कोविड टीके से मिली प्रतिरोधक क्षमता लंबे समय तक नहीं टिकती, एहतियाती खुराक जरूरी : अनुसंधान

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 19, 2022

वाशिंगटन| कोविड-19 रोधी टीके से मिली प्रतिरोधक क्षमता लंबे समय तक नहीं टिकती, जिससे लोगों के लिए एहतियाती खुराक लेना अनिवार्य हो जाता है।

‘जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित एक नया अनुसंधान तो कुछ यही कहता है। यह अनुसंधान प्राकृतिक संक्रमण या पूर्ण टीकाकरण के बाद शरीर में स्वाभाविक रूप से एंटीबॉडी पैदा होने के बावजूद व्यक्ति के दोबारा संक्रमित होने के जोखिम की पुष्टि करने वाला पहला अनुसंधान है।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि टीकाकरण के बावजूद किसी व्यक्ति के कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कौन-सा टीका लगा है।

उन्होंने पाया कि एम-आरएनए पर आधारित टीके (फाइजर और मॉडर्ना) कोरोना वायरस संक्रमण से सबसे लंबी अवधि तक सुरक्षा मुहैया कराते हैं। उनसे पैदा प्रतिरोधक क्षमता प्राकृतिक संक्रमण या जॉनसन एंड जॉनसन और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित टीके से हासिल प्रतिरक्षा से तीन गुना ज्यादा समय तक टिकती है।

मुख्य अनुसंधानकर्ता एवं येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर जेफरी टाउनसेंड कहते हैं, “एम-आरएनए पर आधारित टीके सबसे ज्यादा एंटीबॉडी पैदा करते हैं। हमारे विश्लेषण से पता चला है कि इनसे प्राकृतिक संक्रमण या अन्य टीकों के मुकाबले ज्यादा मजबूत और लंबी अवधि की प्रतिरोधक क्षमता हासिल होती है।”

उन्होंने कहा, “हालांकि, ‍यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि प्राकृतिक प्रतिरक्षा और टीकाकरण परस्पर निवारक नहीं हैं।

कई लोगों के पास अलग-अलग स्रोतों से आंशिक प्रतिरक्षा होगी। लिहाजा इसकी अवधि को समझना यह तय करने के लिए अहम है कि एहतियाती खुराक कब लगाई जाए।”

अनुसंधान के सह-लेखक एवं यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलाइना में असिस्टेंट प्रोफेसर एलेक्स डॉनबर्ग ने कहा कि पुन:संक्रमण के खिलाफ दीर्घकालिक एवं विश्वसनीय प्रतिरक्षा विकसित करने के लिए समय-समय पर उन टीकों की एहतियाती खुराक लगाना जरूरी है, जो वायरस की संरचना में आने वाले बदलावों से निपटते हैं।

डॉनबर्ग के मुताबिक, “हम भूल जाते हैं कि हम एक वायरस से लड़ रहे हैं, जो प्राकृतिक संक्रमण या फिर टीके से उत्पन्न एंटीबॉडी के हमले को कुंद करने के लिए अपनी संरचना में बदलाव करना जारी रखेगा।

हम सार्स-कोव-2 वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप के मामले में देख चुके हैं कि कैसे पुराने स्वरूपों से बचाव के लिए तैयार टीके, ओमीक्रोन के संक्रमण से निपटने में ज्यादा प्रभावी साबित नहीं हुए हैं।

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