रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैसे तो बहुत बातें की पर सबसे ज्यादा चर्चा उनकी कश्मीर पर कही गई बात पर हुई। मोदी ने कहा कि कश्मीर के लोग विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के लिये बेताब हैं और उम्मीद जताई कि विकास की शक्ति, बम-बंदूक की शक्ति पर हमेशा भारी पड़ती है और जो लोग विकास की राह में नफरत फैलाना चाहते हैं, अवरोध पैदा करना चाहते हैं, वो कभी अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो सकते। मोदी ने विकास कार्यों में लगे अधिकारियों से भी अपील की कि वे शोपियां, पुलवामा, कुलगाम और अनंतनाग जिले के अति संवेदनशील इलाके में भी बिना किसी भय के पहुँचे। मोदी ने अपने कार्यक्रम में जून महीने में जम्मू कश्मीर में आयोजित ‘गांव की ओर लौट चले’ जैसी ग्रामीण सशक्तिकरण पहल का जिक्र किया जो लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए किया गया था।
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मोदी ने ये बातें ऐसे समय पर कहीं जब उनकी सरकार ने राज्य में केंद्रीय बलों के करीब दस हजार कर्मियों को भेजने का फैसला किया है। जाहिर-सी बात है मोदी की इस बात पर राजनीति तो होनी ही थी। हालांकि जम्मू-कश्मीर के नेता मोदी के विकास वाली बातों को मुद्दा ना बनाकर सरकार के फैसले को बड़ा मद्दा बना रहे हैं जिसके तहत दस हजार अतिरिक्त सैन्य कर्मियों को कश्मीर में भेजा जा रहा है। लेकिन निशाने पर मोदी ही हैं। पहले आपको सरकार के फैसले के बारे में बता देते हैं। केंद्र ने आतंकवाद को रोकने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कश्मीर घाटी में केंद्रीय बलों के करीब दस हजार कर्मियों को भेजने का आदेश दिया है। अधिकारियों की माने तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 25 जुलाई को तत्काल आधार पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 100 कंपनियां तैनात करने का आदेश दिया है। एक कंपनी में करीब 100 कर्मी होते हैं। अधिकारियों ने इस बात की भी संभावना जताई कि जरूरत पड़ने पर घाटी में 100 और कंपनियां भेजी जा सकती हैं। सरकार ने यह फैसला ऐसे समय में लिया जब मुख्य सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल दो दिन के कश्मीर दौरे से वापस लौटे थे। डोभाल ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कानून व्यवस्था को लेकर बैठक की थी।
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पिछले दो दिनों से इस बात को लेकर राजनीति जारी है। विपक्ष भी यह मान रहा है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है। यह माना जा रहा है कि मोदी सरकार 35A और धारा 370 को खत्म करने को लेकर आगे बढ़ सकती है। और यह कारण है कि मोदी के खिलाफ कश्मीर के नेता मोर्चाबंदी करने में जुट गए है। सबसे ज्यादा हमलावर कुछ समय तक भाजपा के साथ रहीं महबूबा मुफ्ती हैं।
महबूबा मुफ्ती ने आदेश जारी होने के तुरंत बाद ही ट्वीट कर कहा कि घाटी में अतिरिक्त 10,000 सैनिकों को तैनात करने के केंद्र के फैसले ने लोगों में भय उत्पन्न कर दिया है। कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है। जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसे सैन्य तरीकों से हल नहीं किया जा सकता। भारत सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार और उसे दुरूस्त करने की जरूरत है। लेकिन महबूबा की पीडीपी के 20वें स्थापना दिवस पर कही गई बात सबसे ज्यादा चर्चा में है। उन्होंने कहा कि 35A के साथ छेड़ छाड़ करना बारूद को हाथ लगाने के बराबर है। जो हाथ 35A के साथ छेड़ छाड़ करने के लिए उठेंगे, वो हाथ ही नहीं बल्कि सारा जिस्म जल कर राख हो जाएगा।
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सरकार पर निशाने साधने में पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी मोदी सरकार पर जमकर हमला किया। उधर फारूक अब्दुल्ला ने भी राज्य में एक लाख सुरक्षा बलों को भेजने के सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि घाटी में दहशत का माहौल पैदा किया जा रहा है। अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य इस वक्त शांतिपूर्ण दौर से गुजर रहा था, सुरक्षा बलों को भेजे जाने के बाद लोगों में संशय पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि आखिर आवाम के बीच डर क्यों पैदा किया जा रहा है? हाल में ही नौकरशाही छोड़कर राजनीति में उतरे और जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) का गठन करने वाले शाह फैसल ने भी इस मामले को लेकर ट्विटर पर लिखा कि घाटी में अचानक सुरक्षा बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती के गृह मंत्रालय के फैसले से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। कोई नहीं जानता कि यह तैनाती क्यों की जा रही है। ऐसी अफवाहें हैं कि घाटी में कुछ भयानक घटित हो सकता है। क्या अनुच्छेद 35ए को लेकर।
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तमाम आरोपों के बीच भाजपा इस बात से लगातार इनकार कर रही है 35A को लेकर घाटी में अतिरिक्त जवानों की तैनाती नहीं की गई है। भाजपा के सदस्यता अभियान को बल देने जम्मू-कश्मीर पहुंचे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कहा कि कश्मीर के मुख्यधारा के राजनेता घाटी में सैनिकों की तैनाती और संविधान के अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने से जोड़कर अफवाह फैला रहे हैं। इन सब के बीच जम्मू कश्मीर की राजनीतिक स्थिति और वहां होने वाले विधानसभा चुनाव (जब भी हों) की तैयारियों पर चर्चा करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश इकाई के कोर समूह की बैठक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बुलायी है। सूत्र बता रहे हैं कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत अन्य शीर्ष नेता शामिल हो सकते हैं। मोदी और शाह की संभावित उपस्थिति अहम है और इस बात का इशारा करती है कि पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कसने में जुट गयी है। भले ही इस फैसले को लेकर राजनीतिक चर्चाएं तेज हो पर कश्मीर मुद्दे के जानकार यह मानते हैं कि मोदी सरकार कश्मीर में मिशन ऑल आउट को तेज करने की दिशा में बढ़ रही है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन का मियाद पूरा होते ही वहा विधानसभा के चुनाव कराए जाएंगे और सरकार तब तक घाटी के माहौल को कॉन्ट्रोल करने की कोशिश कर रही है।