देश प्रेम को कुछ विशेष दिनों तक ही सीमित करके नहीं रखें

By फ़िरदौस ख़ान | Aug 15, 2022

यह ख़ुशनुमा अहसास है कि हमारा देश आज़ादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। जन्म स्थान या अपने देश को मातृभूमि कहा जाता है। भारत और नेपाल में भूमि को मां के रूप में माना जाता है। यूरोपीय देशों में मातृभूमि को पितृ भूमि कहते हैं। दुनिया के कई देशों में मातृ भूमि को गृह भूमि भी कहा जाता है। इंसान ही नहीं, पशु-पक्षियों और पशुओं को भी अपनी जगह से प्यार होता है, फिर इंसान की तो बात ही क्या है। हम ख़ुशनसीब हैं कि आज हम आज़ाद देश में रह रहे हैं। देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से आज़ाद कराने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत क़ुर्बानियां दी हैं। उस वक़्त देश प्रेम के गीतों ने लोगों में जोश भरने का काम किया। बच्चों से लेकर नौजवानों, महिलाओं और बुज़ुर्गों तक की ज़ुबान पर देश प्रेम के जज़्बे से सराबोर गीत किसी मंत्र की तरह रहते थे। क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की नज़्म ने तो अवाम में फ़िरंगियों की बंदूक़ों और तोपों का सामने करने की हिम्मत पैदा कर दी थी।


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है...


देश प्रेम के गीतों का ज़िक्र मोहम्मद अल्लामा इक़बाल के बिना अधूरा है। उनके गीत सारे जहां से अच्छा के बग़ैर हमारा कोई भी राष्ट्रीय पर्व पूरा नहीं होता। हर मौक़े पर यह गीत गाया और बजाया जाता है। देश प्रेम के जज़्बे से सराबोर यह गीत दिलों में जोश भर देता है।

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सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा

यूनान, मिस्र, रोमा, सब मिट गए जहां से

अब तक मगर है बाक़ी, नामो-निशां हमारा...


जयशंकर प्रसाद का गीत यह अरुण देश हमारा, भारत के नैसर्गिक सौंदर्य का बहुत ही मनोहरी तरीक़े से चित्रण करता है।

 

अरुण यह मधुमय देश हमारा

जा पहुंच अनजान क्षितिज को

मिलता एक सहारा...


हिन्दी फ़िल्मों में भी देश प्रेम के गीतों ने लोगों में राष्ट्र प्रेम की गंगा प्रवाहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज़ादी से पहले इन गीतों ने हिन्दुस्तानियों में ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़कर मुल्क को आज़ाद कराने का जज़्बा पैदा किया और आज़ादी के बाद देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार करने में अहम किरदार अदा किया है। फ़िल्मों का ज़िक्र किया जाए तो देश प्रेम के गीत रचने में कवि प्रदीप आगे रहे। उन्होंने 1962 की भारत-चीन जंग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी’ गीत लिखा। लता मंगेशकर द्वारा गाये इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में 26 जनवरी, 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया था। गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आई थीं। साल 1943 बनी फिल्म क़िस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ ने उन्हें अमर कर दिया। इस गीत से ग़ुस्साई तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ़्तारी के आदेश दिए थे, जिसकी वजह से प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा था। उनके लिखे फ़िल्म जागृति (1954) के गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तानकी’ और ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ आज भी लोग गुनगुना उठते हैं।


शकील बदायूंनी का लिखा फ़िल्म सन ऑफ़ इंडिया का गीत ‘नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं’ बच्चों में बेहद लोकप्रिय है। कैफ़ी आज़मी के लिखे और मोहम्मद रफ़ी के गाये फ़िल्म हक़ीक़त के गीत ‘कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ को सुनकर आंखें नम हो जाती हैं और शहीदों के लिए दिल श्रद्धा से भर जाता है। फ़िल्म लीडर का शकील बदायूंनी का लिखा और मोहम्मद रफ़ी का गाया और नौशाद के संगीत से सजा गीत ‘अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं, लेकिन सर झुका सकते नहीं’ बेहद लोकप्रिय हुआ। प्रेम धवन द्वारा रचित फ़िल्म हम हिन्दुस्तानी का गीत ‘छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नये दौर में लिखेंगे, मिलकर नई कहानी’ आज भी इतना ही मीठा लगता है। उनका फ़िल्म क़ाबुली वाला का गीत भी रोम-रोम में देश प्रेम का जज़्बा भर देता है।


ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल क़ुर्बान

तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान...


राजेंद्र कृष्ण द्वारा रचित फ़िल्म सिकंदर-ए-आज़म का गीत भारत देश के गौरवशाली इतिहास का मनोहारी बखान करता है।


जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा

वो भारत देश है मेरा, वो भारत देश है मेरा

जहां सत्य अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा

वो भारत देश है मेरा, वो भारत देश है मेरा...


इसी तरह गुलशन बावरा द्वारा रचित फ़िल्म उपकार का गीत देश के प्राकृतिक खनिजों के भंडारों और खेतीबाड़ी और जनमानस से जुड़ी भावनाओं को बख़ूबी प्रदर्शित करता है।

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मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती

मेरी देश की धरती

बैलों के गले में जब घुंघरू

जीवन का राग सुनाते हैं

ग़म कोसों दूर हो जाता है

जब ख़ुशियों के कमल मुस्काते हैं...


इसके अलावा फ़िल्म अब दिल्ली दूर नहीं, अमन, अमर शहीद, अपना घर, अपना देश, अनोखा, आंखें, आदमी और इंसान, आंदोलन, आर्मी, इंसानियत, ऊंची हवेली, एक ही रास्ता, क्लर्क, क्रांति, कुंदन, गोल्ड मेडल, गंगा जमुना, गंगा तेरा पानी अमृत, गंगा मान रही बलिदान, गंवार, चंद्रशेखर आज़ाद, चलो सिपाही चलो, चार दिल चार रास्ते, छोटे बाबू, जय चित्तौ़ड, जय भारत, जल परी, जियो और जीने दो, जिस देश में गंगा बहती है, जीवन संग्राम, जुर्म और सज़ा, जौहर इन कश्मीर, जौहर महमूद इन गोवा, ठाकुर दिलेर सिंह, डाकू और महात्मा, तलाक़, तूफ़ान और दीया, दीदी, दीप जलता रहे, देशप्रेमी, धर्मपुत्र, धरती की गोद में, धूल का फूल, नई इमारत, नई मां, नवरंग, नया दौर, नया संसार, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, प्यासा, परदेस, पूरब और पश्चिम, प्रेम पुजारी, पैग़ाम, फ़रिश्ता और क़ातिल, अंगारे, फ़ौजी, बड़ा भाई, बंदिनी, बाज़ार, बालक, बापू की अमर कहानी, बैजू बावरा, भारत के शहीद, मदर इंडिया, माटी मेरे देश की, मां बाप, मासूम, मेरा देश मेरा धर्म, जीने दो, रानी रूपमति, लंबे हाथ, शहीद, आबरू, वीर छत्रसाल, दुर्गादास, शहीदे-आज़म भगत सिंह, समाज को बदल डालो, सम्राट पृथ्वीराज चौहान, हम एक हैं, कर्मा, हिमालय से ऊंचा, नाम और बॉर्डर आदि फ़िल्मों के देश प्रेम के गीत भी लोगों में जोश भरते हैं। मगर अफ़सोस कि अमूमन ये गीत स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या फिर गांधी जयंती जैसे मौक़ों पर ही सुनने को मिलते हैं, ख़ासकर ऑल इंडिया रेडियो पर।


बहरहाल, यह हमारे देश की ख़ासियत है कि जब राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवय या इसी तरह के अन्य दिवस आते हैं तो रेडियो पर देश प्रेम के गीत सुनाई देने लगते हैं। बाक़ी दिनों में इन गीतों को सहेजकर रख दिया जाता है। शहीदों की याद और देश प्रेम को कुछ विशेष दिनों तक ही सीमित करके रख दिया गया है। इन्हीं ख़ास दिनों में शहीदों को याद करके उनके प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। कवि जगदम्बा प्रसाद मिश्र हितैषी के शब्दों में यही कहा जा सकता है-


शहीदों की चिताओं लगेंगे हर बरस मेले

वतन पे मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा… 


-फ़िरदौस ख़ान

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)

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