उपहारों की दीपावली (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Oct 22, 2024

दीपावली के अवसर पर उपहार देने की खुशी से ज्यादा, उपहार लेने की इच्छा प्रबल होती है। कई ऐसे व्यक्तियों को भी उपहार देना पड़ता है जिन्हें हम पसंद नहीं करते। जिन्हें पसंद करते हैं उनसे अच्छे उपहार की उम्मीद करते हैं। दिए गए उपहार के बदले उपयुक्त वस्तु न मिले तो सोचते हैं अगले साल से सिर्फ मिठाई, जूस, फल या बिस्कुट ही देंगे ताकि घर में ‘हर कुछ’ इक्कठा न हो। कई तोहफे दूसरों को न देने की नीयत, संभाल कर रखे रहने के कारण, प्रयोग व देने लायक नहीं रह जाते अंतत कबाड़ के हवाले किए जाते हैं। अधिकांश तोहफे स्वार्थपूर्ति, विवशता और निबटान की चमकीली पैकिंग में ज़्यादा दिए लिए जाने लगे हैं। सौहार्द, सहभागिता व सामाजिकता परेशान है। चुस्त बाज़ार के होशियार विज्ञापन हमारे दिल और दिमाग पर छाए हुए हैं। दिवाली के तोहफों की छाया में आश्वासन लिए दिए जाते हैं। तोहफों के रंग और ढंग हर साल बदल दिए जाते हैं। कई घरों में इतने मेवे पहुँच जाते हैं कि रिशतेदारों में बांटने के बाद भी पूरा साल खाए जा सकें। 


इस त्योहार का दूसरा उपहार सफाई है। हम साफ़ सुथरे घर में रहना पसंद करते हैं लेकिन हमें अड़ोस पड़ोस उतना ही गंदा पसंद है। दीपोत्सव से पहले काफी कूड़ा कचरा निकाला जाता है, रंग रोगन किया जाता है लेकिन दीप माला के दिन, रात और उसके बाद की सुबह बताती है कि असली कचरा तो हमने त्योहार के दौरान उगला है। घरों की छतें, गली कूचे, जले हुए पटाखों, बची मोमबत्तियों, दीयों व दूसरे पैकिंग कचरे से परेशान हो जाते हैं। कई जगह पर, दशहरा में रावण का पुतला जलाकर, बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य का कचरा साफ़ न कर पर्यावरण दूषित करने की बुराई और बढ़ा दी जाती है। हम बढ़ना अच्छा मानते हैं।

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प्रदूषण दीपावली के उत्सव का तीसरा उपहार है। प्रदूषण कम करने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय पटाखे जलाने के लिए समयावधि निर्धारित करता है लेकिन पूरे देश में हर तरफ कितने ही नकली माननीय उस अवधि से पहले और बाद तक पटाखे जलाते रहते हैं। दिवाली के अवसर पर, केवल एक रात में, देश को असीमित प्रदूषण का तोहफा दिया जाता है। अभी तक पालीथिन और प्लास्टिक का बाल भी बांका नहीं हो पाया तो प्रदूषण के पटाखों का कोई क्या कर सकता है। ई पटाखों में वो मज़ा कहां जो छत पर चढ़कर, आसमान को गैस से भर देने वाले पटाखे फूलझड़ी से जलाकर आता है। त्योहारों पर प्रदूषण कम करने के संजीदा उपाय करने से बेहतर तो संजीदा चिंता करना लगता है। क्या आपने सुनिश्चित कर लिया है कि पड़ोसियों और मित्रों को इस दिवाली उनकी पसंद का क्या खिला रहे हैं या फिर कहीं से आया डिब्बा ही किसी को भिजवाना है।


- संतोष उत्सुक

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