जस्टिस नजीर की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति का विरोध करने वाले जरा अपनी गिरेबां में झांकें

By नीरज कुमार दुबे | Feb 13, 2023

उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाये जाने पर विपक्ष भड़क गया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी पूर्व न्यायाधीश को राज्यपाल बनाया गया है। देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों और शीर्ष न्यायालय में सेवाएं दे चुके न्यायाधीशों को राज्यपाल बनाया जाता रहा है। यहां तक कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तक राज्यपाल बनाये जा चुके हैं, ऐसे में सवाल उठता ही है कि अब ऐसा क्या हो गया कि जस्टिस नजीर के विरोध में आवाज बुलंद की जा रही है। न्यायाधीश पद पर रहते हुए कोई भी व्यक्ति तमाम मुकदमों पर फैसले सुनाता है। हर फैसला किसी एक के पक्ष में और दूसरे के विपक्ष में होता ही है। क्या हम न्यायाधीशों का आकलन इस आधार पर करेंगे कि उन्होंने हमारे से जुड़े किसी मुकदमे पर क्या फैसला दिया था? किसी भी न्यायाधीश को फैसला करते समय भावनाएं नहीं सबूतों पर ध्यान देना होता है। न्यायाधीशों को संविधान और कानून द्वारा तय किये मार्ग के आधार पर ही फैसला सुनाना होता है, ऐसे में कई फैसले ऐसे हो सकते हैं जो हमारे मन मुताबिक नहीं हों। अगर कोई फैसला हमारे मन मुताबिक नहीं है तो क्या हम भारत की न्यायपालिका पर सवाल उठा देंगे? 


जस्टिस नजीर के सुप्रीम कोर्ट में लगभग छह साल के कार्यकाल को भी देखें तो इस दौरान उन्होंने तमाम बड़े फैसले दिये लेकिन कुछ लोगों की गाड़ी क्यों सिर्फ अयोध्या विवाद, ट्रिपल तलाक और कुछ अन्य मामलों पर ही अटक गयी है? जिस तरह से भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करने पर विपक्ष ने हंगामा किया था और अब जस्टिस नजीर को राष्ट्रपति द्वारा आंध्र प्रदेश का राज्यपाल मनोनीत किये जाने पर हंगामा किया जा रहा है, क्या वह यह नहीं दर्शाता कि विपक्ष आज भी अयोध्या विवाद का समाधान निकल जाने की बात को पचा नहीं पाया है? सवाल उठता है कि क्या जस्टिस नजीर पर हो रहे हमले का मुख्य कारण अयोध्या विवाद ही है? सवाल यह भी उठता है कि जब कांग्रेस ने न्यायाधीश पद पर रहे लोगों को राज्यपाल बनाया, उन्हें विभिन्न आयोगों का चेयरमैन बनाया या उनकी योग्यता अनुरूप उन्हें ऐसे पदों पर बिठाया जहां उनके अनुभव का लाभ देश को मिल सके तब क्यों उसमें कुछ भी संविधान विरुद्ध नहीं था लेकिन जब वर्तमान सरकार ऐसा कर रही है तो वह संविधान विरुद्ध कैसे हो गया?


जरा कांग्रेस और माकपा की ओर से लगाये गये आरोपों पर नजर डालिये एकदम साफ हो जायेगा कि सिर्फ विरोध के लिए विरोध की राजनीति की जा रही है। जबकि जस्टिस नजीर की नियुक्ति के विरोध का कोई आधार है ही नहीं। हम आपको बता दें कि जस्टिस नजीर पर हो रहे राजनीतिक हमलों के बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि ‘‘पूरा इकोसिस्टम एक बार फिर इस मुद्दे पर सक्रिय हो गया है।'' उन्होंने किसी का नाम लिये बिना कहा कि उन्हें समझना चाहिए कि अब वे भारत को ‘‘व्यक्तिगत जागीर’ नहीं मान सकते। रीजीजू ने ट्विटर पर कहा कि भारत संवैधानिक प्रावधानों पर निर्देशित होगा।

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उधर, जहां तक कांग्रेस की ओर से किये गये विरोध की बात है तो आपको बता दें कि कांग्रेस ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर को राज्यपाल नियुक्त किये जाने को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते हुए इस तरह की नियुक्तियों के खिलाफ भाजपा के दिवंगत नेता अरूण जेटली की टिप्पणियों का जिक्र किया है। कांग्रेस ने साथ ही, इस कदम को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक ‘‘गंभीर खतरा’’ करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ''भाजपा के एक कद्दावर (दिवंगत) नेता अरूण जेटली ने पांच सितंबर 2013 को संसद में और कई बार इसके बाहर भी कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद पद पाने की आकांक्षा सेवानिवृत्ति से पूर्व के फैसलों को प्रभावित करती हैं। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।’’ उन्होंने जेटली की टिप्पणी का संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘हम व्यक्तियों या निजी व्यक्ति के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं इस व्यक्ति (नजीर) का काफी सम्मान करता हूं। मैं उन्हें जानता हूं, यह उनके बारे में कहीं से नहीं है। सिद्धांत के तौर पर हम इसका विरोध कर रहे हैं। सिद्धांत के तौर पर हमारा मानना है कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को एक गंभीर खतरा है...।’’ सिंघवी ने कहा, ‘‘इसलिए, हम इसकी निंदा करते हैं, हम इसका विरोध करते हैं और हम इससे सहमत नहीं हैं।’’


दूसरी ओर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एवं राज्यसभा सदस्य ए.ए. रहीम ने नजीर को राज्यपाल के तौर पर नियुक्त करने के केंद्र के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक धब्बा है। माकपा सांसद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को नियुक्त करना निंदनीय है क्योंकि यह देश के संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है। रहीम ने फेसबुक पर एक पोस्ट में कहा, 'नजीर को इस पेशकश को मानने से इंकार कर देना चाहिए।' उन्होंने कहा कि देश का अपनी न्याय प्रणाली में भरोसा नहीं खोना चाहिए। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने तो आंध्र प्रदेश के नवनियुक्त राज्यपाल को बेशर्म करार दे दिया है।


वहीं, विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी ने कहा है कि हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देना कांग्रेस की आदत है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्षी पार्टी राज्यपालों की नियुक्ति पर भी ऐसा ही कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व न्यायाधीशों को अतीत में अनगिनत मौकों पर विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया है। हमारा संविधान भी कहता है कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति बाद नियुक्तियों में कुछ भी गलत नहीं है।’’


उधर, आंध्र प्रदेश अपने नये राज्यपाल के स्वागत के लिए आतुर है। राज्य के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने राज्य के नए राज्यपाल के तौर पर एस अब्दुल नजीर की नियुक्ति का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि वह आंध्र प्रदेश की पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए नए राज्यपाल के साथ मिलकर काम करने को इच्छुक हैं। रेड्डी ने ट्वीट किया, ''नए राज्यपाल एस अब्दुल नजीर गारु का हमारे खूबसूरत राज्य आंध्र प्रदेश में स्वागत करना मेरा सौभाग्य है। मैं आंध्र प्रदेश की पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए उनके साथ काम करने का इच्छुक हूं। स्वागत है मान्यवर।’’


बहरहाल, हम आपको एक बार फिर बता दें कि नजीर राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में 2019 में ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा रहे थे। इसके अलावा नजीर, ‘तीन तलाक’ और ‘निजता के अधिकार’ को मूल अधिकार घोषित करने सहित कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाने वाली पीठ में भी शामिल रहे थे। लेकिन सिर्फ यही वह फैसले नहीं हैं जिनकी वजह से हमारा न्यायिक इतिहास गर्वित हुआ है। जस्टिस नजीर कई और भी महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल रहे हैं जिनकी वजह से देश का विश्वास न्यायपालिका पर और मजबूत हुआ है।


-नीरज कुमार दुबे

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