By डॉ. रमेश ठाकुर | Jan 08, 2024
रामनगरी अयोध्या में आगामी 22 जनवरी को ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह के लिए देश के विभिन्न विपक्षी सियासी दलों को भेजे गए निमंत्रण को कई नेताओं ने ठुकरा दिया है। उनका तर्क है कि ये धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भाजपा का वोट हथियाने वाला ‘शक्ति प्रदर्शन’ है। सीपीआई महासचिव सीताराम येचुरी को भी निमंत्रण मिला है, लेकिन वह नहीं जाएंगे? क्यों नहीं जाएंगे, इसको लेकर पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने उन कारणों का जानना चाहा। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-
प्रश्नः 'प्राण प्रतिष्ठा' समारोह में शामिल होने से आपने भी इंकार कर दिया, आखिर क्यों?
उत्तर- भगवान राम सभी के कण-कण में बसे हैं। उनके प्रति जिनकी भी आस्था होगी, वो बिना निमंत्रण के भी खुद खिंचा चला जाएगा। लेकिन राजनीतिक उत्सव करके अगर कोई सियासी दल किसी को निमंत्रण देकर बुलाता है तो मुझे क्या, किसी को भी नहीं जाना चाहिए। मुझे लगता है कि किसी राजनीतिक दल या हुकूमत का प्रत्येक धार्मिक मान्यताओं और हर व्यक्ति के विश्वास को आगे बढ़ाने पर ध्यान होना चाहिए। मैं पहले भी कह चुका हूं कि धर्म हर इंसान का निजी पसंद का मामला होता है, जिसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जांना चाहिए। दुख इस बात का है कि ऐसा किया जा रहा है। रही बात मेरे इंकार करने की, तो मेरा मन जब भी कहेगा, मैं अयोध्या जाउंगा। मेरी प्रभु राम के प्रति सदैव अटूट आस्था रही है, मेरा नाम भी राम और जानकी के नाम पर है ’सीताराम’।
प्रश्नः मंदिर उद्घाटन उत्सव की तारीख 22 जनवरी रखने के पीछे की वजह को कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- वजह पानी की तरह साफ है। भाजपा इस वर्ष के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ये सब कर रही है। धर्म-धार्मिक मुद्दे उनके लिए हमेशा से राजनीतिक हथियार रहे हैं। उनको पता है, इन मुद्दों पर अगर कोई बोलेगा, तो उसे देश विरोधी या भगवान विरोधी करार देकर खुद को भगवान भक्त प्रचारित कर देंगे। राम मंदिर को लेकर भी भाजपा कुछ ऐसा ही प्रचार-प्रसार करने में लगी है। जो लोग उनके निमंत्रण पर अयोध्या नहीं पहुंच रहे हैं, उनको भगवान राम का विरोधी भी बताने लगे हैं। जहां तक मुझे लगता है, भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव राम मंदिर के नाम पर ही लड़ने वाली है। क्योंकि इसके सिवाए उनके पास कोई दूसरे मुद्दे हैं ही नहीं? सभी जरूरी मुद्दों पर वह पहले ही विफल हो चुकी है। महंगाई, बेरोजगारी आदि मसलों पर वो बात ही नहीं करते। प्राण प्रतिष्ठा के नाम पर भाजपा ने पूरे देश को अच्छे से उलझा रखा है।
प्रश्नः भाजपा का कहना है कि वो अपने प्रयासों से ही राम को लेकर आ रहे हैं?
उत्तर- उनसे कोई पूछे राम गए कहां थे? राम तो वहीं हैं। चलिए मैं भाजपाईयों के ही शब्द दोहराता हूं, टेंट में बसने वाले राम भगवान कहां हैं, उन्हें ही गर्भ गृह में क्यों विराजमान नहीं करवाया जा रहा। क्यों उनकी जगह दूसरी नव-निर्मित मूर्तियों को कहीं दूसरी जगहों से मंगवाया जा रहा है। देखिए, भाजपा आस्था के नाम पर राम भक्तों की आंखों में धूल झोंक रही है और कुछ नहीं? ऐसे-ऐसे लच्छेदार शब्द प्रयोग हो रहे हैं जिनको सुनकर भी हंसी आती है। कोई उनसे पूछे ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का मतलब क्या होता है। क्या कोई 22 जनवरी को अयोध्या में अपने प्राणों की प्रतिष्ठा लगाने वाला है? वैसे, भी अधबने मंदिर का उद्घाटन करने का कोई तुक नहीं बनता। कोई आवाज उठाने वाला नहीं बचा, उन्हें जो अच्छा लग रहा है वो करते जा रहे हैं। जबकि, देश के कई संत इस तारीख के विरोध में हैं। ये तिथि उचित नहीं बताई गई है मंदिर उद्घाटन की।
प्रश्नः विपक्षी नेता इस धार्मिक कार्यक्रम को भाजपा का शक्ति प्रदर्शन बता रहे हैं?
उत्तर- बताना क्या है? है ही भाजपा का कार्यक्रम? ये जगजाहिर है भाजपा धर्म के नाम पर राजनीति करती है। तभी, उन्होंने धार्मिक समारोह को सरकारी कार्यक्रम में तब्दील कर डाला। संवैधानिक रूप से भी ये सरासर गलत है। संविधान में स्पष्ट है कि शासन स्तर पर कोई धार्मिक जुड़ाव नहीं होना चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार संविधान के तय नियमों का भी खुलेआम उल्लंघन कर रही है। उन्हें वास्तव में राम भगवान से इतना लगाव है तो ये कार्य ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ के पदाधिकारियों पर छोड़ना चाहिए था। खुद को अलग रखते। लेकिन यहां तो सबकुछ उल्टा ही हो रहा है। प्रभुराम के लिए उचित स्थान की लड़ाई लड़ने वालों को प्रधानमंत्री ने एक-एक करके किनारे लगा दिया।
प्रश्नः प्रधानमंत्री कहते हैं कि अयोध्या में बुलाकर वह सभी को सम्मान देना चाहते हैं?
उत्तर- उनकी करनी और कथनी में बहुत अंतर होता है। राम मंदिर निर्माण के लिए लड़ने वालों की भाजपा में लंबी फेहरिस्त है। वो लोग जिन्होंने वास्तव में सच्चे दिल से चाहा, कि प्रभु राम टैंट से निकलें और अपने उचित स्थान पर विराजमान हों। आदरणीय लालकृष्ण आडवाणी से लेकर उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, प्रवीण तोगड़िया, बाला साहेब जैसे अनगिनत नाम हैं। अयोध्या पहुंचने के लिए लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को तो साफ मना ही कर दिया गया है। ये निर्णय निश्चित रूप से अस्वीकार्य है। इससे कई भाजपा नेता भी अंदरखाने बेहद नाराज हैं। लेकिन बात वहीं पर आकर टिक जाती है कि मोदी-शाह के फैसले के आगे आखिर बोले कौन? जो बोलेगा उसका पत्ता चुटकी में साफ भी हो जाएगा। पूर्व में जिन-जिन लोगों ने प्रधानमंत्री के फैसले का थोड़ा भी विरोध किया था उनका क्या हुआ सभी जानते हैं।
प्रस्तुति- डॉ. रमेश ठाकुर