By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 23, 2022
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक महिला को उसके पिता द्वारा किए जाने वाले भरण-पोषण के भुगतान से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बेटियां कोई भार नहीं हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने यह टिप्पणी शुक्रवार को पुरुष की ओर से पेश वकील की दलील पर की। संविधान के समानता से संबंधित अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, बेटियां कोई भार नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2020 में उल्लेख किया था कि आवेदकों की ओर से पेश वकील ने कहा है कि अप्रैल 2018 के बाद बेटी के लिए 8,000 रुपये प्रति माह की दर से और पत्नी के वास्ते भरण-पोषण राशि के बकाये का भुगतान नहीं किया गया।
इसने तब व्यक्ति को दो सप्ताह के भीतर अपनी पत्नी और बेटी को 2,50,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। बाद में, जब इस साल मई में यह मामला सुनवाई के लिए आया तो पीठ को बताया गया कि पत्नी की पिछले साल मौत हो गई थी। व्यक्ति की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान कर दिया गया है। उन्होंने इस संबंध में बैंक स्टेटमेंट का हवाला दिया। अदालत ने मई के अपने आदेश में कहा था, ‘‘यह पता लगाने के लिए कि क्या भरण-पोषण के भुगतान के आदेश का अनुपालन किया गया है, हम रजिस्ट्रार (न्यायिक) से अनुरोध करते हैं कि वह याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी की ओर से पेश होने वाले वकीलों से स्थिति का पता लगाने के बाद एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करें।’’ इसने कहा था कि रजिस्ट्रार (न्यायिक) की रिपोर्ट आठ सप्ताह के भीतर तैयार होनी चाहिए।
यह मामला शुक्रवार को जब सुनवाई के लिए आया तो पीठ को बताया गया कि महिला एक वकील है और उसने न्यायिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली है। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला को अपनी परीक्षा पर ध्यान देना चाहिए ताकि वह अपने पिता पर निर्भर न रहे। पीठ को जब यह सूचित किया गया कि महिला और उसके पिता ने लंबे समय से एक-दूसरे से बात नहीं की है तो अदालत ने सुझाव दिया कि वे आपस में बात करें। पीठ ने व्यक्ति को आठ अगस्त तक अपनी बेटी को 50,000 रुपये का भुगतान करने को कहा।