देवरहा बाबा भारत के जाने–माने सिद्ध पुरुष तथा योगी थे। पूजनीय बाबा को महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में महाभारत हासिल थी। योगिनी एकादशी को बाबा की पुण्यतिथि है तो आइए हम आपको महापुरुष के बारे में कुछ जानकारी देते हैं। देवरहा बाबा का जन्म कब हुआ कोई नहीं जानता। वह उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले थे। उनकी उम्र के बारे में कुछ कहना मुश्किल है। कुछ लोगों के अनुसार वे 900 साल तक जिन्दा थे। बाबा अपने भक्तों के लिए पूजनीय थे, इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। नेता, फिल्म स्टार्स और बड़े-बड़े अधिकारी उनसे आशीर्वाद लेने आते थे।
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बाबा जनसेवा और गोसेवा को सर्वोपरि मानते थे। यही नहीं अपने भक्तों को गरीबों और जरूरतमदों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा ईश्वर की भक्ति में लीन रहने को प्रेरित करते थे। बाबा शुद्धता, ईमानदारी तथा सात्विकता पर विशेष जोर देते थे। उनका मानना था कि इसके बिना ईश्वर की प्राप्ति सम्भव नहीं है। वे कहते थे कि श्रीकृष्ण तथा श्रीराम की धरती होने के कारण भारत बहुत पवित्र स्थल है तथा अपने देश की रक्षा करना हर देशवासी का परम कर्तव्य है। उन्होंने कई सालों तक हिमालय में तपस्या की उसके बाद देवरिया जिले के सलेमपुर शहर से कुछ दूरी पर सरयू नदी के किनारे रहकर राम नाम लेते थे। श्रद्धालु उनके बारे में कहते थे कि वह अपने पास आने वाले सभी से बहुत प्यार से मिलते थे और प्रसाद देते थे। वे लोगों को प्रसाद देते थे जबकि ऐसा माना जाता था कि मचान पर कोई प्रसाद नहीं रखा होता था। भक्त मानते थे कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। उन्हें अद्भुत कलाएं आती थीं। बाबा जानवरों की बोली समझते थे। जंगली जानवरों को भी अपने वश में कर लेते थे। बाबा संन्यासी थे तथा वह सादा जीवन जीते थे। वह सुबह ही स्नान कर ईश्वर की साधना में लीन हो जाते थे उसके बाद अपने मचान पर बैठ कर भक्तों से बात करते और उन्हें उपदेश देते। वह सभी कुंभ मेलों में जाया करते थे वहां कुछ फीट की ऊंचाई पर बैठकर लोगों को उपदेश दिया करते थे। उनके बारे में एक अनोखी बात यह थी कि वह भक्तों के मन की बातें जान लिया करते थे। बाबा से आशीर्वाद लेने इंदिरा गांधी सहित सभी बड़े नेता आते थे।
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लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।
बाबा हठयोग में पारगंत थे इसलिए उनसे लोग हठयोग सीखने भी आते थे। वह हठयोग की सभी मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या के भी वह अच्छे जानकार थे। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि में उन्हें महारत हासिल थी। जनमानस को वह अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत दिनों तक साधना की थी। बाबा की खेचरी मुद्रा विशेष प्रकार से चर्चित थी इसी के कारण वह बिना किसी आवागमन के कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। हर तरफ खुशबू फैली रहती थी। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिससे वे अपनी भूख तथा उम्र पर नियंत्रण कर लेते थे। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके अनुयायियों का मानना था कि बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। उनकी याद्दाश्त बहुत तेज थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके खानदान के बारे में बताते थे।
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बाबा ने जीवनभर कोई अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। एक अध्ययन के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए जरूरी एनर्जी ले तो सम्भव है कि उसे भूख ना लगे। 1911 में जार्ज पंचम जब भारत आया था तब वह बाबा से मिलने गया था। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को बचपन में ही देखकर बाबा ने कहा था कि वह एक दिन राजा बनेंगे। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे आशीर्वाद सब को समान रूप से देते थे। ऐसा माना जाता था कि उनका आशीर्वाद हर रोग की दवाई है। बाबा बलिष्ठ कदकाठी के थे। लेकिन देह त्यागने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन मचान पर ही बिताया था। नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मचान पर वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। उन्होंने खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तों को प्रसाद बांटते थे।
-प्रज्ञा पाण्डेय