By नीरज कुमार दुबे | Oct 11, 2024
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपने हालिया भाषणों में दावा किया था कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ दिया है। लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि मोदी की स्वीकार्यता और लोकप्रियता बरकरार है। राहुल गांधी बार-बार कहते रहे कि मैंने प्रधानमंत्री मोदी का सारा उत्साह फीका कर दिया है लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव परिणामों ने दर्शाया है कि भाजपा आज भी सीटों और वोटों के लिहाज से देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है। इसलिए सवाल उठता है कि क्या हरियाणा चुनाव नतीजों ने उस "मनोवैज्ञानिक लाभ" को बेअसर कर दिया है जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने लोकसभा चुनावों के बाद हासिल करने का दावा किया था?
इस बार दो सीटों से लोकसभा चुनाव जीते राहुल गांधी के पिछले तीन-चार महीनों के दौरान देश-विदेश में दिये गये भाषणों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उसमें अहंकार की स्पष्ट झलक थी जिसने कांग्रेस का बड़ा नुकसान कराया। राहुल गांधी के भाषणों में अक्सर दूरदर्शिता और विषय की पूर्ण समझ का अभाव होने के आरोप लगते हैं लेकिन इस सबके साथ वह अपने रुख में जो तीखापन ले आये उसके चलते अपनी सुधरती छवि को फिर बिगाड़ लिया। आरोप लगे कि कहने को वह मोहब्बत की दुकान चलाते हैं लेकिन उसमें खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नफरत का सामान ही हमेशा नजर आता है।
देखा जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के आक्रामक रुख को एक नई गति दी थी लेकिन विधानसभा चुनाव परिणामों ने कांग्रेस को स्तब्ध कर दिया है। इसी के साथ ही कांग्रेस अपने ही सहयोगियों के निशाने पर भी आ गयी है। इसके अलावा अचानक से "मनोवैज्ञानिक दबाव" विपक्षी खेमे पर आ गया है। उल्लेखनीय है कि अगले बड़े चुनावी रणक्षेत्र महाराष्ट्र और झारखंड में हैं, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में हरियाणा की ऐतिहासिक जीत ने भाजपा को अन्य चुनावों के लिए आत्मविश्वास दिया है। दूसरी ओर, विपक्ष का काम मुश्किल हो गया है इसलिए अब उसे अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।
एक चीज और है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में कई चीजें समान नहीं हैं। लेकिन दोनों राज्यों में एक अनोखी समानता है। हरियाणा में कांग्रेस ने भाजपा से पांच लोकसभा सीटें छीन ली थीं, जबकि महाराष्ट्र में भी विपक्षी गुट एमवीए ने भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति को करारी शिकस्त दी थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा और सहयोगियों को 17 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के विपक्षी एमवीए ने 48 में से 30 सीटें जीतीं। हालाँकि, हरियाणा के नतीजों ने यह भी साबित कर दिया है कि किसी राज्य में लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन उस राज्य में विधानसभा चुनाव जीतने की गारंटी नहीं हो सकता है।
विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस को हालिया चुनाव परिणामों से यह सबक लेना होगा कि भाजपा से सीधे मुकाबले में वह हमेशा कमजोर पड़ जाती है इसलिए उसे कुछ समय के लिए एकला चलो का ख्याल छोड़ना होगा। कांग्रेस को अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना होगा। कांग्रेस यदि बड़े भाई वाला अहंकार दिखाती रहेगी तो उसके सहयोगी छिटक जाएंगे। कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि वह समाजवादी पार्टी का साथ लेकर ही उत्तर प्रदेश में मजबूत हुई है इसलिए उसे अपने साथ बनाए रखने के लिए कांग्रेस को भी कुछ त्याग करने होंगे। उत्तर प्रदेश जैसी ही स्थिति कांग्रेस के लिए कई अन्य राज्यों में भी है। देखा जाये तो महाराष्ट्र में विपक्षी एमवीए के घटक और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा अगर कांग्रेस से बड़ा दिल दिखाने का आग्रह कर रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कांग्रेस को समझना होगा कि अभी वह पूरी तरह वापस अपने पैरों पर खड़ी नहीं हुई है। पैरों पर खड़े होने के प्रयास के बीच ही यदि बैसाखी हटा दी जायेगी तो यह देश की सबसे पुरानी पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा।