अभिनेता सुशांत की मौत समाज को दे गई सदमा और संदेश

By अजय कुमार | Jun 15, 2020

जीवन में जो लोग लक्ष्य निर्धारित करके दृढ़ संकल्प के साथ उसे हासिल करने की कोशिश करते हैं उन्हें अपनी मंजिल मिल ही जाती है। यह सच्चाई है। इसके साथ एक सच्चाई यह भी है कि मंजिल हासिल करने के लिए जितना कठोर तप करना पड़ता है, उससे अधिक मुश्किल होता है उस सफलता को बचाए रखना। क्योंकि जब दौलत और शोहरत आती है तो अकेले नहीं आती है,बल्कि अपने साथ कई बुराइयां भी लेकर आती हैं। इसके साथ कुछ घर, समाज और स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सफल व्यक्ति को समाज का बढ़ा हिस्सा अपना आइडियल मानने लगता है। उस समय किसी भी सफल व्यक्ति को अपने चाल-चरित्र और चेहरे सब विशेष ध्यान रखना होता है। जरा सी चूक का मतलब अर्श से फर्श पर आ जाना। जब कभी किसी व्यक्ति पर दौलत और शोहरत सिर चढ़कर बोलने लगती है तो ऐसा व्यक्ति शराब-शबाब में डूब जाता है। अहंकार सिर चढ़कर बोलता है तो दोस्त और समाज दूरी बना लेते हैं। ऐसे लोगों के साथ लोग काम करना बंद कर देते हैं। नतीजन मेहनत से सफलता हासिल करने वाला व्यक्ति अवसाद में जाकर मौत तक को गले लगा लेता है। यही कहानी है बिहार के पटना से फिल्म नगरी की चकाचैंध तक में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे सुशांत राजपूत की, जिन्होंने हाल ही में मौत को गले लगा लिया। भारत के सफलतम युवाओं में शुमार सुशांत महज 34 की उम्र में जिस तरह से दुनिया को अलविदा कह गए, सुशांत की मौत हमें अफसोस जताने के साथ-साथ यह सोचने को भी मजबूर करती है कि आखिर क्यों लाखों-करोड़ों का चहेता हीरो इतना तन्हा हो जाता है कि उसे मौत के अलावा कोई रास्ता ही नहीं सूझता है। सरकार और युवा उन्हें आदर्श निगाहों से देख रहे थे। वह नीति आयोग के विशेष महिला उद्यमी अभियान और सुशांत 4 एजुकेशन से जुड़े थे। एक बहुत लंबा कॅरियर उनके सामने था, लेकिन एक झटके में सब थम गया। यह सिनेमा उद्योग और देश के लिए सोचने-संभलने का वक्त है।

 

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सुशांत कमजोर इच्छाशक्ति के व्यक्ति नहीं थे, और उनकी मजबूत इच्छा शक्ति ही सुशांत को खास बनाती थीं। एक अभिनेता के रूप में वह संघर्ष करके ऊपर आए थे। दिल्ली में थियटेर से लेकर मुंबई में ‘पवित्र रिश्ता’ जैसे धारावाहिक में चमकने तक। सिनेमा में ‘काय पो छे’ से छिछोरे तक उनके बमुश्किल 12-13 साल के कॅरियर वह कभी भी हल्का काम करते नहीं दिखे। चुन-चुनकर बेहतरीन और अलग-अलग पृष्ठभूमि वाली फिल्में करते थे शु़द्ध देसी रोमांस से क्रिकेट के खिलाड़ी तक और जासूस से डकैत तक की भूमिका को उन्होंने परदे पर जीवंत कर दिखाया था। सुशांत केवल अभिनेता नहीं थे, एक पारंगत प्रशिक्षित पेशेवर नर्तक भी थे। टीवी में आने वाले डांस शो में भी सुशांत प्रतियोगी रह चुके थे। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की भूमिका को उन्होंने सुनहरे पर्दे पर इतनी संजीदगी से उतारा कि लोग उनके कायल हो गए। उन्हें चाणक्य, टैगोर और कलाम जैसी महान हस्तियों के रूप में पर्दे पर उतारने की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। अपने चरित्र या किरदार में डूब जाने का हुनर उन्हें सबसे अलग बना देता था। सुशांत के नयन-नक्श ज्यादा तीखे नहीं थे, लेकिन किसी किरदार में डूब जाने में उन्हें महारथ हासिल थी। सुशांत के चेहरे पर एक स्वाभाविक संकोच था, जो अक्सर छोटे शहरों से बड़े शहरों की तरफ कूच करने वालों के चेहरे पर दिखाई देता है। बेहद सादगी भरी मुस्कान से चमक उठने वाला चेहरा अब हमारे बीच नहीं है, तो यह चेहरा अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया है। हमें अफसोस जताने के साथ-साथ यह भी सोचना चाहिए कि निजी जीवन में कभी-कभी अवसाद इतने खतरनाक मोड़ पर कैसे पहुंच जाता है जहां जिंदगी से बेहतर मौत नजर आने लगती है। खासकर फिल्मी दुनिया में आत्महत्या करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और आत्महत्या का सिलसिला काफी पुराना है।


पचास और 60 के दशक में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज माने जाने वाले गुरुदत्त को बेहतरीन फिल्म निर्देशक के अलावा उतना ही बेहतरीन अभिनेता भी माना जाता था। अक्तूबर 1964 में मुंबई के पेड्डर रोड इलाके में स्थित हिंदी फिल्मों के सफल फिल्मकारों में से एक गिने जाने वाले मनमोहन देसाई ने कई कमर्शियल फिल्में बनाईं थीं। बॉक्स ऑफिस पर उनकी कुछ सफल फिल्में थीं। अमर अकबर एंथनी, कुली और मर्द से देसाई ने काफी शोहरत हासिल की। 1979 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया था। 1992 में वे नंदा के साथ रिश्ते में आ गए, जो उनकी मौत तक चला। मसाला फिल्मों के बादशाह कहे जाने वाले मनमोहन देसाई की फिल्में बाद में पिटने लगी थी। मार्च 1994 में गिरगांव स्थित उनके घर पर उनकी असामान्य परिस्थितियों में मौत हो हुई।

 

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बॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्री दिव्या भारती की मौत काफी संदेहास्पद थीं। दिव्या ने मुम्बई में अपने फलैट के पाँचवें फ्लोर स्थित अपार्टमेंट से छलांग लगा ली थी। 5 अप्रैल 1993 को ये घटना हुई थी। उस समय दिव्या भारती सिर्फ 19 साल की थीं।


सिल्स स्मिता का असली नाम विजयलक्ष्मी था। वे अनाथ थीं और आंध्र प्रदेश में एक महिला ने उन्हें गोद लिया था। 16 साल की उम्र में सिल्क स्मिता अपनी मां के साथ मद्रास चली गईं। मेकअप आर्टिस्ट के रूप में फिल्म में कदम रखने वाली सिल्क स्मिता धीरे-धीरे फिल्मों में काम करने लगीं। उन्हें वैम्प का रोल मिलने लगा। सितंबर 1996 में सिल्क स्मिता अपने चेन्नई स्थित फ्लैट में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गईं। डिपंल कपाड़िया की सबसे छोटी बहन रीमा कपाड़िया वर्ष 2000 में लंदन में मृत पाईं गईं थीं ये माना गया कि उन्होंने आत्महत्या की थी। लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ।

  

इसी क्रम में बॉलीवुड अभिनेत्री जिया खान का भी नाम आता है। जिया की एंट्री काफी जोरदार हुई थीं उन्होंने शुरुआत में अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे स्टार्स के साथ काम किया। लेकिन इसके बावजूद उनका कॅरियर उतना बेहतरीन नहीं रहा। 2013 में उनका शव उनके घर में मिला। अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने जिया को आत्महत्या के लिए उकसाया। सूरज पर अभी अदालत में मामला चल रहा है।


भारतीय टीवी इंडस्ट्री का नामी गिरामी चेहरा और बालिका वधू फेम प्रत्युषा बनर्जी ने भी आत्महत्या कर ली थी। 2016 में उनका शव उनके फ्लैट से मिला था। माना जाता है कि वे काफी दिनों से डिप्रेशन में चल रही थीं। टीवी सीरियल बालिका वधु से वे काफी चर्चा में आई थीं। वे रियालिटी शो बिग बॉस का भी हिस्सा रही थीं। इसी तरह 27 दिसंबर, 2019 को टीवी एक्टर कुशल पंजाबी ने मुंबई के पाली हिल स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। मुंबई पुलिस ने उनके आत्महत्या किए जाने की पुष्टि की थी। 

 

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दरअसल, अवसाद एक ऐसी बीमारी है जिसका पता भुक्तभोगी को ही नहीं होता है तो और लोगों को क्या होगा। कुछ लोग अवसाद से पीड़ित होने के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि वह डिप्रेशन के शिकार हैं। ऐसा इसलिए भी होता हैं क्योंकि तमाम लोगों को लगता है कि डिप्रेशन की बात जगजाहिर होने पर उन्हें सामाजिक रूप से कई समस्याओं और जगहसाई का सामना करना पड़ सकता है। 


बहरहाल, बात सुशांत की कि जाए तो बिहार का यह लाडला बेटा फिल्मी दुनिया में बहुत आगे निकल गया था और अभी उसे और कई मुकाम हासिल करने थे। दुर्भाग्य, असमय ही एक ऐसी यात्रा रूक गई है, जिसकी ओर, लाखों युवा हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे। आज वही युवा याद कर रहे हैं, सुशांत अपनी फिल्म छिछोरे में आत्माहत्या के विरूद्ध पैरोकारी करते दिखे थे। सुशांत की मौत समाज को सदमा और संदेश दोनों दे गई है।


- अजय कुमार


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