बाजार वहां अब पहले की तरह ही खुलने लग गए हैं। सड़कों पर हलचल लौट आई है। हवाई अड्डों से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू हो गई हैं। स्कूलों को खोलने की तैयारी चल रही है, सिंध प्रांत में तो कईं स्कूल खुल भी गए हैं। पहली नजर में ऐसा ही लगता है जैसे पाकिस्तान से कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा अब टलने लग गया है। वहां नए मामलों की संख्या अचानक ही कम होने लग गई है। आंकड़ों की भाषा में जिसे फ्लैटनिंग ऑफ कर्व कहते हैं पाकिस्तान अब उस स्थिति के पास पहुँचता दिख रहा है। यानि संक्रमण का जो ग्राफ पहले काफी तेजी से ऊपर की ओर जा रहा था वह अब आधार रेखा के समानान्तर चलता हुआ दिखने लगा है।
तो क्या पाकिस्तान ने कोरोना वायरस संक्रमण पर काबू पा लिया है? खुद पाकिस्तान के ही कई विशेषज्ञ इस पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं, लेकिन इमरान खान सरकार ने इसे अपनी उपलब्धि बताते हुए जश्न मनाना शुरू कर दिया है। बेशक, इसके साथ ही सावधानी बरतने की चेतावनियां भी दी जा रही हैं, क्योंकि यह सरकार को भी समझ में आ रहा है कि चेतावनियों को नजरंदाज करना खतरनाक हो सकता है।
ठीक इसी बिंदु पर हमें पाकिस्तान और भारत की तुलना भी करनी चाहिए, क्योंकि ये दोनों ही देश एक ही भूगोल का हिस्सा हैं। पाकिस्तान की आबादी भारत का छठा हिस्सा है, लेकिन वहां कोविड-19 संक्रमण के अभी तक जो मामले आए हैं वे भारत के मामलों का दसवां हिस्सा ही हैं। हालांकि इन आंकड़ों की प्रामाणिकता हमेशा से ही संदेह के घेरे में रही है। आबादी घनत्व के हिसाब से भारत की गिनती दुनिया में सबसे कम जांच करने वाले देशों में होती रही है, इसके मुकाबले पाकिस्तान में तो संक्रमण की जांच और भी कम हो रही है। लेकिन जितनी भी जांच हो रही है उसके हिसाब से भारत में संक्रमण के पॉजिटिव मामलों की संख्या अभी भी तेजी से बढ़ रही है, जबकि पाकिस्तान में उसमें थोड़ा ब्रेक लगा है। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं था।
अगर हम बिलकुल शुरुआत की बात करें तो भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला उस समय दर्ज हुआ था जब 30 जनवरी को चीन से आने वाले एक छात्र को पॉजिटिव पाया गया था। लेकिन पाकिस्तान में यह उसके चार हफ्ते बाद 26 फरवरी को ईरान के साथ आने वाले एक छात्र के साथ पहुँचा। लेकिन बाद के कुछ दिनों में पाकिस्तान में इसके मामले इतनी तेजी से बढ़े कि भारत बहुत पीछे छूटता दिखा। भारत में अगर तबलीगी जमात के लोगों को कोरोना संक्रमण का मुद्दा उठा तो पाकिस्तान में भी तबलीगी जमात के लोग उससे कहीं बड़ी संख्या में संक्रमित हुए। एक समय तो ऐसा लग रहा था कि संक्रमण के मामले में पाकिस्तान जल्द ही पश्चिमी देशों को पीछे छोड़ देगा। लेकिन बाद में पाकिस्तान के मुकाबले भारत में संक्रमण की रफ्तार ज्यादा तेज हो गई।
जनसंख्या अनुपात को देखते हुए कुछ हद तक ऐसा होना ही था, लेकिन भारत में संक्रमण की रफ्तार अब इस अनुपात के अंतर को पार कर गई है और पाकिस्तान में पिछले कुछ दिनों में जिस तेजी से इसमें कमी आई है उससे पाकिस्तान की कोरोना वायरस पहेली और गहरा गई है। पाकिस्तान के 25 शहरों में पिछले दिनों एक सीरो सर्वे किया गया था। इस सर्वे में 11 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी मिले। इस आधार पर यह दावा किया जा सकता है कि पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण का विस्तार अभी आबादी के दसवें हिस्से तक ही हो सका है। इसकी तुलना अगर हम भारत से करें तो यहां पुणे में 51 फीसदी और दिल्ली में 30 फीसदी आबादी में इसके एंटीबॉडी मिल चुके हैं। पाकिस्तान के आंकड़े बता रहे हैं कि वहां ऐसी आबादी अभी भी बहुत बड़ी है जिन तक संक्रमण नहीं पहुँचा है, इसीलिए विशेषज्ञ वहां भविष्य के लिए सचेत रहने की लगातार चेतावनी दे रहे हैं। यूरोप के कई देशों और कोरिया वगैरह में हम यह देख चुके हैं कि संक्रमण कम होने के बाद जैसे ही जनजीवन सामान्य करने की कोशिश हुई, संक्रमित लोगों की संख्या फिर तेजी से बढ़ने लगी।
तेज शुरुआत के बाद पाकिस्तान में कोविड-19 संक्रमण की रफ्तार में ब्रेक क्यों लगने लग गई, वैज्ञानिक अभी भी इस पहेली को सुलझाने में लगे हैं। दुनिया भर के पैटर्न को देखते हुए एक बात यह कही जा रही है कि यह संक्रमण ज्यादा विकसित अर्थव्यवस्थाओं की जीवन शैली में ज्यादा तेजी से फैला है और कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की जीवन शैली में इसकी रफ्तार थोड़ी जुदा रही है। यह भी सच है कि कोविड-19 हमारे लिए एक नया वायरस है और अभी तक हम इसके सभी रहस्यों को पूरी तरह जानते ही नहीं हैं। जब तक ये रहस्य पूरी तरह समझ नहीं लिए जाते और इसकी वैक्सीन बनकर नहीं आ जाती कोई भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। तब तक खतरा सभी पर मंडराता रहेगा।
-हरजिंदर