटनाओं पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है? आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो पता चलता है कि तमाम तरह के सख्त कानून बनने के बाद भी भारत में बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार 2015 में बच्चियों से बलात्कार के जहां लगभग 11 हजार मामले दर्ज हुए थे तो 2016 में यह आंकड़ा 20 हजार हो गया। बलात्कार, हत्या, यौन शोषण, एसिड हमला और दहेज प्रताड़ना जैसे किसी भी अपराध में कड़े कानून बनने के बाद भी कोई कमी नहीं आई बल्कि उल्टे बढ़ोतरी ही हो रही है। सच्चाई तो ये है कि सरकार ने कठोर सजा के प्रावधान के नाम पर दुष्कर्म की ओर ले जाने असल कारणों की रोकथाम के बारे में चिंतन ही नहीं किया। 

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अब जब उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने दुष्कर्म को बढ़ावा देने वाली पोर्नोग्राफी पर पाबंदी को लेकर ठोस रणनीति सुझाने के निर्देश दिए हैं तो इंटरनेट पर बढ़ती दरिंदगी को रोकने की चर्चा तेज हो गई है। दरअसल हर चीज अपने साथ कुछ नकारात्मक परिणाम लेकर चलती है। इंटरनेट भी इससे अछूता नहीं है। पूरी दुनिया को एक स्क्रीन पर लाने वाले इंटरनेट ने एक ओर दिशा देकर लोगों के ज्ञान और सूचनाओं में अपार वृद्धि की है तो दूसरी ओर इसके माध्यम से किशोरों और युवाओं को भ्रमित करने का काम भी जोरों शोरों से अंजाम लेने लगा है। यही कारण है कि आज इंटरनेट पोर्नोग्राफी और अश्लीलता का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है। अश्लीलता वेबसाइट पर इस तरह से युवाओं को आकर्षित कर रही है कि न चाहते हुए भी वे इस ओर उन्मुख हो रहे हैं। युवाओं को भटकाने वाला यह पड़ाव उनको शारीरिक एवं मानसिक रूप से रुग्ण ही नहीं कर रहा है बल्कि उन्हें बलात्कार, दुष्कर्म की दिशा में भी धकेल रहा है। चूंकि मानव की देखकर उसे अपने व्यावहारिक जीवन में अपनाने की प्रवृत्ति होती है, जिससे समाज में आज तेज गति से दुष्कर्म के मामले अंजाम ले रहे हैं। जिसका मूल कारण इंटरनेट पर परोसा जाने वाला कामुकता एवं अश्लीलता का ये दूषित माहौल ही है। 

 

गौरतलब है कि दुनिया की सबसे बड़ी पोर्न वेबसाइट पोर्नहब के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के बाद भारत में सबसे ज्यादा पोर्न देखा जाता है। इंटरनेट पोर्नोग्राफी भारत में काफी लोकप्रिय है। भारत में पोर्न वेबसाइटों से कुल इंटरनेट ट्रैफिक 30 से 70 प्रतिशत तक है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में 40 फीसदी इंटरनेट ट्रैफिक पोर्न वीडियो से आता है। एक सर्वे में पाया गया कि हरियाणा के शहरी इलाकों मसलन गुडगांव, फरीदाबाद आदि में 63 प्रतिशत युवा पोर्नोग्राफी देखते हैं। असल में एक किशोर इंटरनेट, फिल्म, विज्ञापन तथा पोर्न आदि सभी जगहों में स्त्रियों को जिस तरह से देखता है, तो उससे उनके मन में स्त्री की पहली छवि यौन वस्तु के रूप में ही बननी शुरू होती है। किशोर से पुरुष बनने की प्रक्रिया में शायद ही कभी वे लड़की को अपनी साथी के रूप में देखते-समझते हैं। स्त्री का साथी रूप सबसे ज्यादा आनंदकारी है, ऐसा कोई ख्याल उन्हें छूता भी नहीं क्योंकि अक्सर ऐसी चीजें किशोरों को समाज में देखने को नहीं मिलतीं जिनसे वे महसूस करें कि लड़कियां भी उनकी ही तरह इंसान हैं, उनकी साथी हैं। इसलिए वे उनके साथी नहीं बनना चाहते, बल्कि सिर्फ उन्हें भोगना चाहते हैं। इसके लिए तरह-तरह के रिश्तों के जाल बुनते जाते हैं या फिर बलात संबंध बनाते हैं। निःसंदेह अपवाद भी है, लेकिन पुरुषों का एक बड़ा हिस्सा, लड़कियों-स्त्रियों को अक्सर ही भोगना चाहता है। चारों तरफ स्त्री को यौन वस्तु के रूप में पेश करने और पुरुष की यौनेच्छा को बढ़ाने के लिए जितने इंतजाम किये गए हैं, उन सबका बलात्कार के बढ़ते प्रतिशत से सीधा संबंध है। ऐसे में इस बात की उम्मीद न के बराबर ही है कि मौत की सजा बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं को कम कर देगी। 

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असल में हम सभी बलात्कार को सिर्फ एक समस्या के तौर पर ही देख रहे हैं। निःसंदेह बलात्कार अपने आप में गंभीर समस्या तो है ही, लेकिन उससे भी ज्यादा यह समस्याओं का परिणाम है। बलात्कार जैसी अमानवीय समस्या को खत्म करने के लिए उसे समस्या से ज्यादा समस्याओं के परिणाम के तौर पर देखे जाने की सख्त जरूरत है। क्या बलात्कार के खिलाफ जब-तब बड़े-बड़े प्रदर्शन करने वाले पोर्न सामग्री, अश्लील गानों, उत्तेजित करने वाले विज्ञापनों और ऐसी तमाम सामग्रियों के विरोध में भी तत्काल खड़ा होने का साहस करेंगे? उपेक्षा और अनुपयोग अकेले ऐसे हथियार हैं जो किसी भी चीज का अस्तित्व खतरे में डाल सकते हैं। क्या हम हर उस चीज की उपेक्षा करने को तैयार हैं जो स्त्री को भोग की वस्तु की तरह दिखा-बता रही है और समाज में सेक्समय माहौल बना रही है? असल में समाज लगातार बलात्कारी पैदा होने से रोकने की अपनी विफलता का मातम सरकार, पुलिस और न्याय व्यवस्था को कोसकर बखूबी मना रहा है। पर क्या कोई उससे पूछने वाला है कि बलात्कारी पैदा होने से रोक पाने के लिए उसने अपने स्तर पर क्या, कितने और कैसे प्रयास किए। समाजशास्त्रियों का प्रबल विश्वास है कि जब तक समाज की इस यौन कुंठा और सेक्समय माहौल को कम नहीं किया जाएगा तब तक सिर्फ सजा का डर दिखाकर इसमें हो रहे यौन अपराधों की संख्या कम करना जरा भी संभव नहीं है।

 

-देवेन्द्रराज सुथार

 

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