'मुस्लिम-यादव' समीकरण छोड़ तेजस्वी की हर वर्ग को साधने की रणनीति

By अभिनय आकाश | Oct 05, 2020

बिहार लोकतांत्रिक राजनीति की किताबी समझ को चुनौती देता रहा है। सारे कायदे-कानूनों से अलग बिहार और लालू प्रसाद यादव की पार्टी, पहले जनता दल और फिर उसी में से निकले राष्ट्रीय जनता दल जिसने लगभग डेढ़ दशक से ज्यादा समय से बिहार पर राज किया। लेकिन इस बार का विधानसभा चुनाव राजद और पूरे अभियान की कमान संभाल रहे उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के लिए भी एक बड़ी परीक्षा है। जो बिहार के राजनीतिक इतिहास को जानते-समझते हैं, वे यह मानते हैं कि तमाम प्रतिकुलताओं के बावजूद लालू प्रसाद को कमतर आंकना उनके प्रतिद्वंद्वियों के लिए भयंकर भूल सरीखा रहा है। लेकिन लालू की छाया से इतर इस बार राजद अपनी जमीन तैयार करने की कवायद में लगा है। 

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वैसे बिहार में जातीय समीकरण पर चुनाव लड़े जाने की बात पुरानी है, लेकिन वक्त के साथ कुछ हद तक राजनीतिक दलों के जातीय समीकरणों की दीवारें दरक रही हैं। नब्बे के दशक का दौर था जब लालू यादव की अगुवाई में जनता दल एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरी। पार्टी ने अगड़ों के विरोध में पिछड़ों और मुस्लिमों को लामबंद किया। ये वो दौर था जब लालू खुल कर भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) साफ करो की अपील करते और खुद को माई (मुस्लिम+यादव) के लाल कहलवाना पसंद करते थे। जिसका उन्हें लाभ भी मिला। लेकिन नीतीश कुमार की बिहार के राजनीति में उभरने के साथ ही उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग के जरिेये पिछड़ों और दलितों के वोट में सेंध लगाई। साथ ही उन्हें ये समझाने में भी सफलता पाई की राष्ट्रीय जनता दल समाजिक न्याय के नाम पर केवल यादवों को संरक्षित करने का काम करते हैं। जिसके बाद धीरे-धीरे राजद से अतिपिछड़ा, गैर यादव पिछड़ा और दलित वोट खिसकने लगा और अगड़ी जाति कभी उनकी वोटर रही ही नहीं है। ऐसे में तेजी से बदलते समीकरण से सूबे में उनकी ताकत, आधार और बेस समाप्त होता गया और राज्य की सत्ता का लंबा वनवास भी हो गया। 

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सर्व समावेशी दल और गठबंधन के रूप में कर रहे प्रोजेक्ट

तेजस्वी यादव की राजद इस चुनाव में खुद को सर्व समावेशी दल और गठबंधन के रूप में आगे कर ही बढ़ रही है। इसकी कवायद उन्होंने कुछ महीने पहले ही शुरू कर दी थी। फरवरी के महीने में तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर विरोधियों पर आरोप लगाया था कि साजिश के तहत उनकी पार्टी को 'एमवाई' समीकरण वाली पार्टी की तरत प्रचारित किया जा रहा है। आरजेडी के बारे में गलत प्रचार किया जाता है कि ये अगड़ी जाति की विरोधी है। ये प्रचार पूरी तरह से गलत और भ्रामक है. हम प्रगतिशील समाज का पूरा आदर करते हैं और उनके हक की लड़ाई लड़ते हैं। जिसके बाद संगठन में मुस्लिम,यादवों से इतर अगड़े और अति पिछड़ी जातियों को जगह देने की कवायद शुरू की है। कांग्रेस को 70 सीटें देने के पीछे भी अगड़ी जातियों में सेंध लगाने की रणनीति का ही हिस्सा है। 

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