कोरोना से लड़ाई में सभी दल पार्टी हितों और विचारधाराओं को दरकिनार कर एक हुए

By नीरज कुमार दुबे | Apr 13, 2020

आप राज्य दर राज्य स्थिति पर नजर डालते जाइये एक चीज जो साफ नजर आयेगी वह यह है कि महाराष्ट्र में स्थिति सर्वाधिक खराब है उसके बाद दिल्ली और फिर तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान आदि का नंबर आता है। जहां तक राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों की बात करें तो महाराष्ट्र की सरकार ने त्वरित गति से कदम उठाते हुए राज्य में पूर्णतः लॉकडाउन का फैसला किया था यही नहीं जो लोग बाहर से आ रहे थे उनकी जांच के बाद अगर यह लगा कि उन्हें आइसोलेट करने की जरूरत है तो उनके हाथ पर स्टैम्प लगायी गयी ताकि आसानी से यह पहचान हो सके कि जिसे सार्वजनिक जगह पर घूमने की इजाजत नहीं है वह कहीं बाहर तो नहीं घूम रहा। हालांकि तबलीगी जमात के लोगों पर कार्रवाई करने के मामले में महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार कुछ कमजोर रही अगर सख्ती दिखाई गयी होती तो जमात के लोग कोरोना को इतना नहीं फैला पाते। हालांकि जरूरतमंदों को मदद मुहैया कराने में जरूर उद्धव सरकार ने तत्परता दिखाई। अगर हम दिल्ली की बात करें तो यहां की सरकार ने सर्वाधिक तेजी के साथ कदम उठाये, दिल्ली में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की सबसे ज्यादा चिंता की गयी। दिल्ली में तो डॉक्टरों के रहने की व्यवस्था फाइव स्टार होटलों में की गयी, वहीं से उनके लिए खाना भी आता है। स्वास्थ्यकर्मियों के परिवारों की भी चिंता स्वयं सरकार कर रही है। दिल्ली में हॉटस्पॉट इलाकों की पहचान कर वहां पूरी तरह से सील कर दिया गया ताकि कोरोना को फैलने से रोका जा सके। दिल्ली में जितने भी कोरोना संक्रमण के मामले हैं उनमें से 70 प्रतिशत तबलीगी जमात से जुड़े हुए हैं। दिल्ली सरकार ने लगभग 25 हजार लोगों को क्वारांटइन किया और कोरोना वायरस की जांच प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया। असंगठित क्षेत्रों के लोगों की सहायता के मामले में भी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकार सबसे आगे रही। दिल्ली सरकार ने तो श्रमिकों और गरीबों को सीधे उनके खाते में आर्थिक मदद भी भेजी। 

 

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राज्यवार तैयारियों की बात करें तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री शुरू से ही कोरोना वायरस के खिलाफ एक्शन मोड में नजर आ रहे हैं। चाहे कोरोना की जाँच में तेजी लाने की बात हो, क्वारांटइन सेंटर बढ़ाने की बात हो, मनरेगा श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों को आर्थिक मदद देने की बात हो, प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन उपलब्ध कराने की बात हो, पूरे प्रदेश में हॉटस्पॉट चिन्हित कर उन्हें पूरी तरह सील करने की बात हो, योगी आदित्यनाथ सदैव फ्रंट पर नजर आये। यही नहीं जब यूपी के गौतमबुद्धनगर जिले में कोरोना के मामले सर्वाधिक बढ़े तो मुख्यमंत्री हालात की समीक्षा करने सीधे नोएडा चले आये और तत्कालीन जिलाधिकारी को इतनी फटकार लगायी कि उन्होंने खुद के तबादले की माँग कर दी। योगी ने ही सर्वप्रथम तबलीगी जमात के लोगों के सामने नहीं आने पर रासुका लगाने की बात कही और जो लोग डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस पर हमले कर रहे थे उनके खिलाफ भी रासुका लगाने के आदेश दिये।


इसके अलावा अगर राजस्थान सरकार की बात करें तो यह वह प्रदेश है जहां सबसे पहले लॉकडाउन हुआ था और राज्य सरकार के भीलवाड़ा मॉडल की पूरे देश में चर्चा हो रही है। भीलवाड़ा एक समय इटली बनने की कगार पर था लेकिन राज्य सरकार के प्रयासों से जिले को कोरोना से राहत मिली। राजस्थान सरकार ने भी जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने खजाने खोले और लॉकडाउन का कड़ाई से पालन कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने तथा कोरोना वायरस की जांच में तेजी लाने पर बल दिया। राजस्थान में भी कुछेक जगहों पर तबलीगी जमात के लोग पकड़े गये जोकि कोरोना वायरस से संक्रमित थे। मध्य प्रदेश में तो जैसे ही शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली, उन्हें कोरोना की तगड़ी चुनौती का सामना करना पड़ गया। इस समय मध्य प्रदेश में राज्य मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ है इसलिए मुख्यमंत्री ही सारी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और सारे विभागों को संभाल रहे हैं और कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अकेले ही जूझते नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के साथ ही उन्होंने तो सख्ती बरतनी शुरू की, इंदौर और भोपाल में बेमियादी कर्फ्यू लगा कर हालात को संभालने की कोशिश की और डॉक्टरों तथा स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने वालों पर रासुका लगवाया वह उनके कड़े इरादे जाहिर कर गया। शिवराज उन मुख्यमंत्रियों में शुमार हैं जिन्होंने लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की वकालत यह कहते हुए की कि अर्थव्यवस्था तो फिर खड़ी कर लेंगे फिलहाल लोगों की जान बचाना प्राथमिकता है।


इसके अलावा अगर बात करें गुजरात और हरियाणा की तो यहां भी बड़ी तेजी के साथ कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या सामने आयी। इन दोनों ही राज्यों में तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने कोरोना फैलाया। गुजरात में लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराया गया और जहां-जहां लोग सामूहिक रूप से बाहर दिखे उन पर मामले दर्ज किये गये, हरियाणा, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश तो ऐसे राज्य रहे जिन्होंने एक समय सीमा दिये जाने पर भी सामने नहीं आने पर तबलीगी जमात के लोगों पर रासुका के तहत मामले दर्ज किये। तेलंगाना और तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश और असम में भी कोरोना वायरस को तेजी से फैलाने का श्रेय तबलीगी जमात को जाता है। तेलंगाना और तमिलनाडु पर तो तबलीगी जमात के लोगों ने ऐसा कहर बरपाया है कि इन दो राज्यों में जितने मामले सामने आये हैं उनमें सर्वाधिक मामले इन तबलीगी जमात से जुड़े लोगों के हैं। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा ही देखने को मिला।

 

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पंजाब, केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ऐसे राज्य के तौर पर रहे जहां विदेश से लोग कोरोना वायरस ज्यादा संख्या में लेकर आये लेकिन इन राज्यों की सरकारों ने सख्त कदम उठाने में कोई कोताही नहीं बरती। ओडिशा में तो जैसे ही संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ी, राज्य सरकार ने लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया और उसके बाद पंजाब ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए लॉकडाउन को 1 मई तक बढ़ाने का फैसला कर लिया। झारखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, पुड्डुचेरी, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा की सरकारें भी सभी तरह के एहतियाती कदम उठा रही हैं ताकि मामला बिगड़ने नहीं पाये।


बहरहाल, एक सत्य से सभी सरकारों वाकिफ हैं कि अगर संक्रमण के मामले बढ़े तो हालात को संभालना बहुत मुश्किल हो जायेगा क्योंकि हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा इतना मजबूत नहीं है कि हजारों लोगों को एक समय पर झेल पाये। जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली और समृद्ध देशों में कोरोना के मरीजों को संभालना मुश्किल हो रहा है ऐसे में हमारे देश में अगर यह थर्ड स्टेज पर पहुँचा तो हालात बेकाबू हो जाएंगे इसीलिए राज्य सरकारें और केंद्र आपस में सहयोग के जरिये कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।


-नीरज कुमार दुबे


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