कालेशवर में महाशिवरात्री पर श्रद्धालुओं ने महादेव का अभिषेक किया

By विजयेन्दर शर्मा | Mar 01, 2022

कालेशवर। प्रदेश के जिला कांगडा के कालेशवर में महाशिवरात्री के पावन अवसर पर बडी तादाद में श्रद्धालुओं ने दर्शन किये। श्रद्धालु बडी तादाद में श्रद्धालु यहां दर्शनों को जुटे हैं। जिससे महौल भक्तिमय बना हुआ है।  

प्रशासन ने यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये खास इंतजाम किये हैं।

 

मंदिर अधिकारी ने बताया कि प्रशासन की ओर से यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये इंतजाम किये है। सुरक्षा के लिये अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किये गये हैं। मंदिर अधिकारी अमित शर्मा ने बताया कि श्रद्धालु आसानी से दर्शन कर सकें । इसके इंतजाम किये है। मेला में कई सथानों पर लंगर भी लगाये गये हैं। 

 

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दर्शनों के लिये आये श्रद्धालु सुमित वरमानी ने बताया कि उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है। वह यहां हर साल अपने परिवार के साथ आते हैं।  फगवाडा से यहां लंगर लगाने आये  रवि मंगल ने बताया कि उनका सेवा दल यहां हर साल लंगर लगाता है। इसमें विभिन्न व्यजंन श्रद्धालुओं को परोसे जाते हैं।

 

पंडित केवल कृष्ण ने बताया कि कालेशवर में स्थापित कालेशवर महादेव मंदिर में ऐसा शिवलिंग है, जो जमीन के  अंदर धसता जा रहा है। हालंकि आम तौर पर शिवलिंग धरती के ऊपर ही होता है। लेकिन यहां जमीन के अंदर है व ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग हर साल जौ भर जमीन के अंदर समा जाता है।  यह शिवलिंग हर किसी के मन मस्तिक में कौतूहल पैदा करता है।  यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शनों को सारा साल आते हैं।

 

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 इस तीर्थ स्थल के साथ महाकाली के विचरण का महात्म्य भी जुड़ा है। ऋगवेद के अनुसार सतयुग में हिमाचल की षिवालिक पहाडिय़ों में दैत्य राज जालंधर का आंतक भरा सम्राज्य था। दैत्य राज के आतंक से निजात पाने के लिए सभी देवता एवं ऋशि मुनियों ने भगवान विष्णु के दरबार में फरियाद की। देवों, ऋशियों, मुनियों ने  सार्मथ्यानुसार अपनी शक्तियां प्रदान करने पर विराट शक्ति महाकाली प्रकट हुई। जिनके द्वारा सभी राक्षसों का अंत करने के उपरांत महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव रास्ते में लेट गए और उनके स्पर्ष से महाकाली शांत हुई।  महाकाली इस गलती का प्रायश्चित करने के लिए वर्षों हिमालय पर विचरती रही और एक दिन इसी स्थान पर व्यास के किनारे भगवान शिव को याद किया भगवान शिव ने महाकाली को दर्शन दिए और इस पावन स्थली पर महाकाली ने प्रायश्चित किया। उसी समय यहां ज्योर्तिलिंग की स्थापना हुई और इस स्थान का नाम महाकालेशवर पड़ गया।


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