By अभिनय आकाश | Nov 08, 2021
पांच साल पहले का दौर याद है। जब हर कोई एटीएम की लाइन में लगा था। कइयों ने तो नोट में चिप तक डालने की बात कह कर उसका पोस्टमार्टम भी कर दिया था। 8 नवंबर 2016 दिन मंगलवार बहुत बड़ा अमंगल हुआ, नोटबंद हो गए। सात बजे न्यूज चैनल पर फ्लैश हुआ कि आठ बजे मोदी जी फ्लैश होंगे अर्थात संबोधन देंगे। मोदी जी आए और देश के नाम संदेश देते हुए कहा कि आज रात बारह बजे से पांच सौ और हजार रुपये के नोट बंद कर दिए जाएंगे। बस फिर क्या था लोगों में अफरा-तफरी मच गई बैंकों में पैसे जमा करने कि लाइन लग गई। अमीर से अमीर और गरीब से गरीब आदमी बैंकों की लाइन में लगकर नोट बदलवाने की जुगत करता रहा। नोटबंदी के ऐलान के बाद समूची दुनिया की नजर भारत के इस फैसले को देखने लगी। आठ नवंबर का दिन यानी इसी दिन पांच साल पहले 2016 में पांच सौ और एक हजार के नोट चलन से बाहर हो गए थे। सरकार अपने इस फैसले को हमेशा सही ठहराती है वहीं विपक्ष इसको लेकर निशाना भी साधती है। नोटबंदी के पांच साल पूरे होने पर ट्विटर पर #notebandi और #demonitization ट्रेंड भी करता रहा। ऐसे में आज के इस विश्लेषण में जानेंगे कि नोटबंदी के पांच साल बाद क्या-क्या बदला है और आखिर पुराने नोटों का क्या हुआ?
8 नवंबर रात आठ बजे...
कुछ ही साल पहले ये देश त्राहिमाम पुकार चुका था। भ्रष्टाचार से कालेधन से और ऐसे ही निराशाजनक माहौल में देश की कमान संभाली नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने, उनकी सरकार ने पहले दिन से ही काले धन पर हमला बोल दिया था। लेकिन 8 नवंबर 2016 के दिन उन्होंने वो फैसला लिया जिसे आजाद भारत के इतिहास में पहले कभी किसी ने न लिया था और न ही कभी सोचा था। आज से पांच साल पहले दिवाली के एक हफ्ते बाद प्रधानमंत्री मोदी के फैसले ने देश के आम लोगों को इमानदारी के एक आंदोलन में शामिल कर दिया जो काले धन, नकली नोट और आतंकवाद के खिलाफ थी। लेकिन इस फैसले से देश पर भारी पड़ती नगदी की मार और पैसे-पैसे को मोहताज मुल्क की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही थी। देश की बैंकों के बाहर कतार में खड़े लोग बैंकों से पैसे वाले बाबू मेरा पैसा दिला दो कहते दिखे। एनी टाइम मनी कहे जाने वाली एटीएम मशीने भी देश की करेंसी क्रांति के सामने आहें भरती नज़र आई। नोटबंदी का साईड इफ़ेक्ट देश में परेशानी पैदा करता रहा फिर भी लोगों की धैर्यता हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा-जमुनी तहजीब की नदियां बहती की तस्दीक कराती रही। बैंकों के सामने कतार में लगे लोगों की तस्वीर से उभरे और दुनिया के लिए जगमगाता भारतीय बाजार झटके में जैसे अंधेरे में समाया उसमें प्रधानमंत्री को ही ये सामने आकर कहना पड़ा कि पचास दिन इंतजार कीजिए। केंद्र की मोदी सरकार एक्शन मोड में आते हुए हेलीकाप्टर से देश के दूर दराज़ इलाकों में करेंसी भेजने का काम शुरू किया। मॉनिटरिंग के लिए ऑफिसरों की हाई लेवल कमेटी बना दी गयी। पीएम मोदी लगातार देश को काले धन पर चोट का औचित्य समझा दिखे। धर्म और जाति की चली आ रही राजनीति से इतर पहली बार देश के किसी प्रधानमंत्री ने उस पूंजी पर उंगली उठाई है जो आज़ादी के बाद से देश की सियासत ओर देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट ओर भारत को बाज़ार में बदलने से जुड़ती चली गयी। मोदी ने देश के उस मर्म को पकड़ा जिसे छुने की भी हिम्मत कोई राजनेता नहीं करता है. संवेधानिक संस्थाओं तक के भीतर के खोखलेपन को हर कोई महसूस करता था। लेकिन लोकतंत्र की दुहाई देकर हर सत्ता मदमस्त रहती थी।
गैरकानूनी लेन-देन पर सर्जिकल स्ट्राइक
काले धन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यवाही को कोई कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक तो कोई नोटों का ब्लैक आउट बताता रहा। देश को कला धन की बीमारी से निजात दिलाने के लिए डॉक्टर बने मोदी द्वारा की गयी इस छोटी सर्जरी के दौरान सबसे बड़ा वादा सिस्टम में मौजूद बेहिसाब नगदी पर रोक लगाने का किया गया था और यह पैसा सीधे बैंक में जमा कराने के निर्देश दिए गए थे। पीएम मोदी ने अपने भाषण में पॉलिसी का जिक्र करते हुए कहा था कि करोड़ों रुपये सरकारी अधिकारियों के बिस्तरों या बैगों में भरे होने की खबरों से कौन-सा ईमानदार नागरिक दुखी नहीं होगा? जिन लोगों के पास बेहिसाब पैसा है, उन्हें मजबूरी में इसे घोषित करना पड़ेगा, जिससे गैर-कानूनी लेन-देन से छुटकारा मिल जाएगा। उस दौरान काफी लोगों ने नोटबंदी के इस फैसले को भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक भी कहा था।
क्या होता है डिमॉनेटाइजेशन
आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि 500 और 1000 रुपए के नोट अब चलन में नहीं रहेंगे। काले धन के खिलाफ इसे पीएम मोदी की अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई माना गया। पांच साल पहले पीएम मोदी ने जो ऐलान किया था उसे 'डिमॉनेटाइजेशन' या विमुद्रीकरण या मुद्रा को चलन से बाहर करना कहते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ने ही यह कदम उठाया है इससे पहले भी कुछ देश ऐसा कर चुके हैं।
क्या होता है विमुद्रीकरण
विमुद्रीकरण वह मौद्रिक फैसला होता है जिसके तहत मुद्रा की एक इकाई को कानून के तहत अमान्य घोषित कर दिया जाता है। यह साधारणतय उस समय होता है जब राष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तन किया जाता है और पुरानी मुद्रा को नई मुद्रा से बदला जाता है। इस तरह के कदम उस समय उठाए गए थे जब यूरोपियन मौद्रिक संघों वाले देशों ने यूरो को अपनी मुद्रा के तौर पर अपनाया था। उस समय पुरानी मुद्रा को हालांकि एक समय तक यूरो में बदलने की मंजूरी दी गई थी ताकि लेन-देन में सुविधा बनी रहे।
भारत ने क्यों अपनाया
भारत ने ब्लैक मनी और फेक करेंसी को खत्म करने के लिए इस व्यवस्था को अपनाया। यह भी काफी रोचक है कि यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने इस तरह का कोई कदम उठाया है। सबसे पहले वर्ष 1946 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने विमुद्रीकरण को अपनाया था। उस समय आरबीआई ने 1,000 और 10,000 के नोट जारी किए थे। वर्ष 1954 यानी आठ वर्ष बाद में भारत सरकार ने 1,000, 5,000 और 10,000 के नए नोट जारी किए। इसके बाद वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने इन नोटों को चलन से बाहर कर दिया था।
भारत से पहले किन देशों में हुआ ऐसा फैसला
जिम्बॉव्वे
वर्ष 2008 में जिम्बॉव्वे अपनी मुद्रा की कीमत खत्म होने के बाद महंगाई की मार झेल रहा था और किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। इसके बाद जून 2015 में यहां के रिजर्व बैंक ने फैसला किया कि देश ने अब कई मुद्राओं वाले सिस्टम को अपना लिया। वर्ष 2009 में जिम्बॉव्वे ने मुद्रा को डॉलर में बदल दिया था। ऐसे में जरूरी हो गया था कि जिम्बॉव्वे की डॉलर यूनिट को कई मुद्राओं में बदला जाए। जिम्बॉव्वे के सेंट्रल बैंक ने कहा था कि ग्राहकों को प्रोत्साहित करने और व्यापार में भरोसा बढ़ाने के लिए यह काफी अहम है।
सिंगापुर
सिंगापुर में जापानी 'बनाना' नोटों को उस समय जारी किया गया जब जापान ने इसका अधिग्रहण किया था। जापानियों के सरेंडर के बाद वर्ष 1945 में इस मुद्रा को बाहर कर दिया गया और फिर सिंगापुर मिंट को अपनाया गया।
फिजी
फिजी में 13 जनवरी 1969 को विमुद्रीकरण को अपनाया गया। यहां के रिजर्व बैंक ने उस समय कहा कि पौंड और शिलिंग को विमुद्रीकरण काफी जरूरी है क्योंकि फिजी अब नई व्यवस्था को अपना रहा है और नई मुद्रा को जारी करेगा। बैंक ने कहा था कि कि पौंड और शिलिंग की एक सीमित मात्रा ही चलन में है। फिलीपींस फिलीपींस के सेंट्रल बैंक ने 12 जून 1985 को नई डिजाइन वाले बैंक नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला लिया था। इसके बाद 10 वर्षों से चलन में मौजूद मुद्रा को बंद कर दिया गया।
आखिर पुराने नोटों का क्या हुआ?
अब जानते हैं इतने नोटों का क्या हुआ। बता दें कि आरबीआई ने 30 जून 2017 को जारी किए अपने प्रारंभिक आकलन में पुराने 500 और 1,000 रुपये के नोटों का कुल मूल्य 15.28 लाख करोड़ रुपये बताया था। ‘सूचना का अधिकार’ यानी आरटीआई के तहत यह सवाल पूछे गया था तो इसके जवाब में पता चला कि इन नोटों का नोटों का विघटन कर दिया जाता है। ये नोट वापस बाजार में नहीं लाए जाते हैं। यानी इन नोटों को काट दिया जाता है और अलग सामान बनाने में इसका इस्तेमाल होता है।
रिजर्व बैंक छापता है नोट
1938 में पहली बार रिजर्व रिजर्व बैंक ने पेपर करेंसी छापी, यह पांच का नोट था और इसी साल 10 रूपए, 100 रूपए और 1000 रूपए के नोट छापे गए।
1946 में 1000 और 10,000 रूपए के नोट बंद कर दिए गए।
1954 में फिर से 1000 और 10000 रूपय के नोट छापे गए. साथ ही 5000 के नोट की भी छपाई की गयी।
1954 में 1000 रूपए का नोट पहली बार जारी हुआ।
1978- जनवरी में 1,000, 5,000 और 10,000 के नोट को पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
500 और 1000 के नोट
1987 अक्टूबर में 500 रूपए का नोट पहली बार जारी हुआ।
2000 में दूसरी बार 1000 रूपए का नोट जारी हुआ था।
2005 में सुरक्षा की दृष्टि से नोट में कुछ बदलाव हुए। (सुरक्षा धागा, वाटरमार्क और नोट जारी होने का साल)
करेंसी नोट का इतिहास
भारत में पेपर करेंसी छापने की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई। सबसे पहले बैंक ऑफ़ बंगाल, बैंक ऑफ़ बांबे ओर बैंक ऑफ़ मद्रास जैसे बैंकों ने पेपर करेंसी एक्ट 1861 के बाद करेंसी छापने का पूरण अधिकार भारत सरकार को दे दिया गया। 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना तक भारत सरकार करेंसी छापती रही। जिसके बाद रिजर्व बैंक ने यह जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली।
डिजिटल लेन-देन में बड़ा उछाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को आधी रात से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी, जो उस समय चलन में थे। इस निर्णय का प्रमुख उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाना था। नोटबंदी के पांच साल के बाद नकदी का चलन जरूर बढ़ा है लेकिन इस दौरान डिजिटल लेनदेन भी तेजी से बढ़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है। अक्टूबर 2021 में इससे करीब 7.71 लाख करोड़ रुपये मूल्य का लेनदेन हुआ। इस महीने संख्या में देखें तो कुल 421 करोड़ लेन-देन हुए। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। कोरोना महामारी के दौर में लोगों ने डिजीटल लेन-देन को ज्यादा प्रेफर किया। नोतबंदी के दौरान पेटीएम और अन्य ऑनलाइन ट्रांजक्शन माध्यमों से रूबरू देशवासियों को महामारी के दौर में अचानक ही किसी तकनीक का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ी। बल्कि वो इससे पहले ही इन माध्यमों से रूबरू हो चुके थे। आज हालात ये हैं कि गांव के छोटे से छोटे दुकानदार या रेहड़ी-पटरीवालों के पास भी आपको फोन-पे या पेटीएम का स्कैनर या स्टीकर चस्पा दिख जाएगा।
-अभिनय आकाश