नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): पर्यावरण पर बढ़ते प्लास्टिक कचरे के बोझ का प्रबंधन मौजूदा दौर की प्रमुख चुनौती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसका उपयोग प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने में किया जा सकेगा।
प्लास्टिक अपशिष्ट से डीजल बनाने के लिए एक संयंत्र देहरादून में स्थापित किया गया है। इस संयंत्र की तकनीक देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा गेल इंडिया लिमिटेड के सहयोग से विकसित की गई है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने मंगलवार को इस संयंत्र का उद्घाटन किया है।
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भारतीय पेट्रोलियम संस्थान परिसर में स्थापित इस संयंत्र में एक टन प्लास्टिक कचरे से 800 लीटर डीजल प्रतिदिन बनाया जा सकता है। इस संयंत्र में बनने वाले ईंधन में आमतौर पर गाड़ियों में उपयोग होने वाले डीजल के गुण मौजूद हैं और इसका उपयोग कारों, ट्रकों और जेनेरेटर्स में किया जा सकेगा।
इस संयंत्र में कुल प्लास्टिक कचरे में से 70 प्रतिशत पॉलियोलेफिन पॉलिमर के कचरे को डीजल में रूपांतरित किया जा सकता है। पॉलियोलेफिन कचरा पर्यावरण के लिए एक प्रमुख चुनौती है क्योंकि यह जैविक रूप से बेहद कम अपघटित हो पाता है। प्लास्टिक से डीजल बनाने की यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है। इस संयंत्र का छह महीने तक अवलोकन करने के बाद भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और गेल की योजना इस तकनीक का उपयोग देशभर में करने की है।
डॉ हर्ष वर्धन ने वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि “करीब एक साल पहले हमने बायो-जेट ईंधन से संचालित एक व्यावसायिक उड़ान को देखा था। वह ईंधन भी भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के वैज्ञानिकों ने विकसित किया था। हवाईजहाज के दो इंजनों में से एक इंजन में 25 प्रतिशत बायो-जेट ईंधन का उपयोग किया गया था। इस वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर भारतीय वायुसेना के फ्लाइपास्ट में एन32 एयरक्राफ्ट में भी बायो-जेट फ्यूल का उपयोग किया गया था।”
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डॉ हर्ष वर्धन ने वैज्ञानिकों से कहा है कि उन्हें ऐसे तकनीकी सुधार लगातार करते रहने चाहिए, जिससे प्रत्येक संयंत्र एक दिन में 10 टन तक प्लास्टिक का उपचार करके उससे डीजल बनाने में सक्षम हो सके।
डॉ हर्ष वर्धन ने भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में स्थापित बायो-जेट ईंधन संयंत्र और पीएनजी बर्नर सुविधा का अवलोकन भी किया। उल्लेखनीय है कि पेट्रोलियम संस्थान ने 25 से 30 प्रतिशत थर्मल क्षमता में सुधार के साथ नया पीएनजी बर्नर विकसित किया है।
(इंडिया साइंस वायर)