By डॉ अजय खेमरिया | Sep 04, 2019
मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्विजय सिंह एक ऐसा नाम है जिनसे आप असहमत हो सकते हैं, उनके धुर विरोधी हो सकते हैं लेकिन आप उन्हें खारिज नही कर सकते हैं। वैसे उनकी छवि एक वर्ग में खासकर मीडिया में प्रतिक्रियावादी नेता की है। वे जब भी बोलते हैं ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस के लिये मुसीबत बन आती है। पर इससे दिग्गी राजा (लोग उन्हें मप्र में इसी नाम से पुकारते हैं) बेफिक्र होकर राजनीति करते आये हैं। उनकी अट्टहास भरी हंसी बहुअर्थी होती है जिसे सियासी जानकार अपने-अपने हिसाब से विश्लेषित करते रहे हैं।
दिग्विजय सिंह सिंधिया के गढ़ यानी ग्वालियर में थे यहां उनका अट्टहास भरा अंदाज मध्य प्रदेश की सियासत में मची उथल पुथल को एक नई इबारत दे गया। जिस बेफिक्री के साथ उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सवाल को हल्के में उड़ाया उसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं। बकौल दिग्गी राजा कमलनाथ अभी अध्यक्ष हैं और हाँगकाँग में आंदोलन 20 से 22 साल के युवा चला रहे हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के अल्टीमेटम को उन्होंने बीजेपी के व्हाट्सएप ग्रुप की करतूत करार दिया।
इन बातों के सियासी मायने क्या हैं ? जो दिग्गी राजा को गहराई से समझते हैं उन्हें पता है कि दिग्विजय सिंह की हर बात गहरे सियासी अर्थ लिये होती है। सिंधिया की कथित धमकी के 24 घण्टे के भीतर ही दिग्विजय का ग्वालियर में आना और युवा नेतृत्व के सवाल को हाँगकाँग के आंदोलनकारियों से जोड़ना इस बात की तस्दीक करता है कि राजा कांग्रेस के महाराजा की चुनौती को खुलकर स्वीकार कर रहे हैं वह अच्छी तरह जानते हैं कि सिंधिया की उम्र 50 है और वे बीस बाइस साल के नहीं हैं। सियासी पंडित इसका आशय आसानी से लगा सकते है। फिर कमलनाथ अभी अध्यक्ष हैं यानी राजा यही समझा रहे हैं कि कोई वैकेंसी फिलहाल नहीं है।
दिग्विजय सिंह की यह ग्वालियर यात्रा कई मायनों में मप्र की सियासत की आसन्न तस्वीर को समझने के लिये पर्याप्त है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के घर वह डॉ. गोविंद सिंह के साथ आये और अपैक्स बैंक के चेयरमैन अशोक सिंह के घर उनकी सियासी महफ़िल जमी जिसमें अंचल के सभी सिंधिया विरोधियों का जमावड़ा जुटा। खास बात यह रही कि एक भी सिंधिया समर्थक नेता पूर्व मुख्यमंत्री की अगवानी तो दूर उनके आसपास तक नहीं फटका। यानि साफ है कि राजा और महाराजा की चार दशक पुरानी सियासी विभाजन रेखा कमजोर नहीं हुई है बल्कि गहराती अधिक जा रही है। जिन कांग्रेसियों को सिंधिया फूटी आँख से भी नहीं देखते उन्हें आज के दौरे में दिग्गी राजा ने भरपूर तवज्जो दी।
सुमावली के विधायक एदल सिह कंसाना से तो उन्होंने यहां तक कहा कि "तुमने तो बड़े बड़े नेताओं की पेशाब तक बन्द करा दी थी।" एदल सिंह मंत्री नहीं बनाये जाने से इतने नाराज थे कि उन्होंने इसके लिए सिंधिया को खुलेआम जिम्मेदार ठहराया था। उनके समर्थकों ने जाम तक लगा दिया था। एदल सिंह 1998 में बसपा से विधायक थे उन्हें दिग्विजय सिंह ही कांग्रेस में लेकर आये थे। कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे फूलसिंह बरैया भी को भी दिग्गी राजा ने भरपूर तवज्जो दी जो घोषित रूप से सिंधिया के विरोधी हैं। उनका कांग्रेस में प्रवेश भी सिंधिया की असहमति के बावजूद दिग्विजय सिंह द्वारा ही कराया गया है। भिंड से लोकसभा का टिकट पाए देवाशीष जरारिया भी ऐसे ही नेता हैं जो सिंधिया के फॉर्मेट में फिट नहीं हैं। यानी सन्देश साफ है सिंधिया के घर में भी राजा अपने समर्थकों को पूरा संरक्षण देंगे। जबकि पिछले 15 वर्षों से यह तबका हाशिये पर था।
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दिग्विजय सिंह का यह दौरा सरकार गिराने की कतिपय चुनौतियों को कमतर प्रदर्शित करने की कोशिश भी है क्योंकि वे भिंड के बसपा विधायक संजू कुशवाह के बुलावे पर महाराणा प्रताप की मूर्ति का अनावरण करने गए थे। संजू कमलनाथ की सरकार को समर्थन दे रहे हैं और दिग्गी राजा को बुलाकर उन्होंने अंचल में संदेश साफ कर दिया कि वे सिंधिया नहीं दिग्विजय सिंह के साथ हैं।
दिग्विजय सिंह जानते हैं सियासत में टाईमिंग का बड़ा महत्व होता है इसलिये उन्होंने बसपा विधायक की इस स्वीकारोक्ति के लिये जानकर यह समय चुना जब मप्र की राजनीति में सिंधिया का कतिपय अल्टीमेटम चर्चा का केंद्रीय विषय बना हुआ है। दिग्गी राजा और सिंधिया की राजनीति को नजदीक से समझने वाले जानते हैं कि दोनों की स्टाइल में जमीन आसमान का अंतर है। दिग्गी राजा जहां अपने समर्थकों और फ़ॉलोअर्स के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहते हैं वहीं सिंधिया इससे परहेज करते हैं। यही कारण है कि 15 साल तक कांग्रेस मप्र में सत्ता से दूर रही लेकिन उनकी सरकार के ताकतवर चेहरे लगातार जीतते रहे या जमीनी पकड़ बना कर रखने में सक्षम रहे।
मौजूदा समीकरण भले ही ऊपर से कमलनाथ सरकार को कमजोर बताते हों पर दिग्विजय अच्छी तरह से जानते हैं कि सरकार का भविष्य क्या है? इसीलिए वह हंसी ठिठोली के साथ जिस बेफिक्री का सन्देश ग्वालियर में खड़े होकर दे रहे हैं उसे कोई उनके तुष्टिकरण के बयानों की तरह लेने की गलती नहीं कर सकता है। उन्हें पता है कि सोनिया गांधी के दरबार में क्या निर्णय होना है और वे यह भी जानते हैं कि सिंधिया के अल्टीमेटम को किस हद तक सरकार की सेहत के साथ जोड़ा जाए इसलिए वे ग्वालियर में उसी अशोक सिंह के घर पर खड़े होकर अट्टहास कर रहे हैं जिसे सिंधिया कभी पसन्द नहीं करते हैं। वे भिंड जाने के लिये सहकारिता मंत्री गोविन्द सिंह की गाड़ी को चुनते हैं जो एक रोज पहले ही सिंधिया समर्थक मंत्रियों से खुलेआम भिड़ रहे थे।
यही दिग्विजय सिंह का स्टाइल है। वे वक्त की नजाकत को भांपने और उसके अनुरूप चलने के माहिर खिलाड़ी हैं इसीलिये उनके समर्थक मंत्री जीतू पटवारी का नाम सिंधिया कोटे के मंत्री लाखन सिंह यादव आगे करते हैं तो इसे आप सामान्य घटनाक्रम मत मानिए। लाखन सिंह यादव ग्वालियर की भितरवार सीट से विधायक हैं। 1998 में वे बसपा से पहली बार जीते थे और दिग्गी राजा ही उन्हें कांग्रेस में लेकर आये थे यह शायद लोग भूल गए हैं।
मुरैना में सिंधिया के सबसे विश्वसनीय रामनिवास रावत के विरुद्ध लोकसभा चुनाव में सभी सिंधिया निष्ठ विधायकों ने कितनी निष्ठा से काम किया यह भी दिग्विजय सिंह से ज्यादा शायद ही किसी को पता हो। यही बुनियादी फर्क राजा और महाराजा के समर्थक कांग्रेसियों में है। इसके बावजूद सिंधिया समर्थक सोशल मीडिया पर आर-पार की जंग और याचना नहीं अब रण होगा जैसी हुंकार भर रहे हैं। आखिर सवाल यह है कि रण किससे होना है ? दिग्विजय सिंह तो ग्वालियर में ही खड़े हैं...! हाँगकाँग में बीस बाइस साल के लोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं यानी 50 साल के सिंधिया को क्या नेतृत्व नहीं मिलने वाला ? दिग्गी राजा की अट्टहास भरी हंसी को आप ही विश्लेषित कीजिये।
-डॉ. अजय खेमरिया