वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में दिनांक 1 फ़रवरी 2021 को प्रस्तुत किए गए बजट के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिनांक 5 फ़रवरी 2021 को मौद्रिक नीति की घोषणा की है। इस वर्ष राजकोषीय नीति को विस्तारवादी बनाया गया है ताकि आर्थिक विकास को गति दी जा सके। केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 4.12 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत ख़र्चों का प्रावधान किया गया था। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में पूंजीगत ख़र्चों में 34.46 प्रतिशत की वृद्धि दृष्टीगोचर होगी। वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार विभिन्न मदों पर कुल मिलाकर 30.42 लाख करोड़ रुपए का भारी भरकम ख़र्च करने जा रही है और इस ख़र्चे को करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से 12 लाख करोड़ रुपए का सकल उधार लिया जाएगा। चूंकि निजी क्षेत्र अभी अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने की स्थिति में नहीं है अतः अर्थव्यवस्था को तेज़ गति से चलायमान रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अपने पूंजीगत ख़र्चों में भारी भरकम वृद्धि करते हुए अपने निवेश को बढ़ा रही है। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार निवेश आधारित विकास करना चाह रही है। इस सबके लिए तरलता की स्थिति को सुदृढ़ एवं ब्याज की दरों को निचले स्तर पर बनाए रखना बहुत ज़रूरी है और यह कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के माध्यम से आसानी किया जा सकता है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 5 फ़रवरी 2021 को घोषित की गई मौद्रिक नीति के माध्यम से इसका प्रयास भी किया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 5 फ़रवरी 2021 को घोषित की गई मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है। साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वित्त वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश होने के बाद यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित की गई पहली मौद्रिक नीति है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने हालांकि फरवरी 2020 से अब तक रेपो रेट में 1.15 फीसदी की कटौती की है। साथ ही, चालू वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही जनवरी-मार्च 2021 में खुदरा महंगाई दर का लक्ष्य संशोधित कर 5.2 प्रतिशत कर दिया है। इस मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई की दर में कमी आई है और यह अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे आई है। यह भी कहा गया है कि आज समय की मांग है कि अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाये।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति में नरम रूख रखते हुए यह दर्शाया है कि आगे आने वाले समय में ब्याज दरों में कमी की जा सकती है। दरअसल बजट में की गई कई घोषणाओं से भारतीय अर्थव्यवस्था में विस्तार देखने को मिलेगा, अतः तरलता को बनाए रखना आवश्यक होगा इसलिए ब्याज की दरें भी कम रखनी होंगी। इस प्रकार मौद्रिक नीति अब देश की राजकोषीय नीति का सहयोग करती दिख रही है। मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाना एक अच्छी नीति है क्योंकि कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध होने से ऋण की मांग बढ़ती है।
विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुज़र रही है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिज़र्व बैंक तालमेल से कार्य कर रहे हैं यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) से अधिक होते ही भारतीय रिज़र्व बैंक रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता हैं। परंतु वर्तमान की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रास्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना ज़रूरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेज़ी लाना अभी अधिक ज़रूरी है। मुद्रास्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिये। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फ़ोकस करना ज़रूरी है। वैसे भी अभी खुदरा महंगाई दर 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है।
दूसरे, केंद्र सरकार की वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारी मात्रा में बाज़ार से क़र्ज़ लेने की योजना है ताकि बजट में किए गए ख़र्चों सम्बंधी वायदों को पूरा किया जा सके। इसलिए भी भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति में नरम रूख अपनाए और ब्याज दरों को भी कम करने का प्रयास करे। अन्यथा की स्थिति में बजट ही फेल हो सकता है। रेपो रेट को बढ़ाना मतलब केंद्र सरकार द्वारा बाज़ार से उधार ली जाने वाली राशि पर अधिक ब्याज का भुगतान करना। वैसे वर्तमान में तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी मात्रा में तरलता उपलब्ध है।
अब तो कोरोना की बुरी आशकाएं भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं अतः व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का विश्वास भी वापिस आ रहा है। सरकार ने बजट में ख़र्चे को बहुत बड़ा पुश दिया है और अब सरकार निवेश आधारित विकास करना चाहती है और इस ख़र्चे एवं निवेश का क्रियान्वयन केंद्र सरकार ख़ुद लीड कर रही है। वित्तीय सिस्टम में न तो पैसे की कमी है और न ब्याज की दरें बढ़ी हैं। अतः इन अनुकूल परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने का प्रयास केंद्र सरकार भी कर रही है जिसका पूरा-पूरा फ़ायदा देश की अर्थव्यवस्था को होने जा रहा है।
सामान्यतः देश में यदि मुद्रास्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फ़ायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी क़ीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रास्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई ज़रूरत भी नहीं हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत से कुछ ही अधिक उपयोग हो पा रहा है जब तक यह 75-80 प्रतिशत तक नहीं पहुंचता है तब तक निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ाएगा और इस प्रकार मुद्रास्फीति में वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है। मुद्रास्फीति पर ज़्यादा सख़्त होने से देश की विकास दर प्रभावित होगी, जोकि देश में अभी के लिए प्राथमिकता है। हालांकि अभी हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में स्थापित क्षमता के उपयोग में सुधार हुआ है और यह इस वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2020) में 63.3 प्रतिशत रहा है जो पहली तिमाही (अप्रेल-जून 2020) में 47.3 प्रतिशत था। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में रिकवरी और तेज हुई है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को भी मदद देने की बात की गई है क्योंकि यही क्षेत्र कोरोना महामारी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतम लोग बेरोज़गार हो गए थे अतः इस क्षेत्र को शून्य प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने की बात की जा रही है। साथ ही इस क्षेत्र को तरलता से सम्बंधित किसी भी प्रकार की समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाना ज़रूरी है। यह क्षेत्र ही देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा। इसलिए भी मौद्रिक नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र को ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा सके एवं तरलता बनाए रखी जा सके।
देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेज़ी से उसी ओर बढ़ रही है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2021-22 में 10/10.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर लेगी।
साथ ही हाल ही के समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है, इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब भारतीय रिज़र्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नज़र बनाए रखनी होगी यदि यह दर बढ़ती है तो देश के विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक