रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का स्वर्णिम और ऐतिहासिक अवसर सनातनधर्मियों को कड़े संघर्ष से हासिल हुआ है, जिसका 550 सालों से अधिक का इतिहास है। इसमें 70 से अधिक बार का संघर्ष, जिसमें से अधिकतर मुगल आक्रांताओं द्वारा भारतवासियों और हमारे मंदिरों पर हमले का रक्तरजिंत इतिहास शामिल है। अनगिनत आन्दोलनों के बाद अब अंततः 22 जनवरी 2024 के दिन हिन्दू समाज को अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को जन्मभूमि पर निर्मित भव्य मन्दिर में पुर्नस्थापित करने का गौरव प्राप्त हो रहा है। यह दिन भारत की आस्था, अस्मिता, स्वाभिमान और गौरव की पुनर्स्थापना का दिवस है। राम राष्ट्र की संस्कृति है, राम राष्ट्र के प्राण है, राम के मंदिर का मतलब भारत का नवनिर्माण है।
सोमनाथ मंदिर को अंतिम बार औरंगजेब ने यह कहकर तोड़वाया था कि, ‘इस बार इसे पूरी तरह नेस्तानाबूूद कर दो कि मंदिर का कहीं कोई निषान तक दिखाई न दे।’ सोमनाथ पर मंस्जिद और कब्रिस्तान को सरदार पटेल ने इतिहास की विकृति का चिह्न और राष्ट्रीय अपमान बताकर कहा था कि, ‘‘ राष्ट्र के गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण आवष्यक है।’’ गांधी जी भी इससे सहमत थे। हिन्दू बहुल देश में प्रभु श्री राम की जन्मस्थली को मुक्त करवाने में जिस तरह के अवरोध उत्पन्न किए गए वे अकल्पनीय हैं। यदि सोमनाथ के साथ ही राम जन्मभूमि का मसला भी तत्कालीन नेहरू सरकार सुलझा लेती तब शायद इसे लेकर राजनीति करने का किसी को अवसर नहीं मिलता।
स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। उनका वह वक्तव्य सही मायने में एक संदेश था जिसमें राजनीति नहीं थी। सही बात तो ये है कि राम मंदिर का विरोध करने वालों ने ही इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बना दिया। कांग्रेस और अन्य कुछ दल मुस्लिम मतों के कारण इस मुद्दे पर हिंदुओं के न्यायोचित दावों की अनदेखी करते रहे। प्रतिक्रिया स्वरूप इस मामले ने दूसरा मोड़ ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश की बहुसंख्यक आबादी के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि को अवैध कब्जे से मुक्त करवाने का कार्य न्यायालय के निर्णय से संभव हो सका। और वह प्रक्रिया भी वर्षों नहीं दशकों तक चली। सबसे बड़ी बात ये हुई कि बाबरी ढांचे की तरफदारी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही साथ धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बने हिन्दू नेतागण भी करते रहे।
यह भी कम दुखद नहीं है कि उस निर्णय के बाद भी मंदिर निर्माण में अड़ंगे लगाने वाले विघ्नसंतोषी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए। यहां तक कि प्राण-प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक आयोजन की पूरी तैयारियां हो जाने के बाद भी उसे विफल करवाने में एक वर्ग जी-जान से जुटा है। कुछ धर्माचार्य भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। शाश्वत राष्ट्रीय अस्मिता को तात्कालिक और राजनीतिक हानि-लाभ की दृष्टि से देखा जा रहा है।
वास्तव में, कपटी और विकृत सिद्धांतकारों की परेशानी सहज और स्वाभाविक है। कई दशकों की उनकी दुकान के उठ जाने की सबल संभावना कोई सामान्य घटना नहीं है। उनके शब्द चुक गए हैं। प्रयोग में लाये नये शब्दों की शब्द शक्ति समाप्त हो गई है। वे अपनी पुरानी और सतही अवधारणाओं के बंधुआ श्रमिक हैं। किसी नये शब्द संसार की सृष्टि कर पाना अब उनके लिए संभव नहीं है। इन सभी ने गांधीवाद को बेच खाया। इनका समाजवाद पिट गया। पूंजीवाद का संताप भोग रहे देशों की दुर्दशा सबके सामने है। उनके सामने समस्या है कि क्या कहें, क्या करें? नश्वर को अनश्वर ओर समय सापेक्षता को सनातनता मानकर की गई भूल का परिमार्जन करने का उनमें साहस भी नहीं है। यही कारण है राष्ट्रीय संताप को समाप्त करने का अभियान अयोध्या से प्रारंभ हुआ और राष्ट्रीय अस्मिता राम रथ पर सवार होकर सोमनाथ से अयोध्या की ओर चली तेा इन छद्मवेशियों के मोहल्ले में कोहराम मच गया।
जिस दल की वैचारिक धारा में देश के सभी नागरिक समान रूप से शामिल नहीं होंगे, वह दल विकल्प नहीं बन सकता। वह देश का हित भी नहीं कर सकता। देश किसी छोटे-बड़े प्रतिशत का नहीं, उस शत प्रतिशत का होता है जो इसके प्रति पूर्ण प्रतिबद्ध, बिना शर्त और सहजभाव से समर्पित होते हैं। देश की आबादी के इस सहज समर्पण को ही राष्ट्रीयता की संज्ञा प्रदान की गई। देश की आबादी का हर वह अंश जो असहज हो, अपने विषय में अलग से सोचता हो, केवल अपने हित को ही राष्ट्रहित समझता हो, अराष्ट्रीय है। इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने और इसका पालन पोषण करने वाले सभी लोग अराष्ट्रीयता को बल प्रदान करने के अपराधी हैं।
राष्ट्र का घायल स्वाभिमान, आहत मन, टूटा विश्वास, अपमानित इतिहास और कुंठित राष्ट्रीय अस्मिता के परिमार्जन का दैवीय अवसर उपस्थित है। परमात्मा द्वारा प्रेरित ईश्वरीय कार्य सम्पन्न करने का सौभाग्यशाली क्षण 22 जनवरी को वह मुहूर्त होगा जब श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। अपने पूर्वजों की पराजय को विजय में बदलने और बलिदानों को मूल्य चुकाने के लिए इस राष्ट्रीय दायित्व का जो लोग निर्वाह करेंगे वे भविष्य में कलेजे का रक्त बनेंगे। वे इतिहास के प्राणवान पृष्ठ लिखेंगे राष्ट्रीय गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा की यह कथा इतिहास के पन्नों पर सोने का शब्द बनकर उभरेंगे और तभी वास्तविक स्वाधीन भारत राष्ट्र का पुनर्जन्म होगा। गांधी के रामराज्य का सूत्रपात नवनिर्मित राम मंदिर में श्रीरामलला की प्रथम आरती करेगी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि, शताब्दियों का संघर्ष अब अयोध्या में प्रत्यक्ष साकार रूप में फलीभूत होता दर्शित हो रहा है। भारत के कण-कण में राम हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने भारत की सुप्त आत्मा को जागृत करने का काम किया है। राम मंदिर के निर्माण से सशक्त राष्ट्र का निर्माण होने वाला है। राम मंदिर के निर्माण से भारत में रामराज्य आने वाला है। भारत की जय जयकार दुनिया में हो रही है। यह वास्तव में भारत की सुप्त आत्मा है। यही भारत को दुनिया के अंदर सर्वशक्तिशाली बनायेगी। भारत के प्रत्येक व्यक्ति के मन में जो रामभक्ति है वहीं राष्ट्रभक्ति है। राजनीति तोड़ने का कार्य करती है, धर्म जोड़ता है। राम मंदिर ने देश को जोड़ दिया है।
राष्ट्रीय अस्मिता और अखण्डता भी अयोध्या से जुड़ी है। श्रीराम मंदिर केवल धार्मिक आस्था का प्रश्न नहीं है, इसके साथ देश का अर्थशास्त्र भी जुड़ा है। भावी सामाजिक संरचना की संकल्पना भी जुड़ी है। अयोध्या अब राजनीति का भावी स्वरूप निर्धारित करेगी। व्यक्ति और राष्ट्र का चरित्र निर्माण, कालसापेक्ष किन्तु कालातीत दर्शन और दृष्टि का सृजन बीज राम मंदिर निर्माण में निहित है। विश्व के कई देशों में रचने और बसने वाले हिन्दू धर्मावलंबी तो राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर उत्साहित हैं ही ,अनेक ऐसे देश भी इसमें सहभागिता दे रहे हैं जो अन्य किसी धर्म का पालन करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि श्री राम की स्वीकार्यता पूरे विश्व में है। उस दृष्टि से 22 जनवरी की तिथि विश्व इतिहास में सदा के लिए अमर रहेगी। श्रीराम की जन्मभूमि पर उनका भव्य मंदिर दुनिया भर में फैले असंख्य सनातनियों की आस्था और आकांक्षा का अभिनव केंद्र बनेगा, इसमें किसी को संदेह नहीं है।
राममंदिर किसी की आस्था पर आक्रमण नहीं, भारत की अस्मिता से जुड़े प्रश्नों का उत्तर है। राम मंदिर देश और अयोध्या में अनेक हैं, अनेक और मंदिर बनाए जा सकते हैं किंतु राम जन्मस्थान एक ही हो सकता है, अनेक नहीं। इस पवित्र राष्ट्रीय स्थान पर राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप एक मंदिर बनना, राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की गारन्टी ही नहीं, भारत की पहचान का प्रमाणपत्र भी है।
- डॉ. आशीष वशिष्ठ
स्वतंत्र पत्रकार