कोरोना वायरस मनुष्यों की ही नहीं अर्थव्यवस्थाओं की भी सेहत बिगाड़ रहा है

By ललित गर्ग | Mar 04, 2020

विकसित एवं शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों ने दुनिया में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये नये तरह के युद्धों को इजाद किया है, उनके भीतर नयी तरह की क्रूरता जागी है, उन्होंने दुनिया को विनाश देने के नये-नये साधन विकसित किये हैं, जिससे अनेक बुराइयां एवं संकट बिन बुलाए दुनिया में व्याप्त हो गये। इसी विकृत सोच से आतंकवाद जनमा। जिससे आदमी-आदमी से असुरक्षित हो गया। अब एक नये तरह के आतंकवाद को दुनिया में फैलाने के लिये तरह-तरह के वायरस विकसित हो रहे हैं। जिससे चेहरे ही नहीं चरित्र तक अपनी पहचान खोने लगे हैं। नीति और निष्ठा के केंद्र बदलने लगे हैं। आस्था की नींव कमजोर पड़ने लगी है। ऐसा ही है कोरोना वायरस, जो चीन में विकसित किया गया। लेकिन यह चीन का दुर्भाग्य ही रहा कि वह इसका प्रयोग विरोधी राष्ट्रों पर करता, उससे पहले स्वयं उसका शिकार हो गया।

   

कोरोना वायरस से समूची दुनिया में इंसानी जीवन पर खतरा व्याप्त हुआ है बल्कि इसके चलते दुनिया की अर्थ-व्यवस्था चैपट हो गयी है। चीन ही नहीं भारत और बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बड़ी चपत लगी है। गत दिनों इसके चलते बीएसई और एनएसई में भारी गिरावट से निवेशकों को करीब 11 लाख करोड़ की चोट लग चुकी है। अमरीका के डाउजोंस सहित सभी बड़े शेयर बाजारों का यही हाल है। कोरोना वायरस ने अब चीन से बाहर भी तेजी से पांव पसारना शुरू कर दिए हैं। लगभग 65 देशों में कोरोना वायरस कहर बन कर पसर रहा है। अगर हालात जल्द काबू में नहीं किए गए तो दुनिया को बहुत बड़ी आफत का सामना करना पड़ सकता है।

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अब तक दुनिया में आर्थिक गिरावट के कारणों में मंदी, युद्ध, सरकारी नीतियां, व्यापार और राजनीतिक उथल-पुथल शामिल रहे हैं लेकिन अब कोरोना वायरस के संक्रमण से जुड़ा डर, भय एवं अस्थिरता बड़ा कारण बना है, जिससे अनेक अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी हैं और दुनिया की बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बाजार से जुड़े लोग जानते हैं कि 2008 में जीडीपी के लगातार नकारात्मक आंकड़ों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। इस दौरान अमेरिका में होम लोन और मार्गेज लोन न चुका पाने वाले ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिसमें लेहमैन ब्रदर्स, मेरी लिंच, बैंक ऑफ अमरीका जैसे दिग्गज फंस गए थे और देखते ही देखते अमेरिका के 63 बैंकों में ताले लग गए थे। जब भी वैश्विक मंदी आई भारत पर इसका असर तो पड़ा और इस बार भी भारत की पहले से कायम आर्थिक परेशानी अधिक विकराल बनी है।

 

चीन की अर्थव्यवस्था तो गंभीर संकट को झेल ही रही है, अमेरिका सहित अनेक आर्थिक महाशक्तियां भी अर्थसंकट के दौर से गुजर रही हैं। इस संकट के कारण अनेक दूसरे अमीर देशों में भी संकट आरंभ हो गया है। भारत में उसका क्या असर होगा, इसके बारे में दो तरह की बातें हो रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि इसका कोई खास असर हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा, तो कुछ लोग कह रहे हैं कि इसके असर से हम बच नहीं सकते।

 

कोरोना वायरस का यह संकट जिस तेजी से दुनिया के अन्य मुल्कों में फैल रहा है, उससे जाहिर है कि यह अकेले चीन के जनजीवन का संकट नहीं है, बल्कि यह बाजार का भी संकट बन रहा है। इस संकट का सबसे बड़ा सच यह है कि जो अर्थव्यवस्था बाजार पर जितना ज्यादा आधारित है, वह उतना ही ज्यादा संकट में है। जो बाजार पर जितना कम आधारित है, वह उतना ही कम प्रभावित है। भारत की अर्थव्यवस्था अब भी मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें सभी कुछ अब तक बाजार के हवाले नहीं है। जिन सेक्टरों में बाजार की पहुंच ज्यादा है, वहां ज्यादा मारामारी हो रही है। शेयर बाजार का हाल सबसे बुरा है। उसके पतन के बाद शेयर कारोबार से जुड़े लोगों का आर्थिक तंत्र लड़खड़ा गया हैं। आज अगर भारत में आर्थिक संकट को लेकर हड़कंप नहीं है, तो इसका कारण यह है कि बाजार को मजबूत करने के बाद भी आज सरकार इस स्थिति में है कि उसके विफल होने पर वह अपनी ओर से स्थिरता की गारंटी दे सके।

 

भारत में कोरोना वायरस संकट अभी आरंभ ही हुआ है। यह आने वाले दिनों में कौन-सा रूप लेता है, यह देखना दिलचस्प होगा। इसके कारण हो सकता है उसका अर्थसंकट आने वाले दिनों में और भी गहरा हो। उससे बचने के लिए भारत को अभी से अपने आपको तैयार रखना चाहिए। मोदी सरकार आर्थिक मामलों में करीब-करीब संरक्षणवादी रुख ले चुकी है। संरक्षणवाद का मतलब है इस तरह की नीतियां बनाना जो आयात को हतोत्साहित करें और घरेलू उद्योग को प्रमुखता मिले। यह विचार बुरा नहीं लेकिन सवाल यह है कि घरेलू उद्योग को कितनी प्रमुखता मिल रही है। केन्द्र सरकार को दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल बनाकर चलना होगा। केन्द्र सरकार को आर्थिक सुधारों को लेकर उदारवादी नीतियां अपनानी होंगी। आर्थिक मोर्चे पर स्पष्टता नजर आनी ही चाहिए। अस्पष्टता के चलते टेलीकॉम इंडस्ट्री का जो हाल हुआ है उसे हम देख ही रहे हैं।

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कोरोना वायरस का संकट दुनिया के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है। विशेषतः आर्थिक अस्थिरता एवं संकट का कारण बन कर दुनिया को झकझोर रहा है। लेकिन भारत इस बड़े संकट को झेलने में स्वयं को समर्थ पा रहा है तो इसका कारण है कि उसकी आर्थिक सोच में कुछ भिन्नताएं हैं। समृद्धि को हम भले ही जीवन विकास का एक माध्यम मानें लेकिन समृद्धि के बदलते मायने तभी कल्याणकारी बन सकते हैं जब समृद्धि के साथ चरित्र निष्ठा और नैतिकता भी कायम रहे। शुद्ध साध्य के लिए शुद्ध साधन अपनाने की बात इसीलिए जरूरी है कि समृद्धि के रूप में प्राप्त साधनों का सही दिशा में सही लक्ष्य के साथ उपयोग हो। संग्रह के साथ विसर्जन की चेतना जागे। किसी व्यक्ति विशेष या व्यापारिक-व्यावसायिक समूह को समृद्ध के अमाप्य शिखर देने की बजाय संतुलित आर्थिक समाज की संरचना को विकसित करना होगा। यहां के जनजीवन में व्याप्त बचत की मानसिकता ऐसे संकटकालीन समय में सहायक बनती है।

 

भारत की समृद्धि की बदलती फिजाएं एवं आर्थिक संरचनाएं कोरोना वायरस के संकट को कितना पाट पायेगी, यह भविष्य के गर्भ में हैं। क्योंकि आज कहां सुरक्षित रह पाया है-ईमान के साथ इंसान तक पहुंचने वाली समृद्धि का आदर्श ? कौन करता है अपनी सुविधाओं का संयमन ? कौन करता है ममत्व का विसर्जन ? कौन दे पाता है अपने स्वार्थों को संयम की लगाम ? और कौन अपनी समृद्धि के साथ समाज को समृद्धि की ओर अग्रसर कर पाता है ? भारतीय मनीषा ने ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः’’ का मूल-मंत्र दिया था- अर्थात् सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब समृद्ध हो। गांधीजी ने इसी बात को अपने शब्दों में इस प्रकार कहा था, ‘‘जब तक एक भी आंख में आंसू है, मेरे संघर्ष का अंत नहीं हो सकता।’’ व्यक्ति को अपने जीवन में क्या करना चाहिए, जिससे वह स्वयं सुखी रहे, दूसरे भी सुखी रहें। इसके कई उपाय हो सकते हैं, क्योंकि मानव-जीवन के कई पहलू हैं, लेकिन गोस्वामी तुलसीदास ने मनुष्य के सबसे बड़े धर्म की व्याख्या करते हुए लिखा है- ‘‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’’ भले हमारे पास कार, कोठी और कुर्सी न हो लेकिन चारित्रिक गुणों की काबिलियत अवश्य हो क्योंकि इसी काबिलियत के बल पर हम स्वयं को कोरोना वायरस के संकट से बचा सकेंगे।

 

-ललित गर्ग

 

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