आज दत्तात्रेय जयंती है, भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्म, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। दत्तात्रेय की आराधना से सभी इच्छित वस्तुएं प्राप्त होती हैं तो आइए हम आपको दत्तात्रेय जयंती व्रत की कथा तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
दत्तात्रेय जयंती के बारे में जाने
दत्तात्रेय जयंती मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष दत्तात्रेय जयंती 29 दिसंबर को मनायी जा रही है। पंडितों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय भी हुआ है। दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। दत्तात्रेय जयंती के दिन उनके भक्त व्रत-पूजा करते हैं।
दत्तात्रेय जयंती पर ऐसे करें पूजा
दत्तात्रेय जयंती पर सुबह जल्दी उठें। स्नान कर, साफ कपड़े पहनें। अब पूजा की तैयारी शुरू करें। पूजा करने से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ आसन बिछाएं। फिर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें। तत्पश्चात भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करें। धूप तथा दीप से विधिवत पूजा भी करें। पूजा समाप्त होने के बाद आरती गाएं और फिर प्रसाद बांटें। इस दिन अवधूत या जीवनमुक्ता गीता का पाठ जरूर करें। साथ ही सुबह की पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों की किसी भी प्रकार मदद करें।
दत्तात्रेय जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म में दत्तात्रेय जयंती से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक महर्षि अत्रि मुनि थे। अत्रि मुनि की पत्नी का नाम अनसूया था। अनसूया की के सतीत्व की महिमा तीनों लोक में प्रचलित थी। उनके सतीत्व पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देवता साधु का रूप धारण कर अत्रिमुनि के आश्रम में पहुंचे तथा माता अनसूया के सामने भोजन करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन तीनों देवताओं ने माता के सामने यह शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। देवताओं की यह बात सुनकर माता संशय में पड़ गई। इसके बाद ध्यान लगाकर जब अपने पति अत्रिमुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन कराया। वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी हो गईं। तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक की कथा सुनायी। तीनों देवियां पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना करने लगीं। तीनों देवियों ने भी अपनी गलती स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवताओं ने दत्तात्रेय के रूप में माता अनसूया के कोख से जन्म लिया। तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व
हमारे शास्त्रों में दत्तात्रेय जयंती का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय का ध्यान करने से ही वो अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं तथा उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय के मंदिरों में धूमधाम से पूजा की जाती है। आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु भी भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाती है। हमारे देश में दत्तात्रेय जयंती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में मनायी जाती है।
दत्तात्रेय जयंती से लाभ
दत्तात्रेय जयंती करने वाले भक्तों को अनेक लाभ होते हैं। भक्तों को उनकी सभी इच्छित वस्तुएं एवं धन की प्राप्ति होती है। साथ ही सर्वोच्च ज्ञान के साथ-साथ जीवन के उद्देश्य और लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता प्राप्त होती है। यही नहीं पर्यवेक्षकों को अपनी चिंताओं के साथ-साथ अज्ञात भय से भी मुक्ति मिलती है। सभी मानसिक कष्टों के उन्मूलन और पैतृक मुद्दों से तो छुटकारा मिलता है। इसके अलावा आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव बढ़ता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय