By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 18, 2022
नयी दिल्ली। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने पर्यावरण कानूनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के केंद्र के प्रस्ताव पर कहा है कि प्रकृति की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए और दोनों के बीच संतुलन बनाने की सख्त जरूरत है। राय ने कहा कि जिन देशों ने विकास के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है वे आज परिणाम भुगत रहे हैं। राय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘संतुलित विकास की सख्त जरूरत है। विकास प्रकृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए। आप प्रकृति की रक्षा करने वाले कानूनों के प्रभाव को खत्म कर रहे हैं। कल जब प्रकृति आप पर पलटवार करेगी तो कुछ भी आपको नहीं बचाएगा।’’
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय वन अधिनियम (आईएफए), 1927 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है, जिसमें जंगलों में अवैध अतिक्रमण और पेड़ काटने के लिए छह महीने की जेल की अवधि को 500 रुपये जुर्माने से बदलने का प्रस्ताव है। मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम में संशोधन का भी प्रस्ताव दिया है ताकि इसके मौजूदा प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर ‘‘साधारण उल्लंघनों के लिए कारावास के डर को खत्म किया जा सके।’’ वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं।
यहां ओखला ‘वेस्ट-टू-एनर्जी’ प्लांट के विस्तार का विरोध कर रहे निवासियों पर राय ने कहा, ‘‘संयंत्र कचरे को शोधित करने के लिए लगाया गया था। क्या होगा अगर संयंत्र ही आसपास रहने वाले लोगों के जीवन के लिए खतरा बन जाए? उपलब्ध अन्य विकल्पों को देखने की जरूरत है।’’ कई ‘रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन’ के निवासियों ने पूर्व में उपराज्यपाल वी के सक्सेना को पत्र लिखकर आवासीय क्षेत्रों के बीच स्थित संयंत्र के विस्तार के प्रस्ताव का विरोध किया था। संयंत्र को बंद करने या अन्य जगह स्थानांतरित करने की मांग को लेकर निवासी 12 वर्षों से अधिक समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
राय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के कई निर्देशों के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या बनी हुई है क्योंकि पड़ोसी राज्य क्रियान्वयन के प्रति गंभीर नहीं हैं। मंत्री ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण के मुद्दे को केवल राज्य के पर्यावरण मंत्रियों की एक समिति के माध्यम से हल किया जा सकता है, जिसे हर महीने एक बार बैठक करनी चाहिए।