कश्मीरियों को आईपीएल से हमेशा आस रहती है क्योंकि इस कारण ही कश्मीर के क्रिकेट बैटों का कारोबार चमकने लगता है। यही कारण है कि आईपीएल और विश्व कप के पास आने से यहां क्रिकेट प्रेमी काफी खुश होते हैं वहीं दूसरी तरफ कश्मीर घाटी में इस खबर से हमेशा ही खुशी की लहर दौड़ पड़ती है। दरअसल ऐसा होने से कश्मीरी विलो से बनने वाले बैटों की मांग बढ़ जाती है। इससे धीमा चल रहे कश्मीर के क्रिकेट बैट के कारोबार में अचानक तेजी आ जाती है।
कश्मीरी विलो से बैट बनाने वाले कारीगर बैट की मांग बढ़ने से बेहद खुश हैं और उनके पास बैट बनाने के आर्डर देश के कोने कोने से आ रहे हैं। कारीगरों का मानना है कि अचानक काम बढ़ने की वजह हमेशा आईपीएल और विश्व कप होते हैं। कश्मीर के अनंतनाग जिले में क्रिकेट बैट बनाने की लगभग 200 फैक्टरियां हैं और जिनकी सालाना आमदनी 10 करोड़ से ज्यादा है। लेकिन पिछले दिनों घाटी में हुई हिंसा से इनका कारोबार घट गया था। लेकिन आईपीएल और विश्व कप के नजदीक आते ही इनके कारोबार में एक बार फिर तेजी आ जाती है। यहां से रोजाना तकरीबन 20 हजार क्रिकेट बैट बनकर देश के दूसरे शहरों में भेजे जाते हैं।
वर्तमान आतंकवाद के दौर ने उनके उद्योगों पर इतना प्रभाव नहीं डाला और देश के कई भागों से आज भी इसकी मांग यथावत है। आज भी व्यापारी अपने आर्डर भिजवाते हैं उन्हें उसी तरह से माल की आपूर्ति की जाती है। बस अंतर इतना ही आया है कि पर्यटक पहले माल यहीं से खरीदा करते थे और अब यही बैट वे अन्य शहरों से लेते हैं।
क्रिकेट बैट तैयार करने वाले कश्मीर के हुलमुला गांव की कथा भी यही है। सत्तर वर्षीय हाजी गुलाम रसूल आज कश्मीर में बैट उद्योग का बादशाह कहलाता है। अब वह काम नहीं करता है बल्कि उसका बेटा मुश्ताक सारे कामकाज की देखभाल करता है। और कश्मीर में उसका कारखाना सबसे बड़ा है जिसमें 150 कारीगर कार्यरत हैं और 30 से 40 बैट प्रतिदिन वे तैयार करते हैं। और इस बात की पुष्टि अनंतनाग जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक भी करते हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में ये उद्योग आते हैं, कि इस उद्योग को आतंकवाद इतना प्रभावित नहीं कर पाया है।
डोगरा शासनकाल में जब कश्मीर में बैट बनाने की शुरूआत हुई थी तब से लेकर अब तक इसमें जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। जहां कभी सारा काम हाथों से करना पड़ता था क्योंकि कोई भी आरा मिल यहां नहीं होती थी। सफेदे की लकड़ी को बैट के आकार में काटने से लेकर उन्हें विभिन्न प्रकार के बैटों में तब्दील करने का कार्य भी हाथों से करना पड़ता था। तब एक बैट को अपनी सूरत में पहुंचाने के लिए कई दिन लग जाते थे। और उनको लगाए जाने वाले हैंडलों को आयात किया जाता था। सिर्फ यही नहीं तब इन हैंडलों के लिए बैटों में बनाए जाने वाले गड्डे सही नहीं बन पाते थे।
लेकिन आज सब कुछ बदल चुका है। ‘हम आज विश्व का सबसे अच्छा बैट बनाते हैं,’ मुश्ताक का कहना था क्योंकि आज नई तकनीक के कारण बैट का निर्माण आसान हो गया है। ‘कश्मीर के सफेदे की लकड़ी ब्रिटेन के सफेदे की लकड़ी का मुकाबला करती है और हमारे आदमी किसी जादूगर से कम नहीं हैं। इसी कारण आज हमारे बैट भार, सूरत और तैलीय त्वचा में ब्रिटेन के बैटों से बीस ही हैं,’ उसका कहना था।
वैसे बैट की औसतन कीमत 150 रूपया है और बढ़िया बैट 1500 रूपये तक का मिलता है। और बैटों की मांग व खपत के बढ़ने के साथ ही, क्योंकि आज विश्वभर में लोग क्रिकेट के दीवाने हो गए हैं, कई और उद्योग खुल गए हैं जिनमें युवकों को रोजगार भी मिला है।
- सुरेश एस डुग्गर